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व्यायाम का महत्त्व पर निबंध – Vyayam par nibandh

व्यायाम का महत्त्व अथवा व्यायाम और स्वास्थ्य अथवा व्यायाम की आवश्यकता अथवा विद्यार्थी जीवन में खेलकूद का महत्त्व अथवा व्यायाम की उपयोगिता

रूपरेखा – 1. प्रस्तावना 2. व्यायाम का तात्पर्य 3. व्यायाम के रूप 4. व्यायाम से लाभ 5. व्यायाम में सावधानियाँ 6. शिक्षा और खेलकूद 7. उपसंहार ।

Vyayam par nibandh
Vyayam par nibandh

1. प्रस्तावना – विधाता ने विश्व में दो प्रकार के जीवन उत्पन्न किए हैं एक पशु-पक्षी और दूसरे मनुष्य। दोनों में विवेक-बुद्धि का अन्तर है। पशु-पक्षियों में तात्कालिक बुद्धि होती है जबकि मानव अपने बीते हुए कल के अनुभव से भविष्य का निर्माण करता है। जीवित रहने के लिए परिश्रम करना पड़ता है। परिश्रम करना स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।

जो जितना स्वस्थ और बलशाली होगा, वह उतना ही शक्तिशाली तथा सम्पन्न होगा। सम्पन्नता श्रम के द्वारा आती है और श्रम और सम्पन्नता के लिए खेलकूद एवं व्यायाम परमावश्यक है। वही कर सकता है जो स्वस्थ और बलशाली है। अतः शक्ति और अतः स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम करना चाहिए।

2. व्यायाम का तात्पर्य – विभिन्न शास्त्र – पुराण एक स्वर से श्रम के महत्त्व को स्वीकार करते हैं। परिश्रम के बिना कोई कार्य और न ही कोई मनोरथ ही सफल होता है। बिना श्रम किए हम किसी प्रकार का कार्य नहीं कर सकते हैं। व्यायाम का अर्थ स्पष्ट करते हुए महर्षि चरक ने कहा है कि शरीर की जो चेष्ठा को स्थिर करने और इसका बल बढ़ाने वाली हो, उसे ‘व्यायाम’ कहते हैं।

अर्थात् आशय यह है कि मन को आनन्दित, शरीर को शक्तिशाली और स्फूर्तिमय बनाने के लिए जो हम शारीरिक क्रियाएँ करते हैं, उन्हीं को ‘व्यायाम’ कहते हैं। उदाहरण— योगासन, दौड़ना तथा खेलना आदि।

3. व्यायाम के रूप – प्रमुख रूप से व्यायाम दो प्रकार के होते हैं—(अ) शारीरिक व्यायाम (ब) मानसिक व्यायाम।

(अ) शारीरिक व्यायाम – शारीरिक व्यायाम अनेक प्रकार से किया जा सकता है, जैसे- टहलना, कुश्ती लड़ना, दौड़ना, मुगदर चलाना, दण्ड-बैठक लगाना, जिम्नास्टिक या आसन आदि क्रियाएँ करना सुन्दर व्यायाम हैं। कबड्डी, क्रिकेट, फुटबॉल, टेनिस आदि खेले जाने वाले विविध खेल भी व्यायाम के अन्तर्गत आते हैं।

यह व्यायाम घर के भीतर या घर के बाहर दोनों स्थानों पर किए जा सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी-अपनी सुविधा और रुचि के अनुसार नियमित रूप से ही व्यायाम करना चाहिए। छोटा हो या बड़ा, स्त्री हो या पुरुष हो, व्यायाम सभी के लिए अत्यन्त उपयोगी है। नृत्य करना लड़कियों के लिए बड़ा सुन्दर व्यायाम है।

(ब) मानसिक व्यायाम- मानसिक व्यायाम से चिन्तन और मनन किया जा सकता है, चिन्तन और मनन से मन की शक्ति बढ़ती है एवं बौद्धिक विकास होता है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। इसलिए मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए शरीर को पूर्ण स्वस्थ रखना अनिवार्य है।

4. व्यायाम से लाभ – व्यायाम से अनेक लाभ हैं। व्यायाम के द्वारा शरीर में स्वस्थ खून का संचार होता है और हमारा पाचन-तन्त्र सही प्रकार से काम करने लगता है। हमारे शरीर का एक-एक अंग पुष्ट और मजबूत, सुगठित होता है। शरीर में स्फूर्ति आती है तथा प्रत्येक कार्य में मन लगता है। शरीर में रुधिर का संचालन उचित प्रकार से होता है।

कोई भी किसी प्रकार का रोग फटकने नहीं पाता। डाक्टरों और वैद्यों के दरवाजे नहीं खटकाने पड़ते हैं। विद्यार्थियों के लिए व्यायाम अतिआवश्यक है क्योंकि व्यायाम करने से मानसिक थकान दूर होती है क्योंकि व्यायाम के द्वारा अपने शरीर को स्वस्थ बना लिया जाता है।

कहावत है— “स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।” परिणामतः मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए शरीर को पूर्ण स्वस्थ रखना परम आवश्यक है। यह केवल व्यायाम द्वारा ही सम्भव है।

5. व्यायाम में सावधानियाँ – व्यायाम प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यन्त आवश्यक है। व्यायाम के बिना स्वस्थ शरीर की कल्पना करना अत्यन्त कठिन है। शारीरिक शक्ति के अनुसार व्यायाम का चयन करना चाहिए क्योंकि कुछ व्यायाम इस प्रकार के भी होते हैं जिन्हें पुरुष ही कर सकते हैं और कुछ व्यायाम ऐसे भी होते हैं जिन्हें महिलाएँ भी आराम से कर लें।

उम्र और शक्ति के व्यायाम का चयन न करने पर भी व्यायाम हानिकारक सिद्ध होते हैं। उदाहरण के लिए छोटे बच्चे द्वारा अत्यधिक दण्ड-बैठक लगाना अथवा बूढ़े व्यक्ति द्वारा तेजी से दौड़ना हानिकारक होता है। अतः व्यायाम इतना ही करना चाहिए जिससे हमें थकान न हो। प्रातः काल में किया गया व्यायाम हमारे शरीर में दिनभर स्फूर्ति पैदा करता है ।

6. शिक्षा और खेलकूद – व्यायाम न करने से निःसन्देह ही मनुष्य निर्बल और कमजोर रहता है। उसका स्वभाव आलस्य और चिड़चिड़ेपन से भरा रहता है । वह कोई भी कार्य को सफलतापूर्वक नहीं कर सकता। इसलिए स्वास्थ्य अच्छा होना अतिआवश्यक है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्वस्थ मन-मस्तिष्क और शरीर की आवश्यकता होती है।

यह सब व्यायाम या खेलकूद के द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। इसीलिए कहा गया है कि– “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ म मस्तिष्क निवास करता है।” संयम से मन और इन्द्रियों की कुप्रवृत्ति रूक जाती है।,

खेलों से व्यक्ति को मानसिक स्वस्थता प्राप्त होती है। खिलाड़ी व्यक्तियों का चरित्र अन्य व्यक्तियों की तुलना में उत्तम होता है। इनके मन में बुरी भावनाएँ नहीं उत्पन्न होतीं तथा उनमें धैर्य, सहनशीलता तथा क्षमा आदि मानवीय गुणों कापूर्ण विकास हो जाता है। इसलिए खेल हमारे लिए लाभदायक हैं। व्यायाम या खेल सदैव स्वच्छ वातावरण तथा हवादार स्थान पर खेलना चाहिए। व्यायाम के उपरान्त कुछ हल्का-सा जलपान भी करना आवश्यक होता है।

7. उपसंहार – हम भारत के इतिहास पर यदि दृष्टि डालें, तो देखते हैं कि यह देश तेजस्वियों एवं वीरों से भरा पड़ा है। ये वीर पुरुष बिना व्यायाम और अच्छे स्वास्थ्य के अस्तित्व में नहीं आ सकते थे। लेकिन आज के युग में तो व्यायाम का और भी अधिक महत्त्व बढ़ गया है। आजकल हमारा शिक्षित समाज दिनभर कुर्सी पर बैठकर कलम तोड़ता रहता है।

शारीरिक व्यायाम करने का इन्हें अवसर नहीं मिलता, इससे उनके स्वास्थ्य पर बड़ा बुरा असर पड़ता है। उन्हें चाहिए कि प्रतिदिन समय निकालकर व्यायाम अवश्य करें। देश की शक्ति स्वस्थ और बलवान नागरिक ही हैं। इसीलिए अपने देश को हमें शक्तिशाली बनाने के लिए स्वयं को शक्तिवान बनाना पहले आवश्यक है। यह सब व्यायाम पर निर्भर है।

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