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विद्यार्थी जीवन और अनुशासन पर निबंध – Vidyarthi Jeevan par nibandh

विद्यार्थी(छात्र) जीवन और अनुशासन

रूपरेखा — 1. प्रस्तावना 2. अनुशासन के लाभ 3. उपसंहार

Vidyarthi Jeevan par nibandh
Vidyarthi Jeevan par nibandh

1.प्रस्तावना – सामाजिक कार्यों को सुचारू रूप से पूरा करने के लिए विभिन्न नियम निर्धारित किये जाते हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति से यह आशा की जाती है कि वह निर्धारित नियमों का पालन करते हुए अपने कार्यों को अच्छे ढंग से सही समय पर पूरा करेगा। इसी को अनुशासन कहा जाता है।

शासन के अनुसार किसी भी निर्धारित नियम को भंग करना अनुशासनहीनता होती है। अनुशासन में आज्ञापालन का भी विशेष स्थान है। समाज में अधिकारी एवं कर्मचारी, अध्यापक-शिष्य, पिता-पुत्र तथा वृद्ध-बालक में अन्तर होता है। वरिष्ठ व्यक्तियों को आज्ञा या निर्देश देने का अधिकार होता है। अधीनस्थ व्यक्तियों का कर्त्तव्य है कि वे उस आज्ञा का पालन करें।

इस प्रकार के आज्ञापालन को अनुशासन का एक मुख्य अंग माना जाता है। आज्ञा की अवहेलना करना अनुशासनहीनता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन महत्त्वपूर्ण होता है किन्तु विद्यार्थी(छात्र) जीवन में इसका विशेष महत्त्व है, क्योंकि आज के विद्यार्थी (छात्र) ही कल देश का दायित्व संभालेंगे इसलिए उनकी नींव सुदृढ़ अनुशासन की भाव-भूमि पर होनी ही चाहिए।


2.अनुशासन के लाभ – व्यक्ति की निजी उन्नति एवं सफलता उसकी अनुशासनप्रियता पर निर्भर करती है। अनुशासित व्यक्ति अपने कर्त्तव्यों को सही समय पर तथा सही ढंग से पूरा करता है। कार्य समय पर पूरा होने से निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है। समय पर कार्य पूरा न होने पर व्यक्ति को लज्जित होना पड़ता है तथा पछताना पड़ता है।

इसलिए अनुशासन की सभी क्षेत्रों में आवश्यकता होती है।सर्वप्रथम अनुन का पाठ घर पर ही सीखा जाता है। घर पर माता-पिता, बड़े भाई-बहिनों का कहना मानना अनुशासन का प्रारम्भिक रूप है। प्रत्येक घर के विभिन्न नियम होते हैं जैसे कि, प्रातः काल उठना, भ्रमणार्थ जाना, स्नान करना तथा संध्या करना और सायंकाल एक निश्चित समय पर घर वापस आना-जाना आदि।

इन नियमों का अनुशासित ढंग से पालन करने से जहाँ एक ओर बच्चों को भरपूर प्यार-दुलार मिलता है, वहीं घर की सुव्यवस्था भी बनी रहती है। अनुशासित घर-परिवार में कलह के अवसर प्रायः नहीं आते।

घर के बाद विद्यालय में (छात्र) अनुशासन का विशेष महत्त्व है। स्कूल में समय पर पहुँचना, कपड़े एवं जूते ठीक से पहनना, प्रार्थना के लिए पंक्तिबद्ध होकर जाना आदि अनुशासन के रूप हैं।

कक्षा में बातें न करना, अध्यापक द्वारा दिया गया गृह-कार्य पूरा करके लाना तथा शिक्षक की आज्ञा का पालन करना, अनुशासित छात्र को कभी किसी प्रकार की परेशानी नहीं उठानी पड़ती, उसे सभी अध्यापकों का स्नेह प्राप्त होता है। ऐसे छात्र सदा अच्छे अंक पाकर परीक्षा में उत्तीर्ण होते हैं। अनुशासित छात्रों को पुरस्कार भी दिये जाते हैं।

विद्यालय (छात्र) के बाद समाज में भी अनुशासन बनाये रखने की आवश्यकता होती है अन्यथा सब कुछ अव्यवस्थित और विनाशकारी हो जायेगा। सड़क पर चलते हुए हम यातायात के नियमों का पालन करते हैं। सभी व्यक्ति सड़क पर बाएँ चलते हैं। सड़क पर मुड़ने से पहले हाथ से संकेत देते हैं।

साइकिल आदि वाहन की घण्टी बजाते हैं तथा अधिक तेजी से वाहन नहीं चलाते। स्थान-स्थान पर थूकना भी अनुशासनहीनता ही होती है। समाज में अनुशासित रहने के अनेक लाभ हैं। इससे सड़क दुर्घटनाएँ कम होती हैं तथा सभी सुविधापूर्वक आ-जा सकते हैं। समाज में अनुशासन बने रहने से झगड़े एवं संघर्ष भी नहीं होते। यही नहीं अपने-अपने व्यवसाय में भी अनुशासन के अनेक लाभ हैं।

3.उपसंहार – अनुशासन के बहुपक्षीय महत्त्व एवं लाभ से प्रेरित होकर प्रत्येक व्यक्ति को अनुशासन का पूर्णरूप से पालन करना चाहिए। वास्तव में, वही व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को अनुशासन में रख सकता है जो स्वयं अनुशासन का पूर्ण पालन करता है। हमारे समाज एवं राष्ट्र की उन्नति के लिए अनुशासन की अत्यधिक आवश्यकता है। हम भगवान से कामना करते हैं कि हम सदैव अनुशासित रहें तथा दिन-प्रतिदिन प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होते जाएँ।

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