
श्री गणेश एवं बुढ़िया माई की कहानी
गणेश जी और बुढ़िया माई की कहानी एक पौराणिक कथा है, जो भारतीय साहित्य में प्रसिद्ध है। यह कथा गणेश चतुर्थी के त्योहार के मौके पर चर्चा की जाती है जो भगवान गणेश की पूजा और महत्व को बताती है।
कहानी के अनुसार, एक बार गोकर्ण क्षेत्र में एक बड़ा महोत्सव मनाया जा रहा था, और सभी देवताओं को इसके अवसर पर आमंत्रित किया गया। हर देवता अपने-अपने उपहार लेकर महोत्सव के लिए पहुँच गए, लेकिन गणेश जी के पास कुछ नहीं था। वे जानते थे कि महोत्सव में अपने पिता, भगवान शिव, और मां पार्वती को कुछ देना होगा।
इस समय, एक गरीब बुढ़िया नामक औरत गणेश जी के पास गई और उनसे आलम्बिक के देवता के रूप में वह गरीबी से गुजर रही थी। वह बोली, “हे गणेश प्रभु, मैं एक गरीब औरत हूँ, मेरे पास कुछ भी नहीं है, लेकिन मैं आपको कुछ देना चाहती हूँ।” इसके बाद, उसने एक छोटे से लड़ू की रूप में अपनी ईमानदारी और भक्ति का प्रतीक गणेश जी के पास रख दिया।
जब महोत्सव आया, भगवान शिव और मां पार्वती ने सभी देवताओं के साथ एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें वे अपने परिवार के साथ शामिल हो गए। उन्होंने अपने अनुयायियों से विनती की कि वे अपने ईश्वर, गणेश जी, को एक अच्छा उपहार दें।
जब बुढ़िया माई ने गणेश जी के द्वारपर खड़ी होकर उनको अपना छोटा सा लड़ू दिया, तो गणेश जी बड़े प्रसन्न हो गए और उन्होंने बुढ़िया माई की भक्ति को स्वीकार किया। उन्होंने बुढ़िया माई के ईमानदारी और भक्ति की सराहना की और उनका उपहार बड़े प्रमाण में स्वीकार किया।
इसके बाद, गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया गया, जो आज भी भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार पर गणेश जी की पूजा की जाती है और लड़ू का प्रसाद बाँटा जाता है, जिसका सन्देश है कि भक्ति और ईमानदारी सबसे महत्वपूर्ण हैं। इसी तरह, गणेश जी और बुढ़िया माई की कहानी हमें यह सिखाती है कि भगवान को दिल से भक्ति करने और ईमानदारी से पूजने से हमारे प्रार्थनाओं का परिणाम मिलता है।