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रहीम जी का जीवन परिचय – biography of rahim

जीवन-परिचय –

रहीम का पूरा नाम अब्दुरहीम खानखाना था। इनका जन्म सन 1556 ई0 में लाहौर (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था। मार्ग में उसके शत्रु मुबारक खाँ ने उसकी हत्या कर दी। बैरम खाँ की हत्या के पश्चात अकबर ने रहीम और उसकी माता को अपने पास बुला लिया और रहीम की शिक्षा की समुचित व्यवस्था की।

इनके पिता बैरम खां मुगल सम्राट अकबर के संरक्षक थे। किन्हीं कारणोंवश अकबर बैरम खाँ से रुष्ट हो गया था और उसने बैरम खाँ पर विरोध का आरोप लगाकर हज करने के लिए मक्का भेज दिया। ये अपने नाम के अनुरूप अत्यंत दयालु प्रकृति के थे। मुसलमान होते हुए भी ये श्री कृष्ण के भक्त थे।

प्रतिभा संपन्न रहीम ने हिंदी , संस्कृत , अरबी , फारसी , तुर्की आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इनकी योग्यता को देखकर अकबर ने इन्हें अपने दरबार में नवरत्नों में स्थान दिया। अकबर की मृत्यु के पश्चात जहांगीर ने इन्हें चित्रकूट में नजरबंद कर दिया था। केशवदास और गोस्वामी तुलसीदास से इनकी अच्छी मित्रता थी। इनका अंतिम समय विपत्तियों से घिरा रहा और सन 1627 ई0 में मृत्यु हो गयी।

  • जन्म – सन 1556 ई0।
  • पिता का नाम – बैरम खाँ।
  • जन्म-स्थान – लाहौर।
  • पूरा नाम –अब्दुरहीम खानखाना।
  • मृत्यु – सन 1627 ई0।
  • भाषा – ब्रज।

साहित्यिक सेवाएं –

पिता बैरम खाँ ने युग के एक अच्छे नीतिज्ञ एवं विद्वान थे ,अतः बाल्यकाल से ही रहीम को साहित्य के प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया था। योग्य गुरुओं के संपर्क में रहकर इनमें अनेक काव्य-गुणों का विकास हुआ। इनके ‘नीति के दोहे’ तो सर्वसाधारण की जिन्हा पर रहते हैं।

इन्होंने कई ग्रंथों का अनुवाद किया तथा ब्रज , अवधि एवं खड़ीबोली में कविताएं भी लिखी। दैनिक-जीवन की अनुभूतियों पर आधारित दृष्टांतो के माध्यम से इनका कथन सीधे हृदय पर चोट करता है। इनकी रचना में नीति के अतिरिक्त भक्ति एवं श्रृंगार की भी सुंदर व्यंजना दिखायी देती है। इन्होंने अनेक ग्रंथों का अनुवाद भी किया।

रचनाएं _

रहीम की रचनाएं इस प्रकार हैं_रहीम सतसई , श्रृंगार सतसई , मदनाष्टक , रास पंचाध्यायी , रहीम रत्नावली एवं बरवै नायिका-भेद;वर्णन। इसमें लगभग 300 दोहे प्राप्त हुए हैं। ‘रहीम सतसई’ नीति के दोहे का संकलन ग्रंथ है।

‘मदनाष्टक’ में श्री कृष्ण और गोपियों की प्रेम संबंधी लीलाओं का सरस चित्रण किया गया है। ‘रास पंचाध्यायी’ श्रीमद्भागवत पुराण के आधार पर लिखा गया ग्रंथ है जो आपर्यप है। ‘बरवै नायिका भेद’ में नायिका भेद का वर्णन बरवै छंद में किया गया है।

भाषा-शैली –

रहीम जनसाधारण में अपने दोहों के लिए प्रसिद्ध हैं , पर इन्होंने कवित्त , सवैया , सोरठा तथा बरवै छंदो में भी सफल काव्य रचना की है। ये कई भाषाओं के जानकार थे , इसलिए इनकी काव्य-भाषा में विभिन्न भाषाओं के शब्दों के प्रयोग भी देखने को मिलते हैं।

इनके ब्रज का रूप सरल , व्यावहारिक , स्पष्ट एवं प्रवाहपूर्ण हैं। अवधि में ब्रजभाषा के शब्द तो मिलते ही हैं , पर अवधी के ग्रामीण शब्दों का भी खुलकर प्रयोग उन्होंने किया है। इन्होंने मुक्तक शैली में काव्य-सृजन किया। इनकी यह शैली अत्यंत सरस , सरल एवं बोधगम्य है।

रहीम के दोहे –

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।1।।

कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।

बिपत्ति-कसौटी जे कसे, तेही साँचे मीत।।2।।

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।

रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाड़ैत छोह।।3।।

दीन सबन को लखत हैं, दीन्हि लखै न कोई।

जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय।।4।।

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरेउ चटकाय।

टूटे से फिरि ना जुरै ,जुरै गाँठ परि जाय।।5।।

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।

जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि।।6।।

रहिमन ओछे नरन ते, तजौ बैर अरु प्रीति।

काटे-चाटे स्वान के, दुहूँ भाँति विपरीति।।7।।

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