प्रदूषण की समस्या अथवा पर्यावरण सुरक्षा अथवा पर्यावरण एवं स्वास्थ्य अथवा पर्यावरण प्रदूषण-कारण एवं निवारण अथवा पर्यावरण प्रदूषण से मुक्ति
रूपरेखा – 1. प्रस्तावना 2. प्रदूषण के विभिन्न प्रकार 3. प्रदूषण पर नियंत्रण

प्रदूषण पर निबंध 620 शब्दों में – Pradushan par nibandh
1. प्रस्तावना – प्रदूषण वायु, जल एवं स्थल की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं का वह अवांछनीय परिवर्तन है जो मनुष्य और उसके लिए लाभदायक जन्तुओं, पौधों, औद्योगिक संस्थाओं तथा दूसरे कच्चे माल इत्यादि को किसी भी रूप में हानि पहुँचाता है। वातावरण में कुछ हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाने से वातावरण दूषित हो जाता है। इसी को हम पर्यावरण प्रदूषण की संज्ञा देते हैं।
2. प्रदूषण के विभिन्न प्रकार – विकासशील देशों में औद्योगिक एवं रासायनिक कचरे के बढ़ने के कारण जल ही नहीं वायु और पृथ्वी भी प्रदूषण से ग्रस्त हो रही है। मुख्य प्रदूषण निम्नलिखित हैं
(i) वायु प्रदूषण – वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहती हैं। साँस द्वारा हम शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) ग्रहण करते हैं तथा अशुद्ध वायु (कार्बन डाइऑक्साइड) छोड़ते रहते हैं। हरे पौधे प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड का सन्तुलन बनाए रखते हैं।
इस सन्तुलन को बनाए रखने के लिए वनों की हमारे जीवन में बहुत उपयोगिता है। मनुष्य अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए वनों को काटता है। परिणामस्वरूप वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है।
इनके प्रभाव से पत्तियों के किनारे और नसों के मध्य का भाग सूख जाता है। वायु प्रदूषण से मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे श्वसन सम्बन्धित बहुत से रोग पैदा हो जाते हैं। फेफड़ों का कैंसर, अस्थमा तथा फेफड़ों से सम्बन्धित रोग फैलते हैं।
(ii) जल प्रदूषण – जल में अनेक प्रकार के खनिज तत्व, कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं। यदि जल में ये पदार्थ आवश्यकता से अधिक मात्रा में इकट्ठे हो जाते हैं, तो जल प्रदूषण हो जाता है और पीने वालों के लिए अनेक प्रकार के रोगों को जन्म देता है।
(iii) रेडियोधर्मी प्रदूषण – परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों तथा परमाणु परीक्षण से जल, वायु तथा पृथ्वी सब में प्रदूषण होता है। विस्फोट के स्थान पर तापक्रम इतना बढ़ जाता है कि धातु तक पिघल जाती है। इससे रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमण्डल में प्रवेश कर जाते हैं। ये ठोस रूप धारण कर बहुत छोटे-छोटे धूल कणों के रूप में वायु के झोकों के साथ समस्त संसार में फैल जाते हैं।
(iv) ध्वनि प्रदूषण – नगरों में रेलगाड़ियों, बसों आदि वाहनों, कल-कारखानों तथा लाउडस्पीकरों आदि की तेज ध्वनि से प्रदूषण होता है। ध्वनि की लहरें जीवधारियों को प्रभावित करती हैं। इससे सुनने की शक्ति नष्ट हो जाती है। नींद न आना, नाड़ी-संस्थान सम्बन्धी रोग और कभी-कभी पागलपन भी हो जाता है।
(v) रासायनिक प्रदूषण – कृषक अपनी फसलों में कीटनाशक पौषधियों का प्रयोग करते हैं। आजकल तो गेहूँ जैसे खाद्यान्नों में भी इस प्रकार की दवाइयों को रखा जाने लगा है। इन दवाइयों के अंधाधुंध प्रयोग से मानव तथा पक्षियों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
3. प्रदूषण पर नियंत्रण – औद्योगीकरण तथा जनसंख्या की वृद्धि ने संसार के सामने प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न कर दी। इस समय हमारे देश में इस समस्या से निपटने के लिए सरकार द्वारा अनेक प्रयास किए जा रहे हैं।
जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने सन् 1974 ई० में जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण के लिए भारत सरकार नियन्त्रण अधिनियम लागू किया था। इस दिशा में गंगा परियोजना के अंतर्गत गंगा के प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ है। उद्योगजन्य प्रदूषण को रोकने हेतु अब सरकार की नीति है कि किसी नये उद्योग को तभी लाइसेन्स दिया जायेगा जबकि औद्योगिक कचरे के निस्तारण हेतु समुचित व्यवस्था हो। इसके अतिरिक्त वनों की अनियन्त्रित कटाई व ( रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए हैं। इस प्रकार, हमारी सरकार पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिए दृढ़ता से तत्पर है।