प्रजातंत्र और समाचार-पत्र अथवा समाचार पत्र अथवा समाचार पत्र की उपादेयता अथवा समाचार पत्रों का दायित्व |
रूपरेखा—1. प्रस्तावना 2. समाचार पत्र का विकास 3. ऐतिहासिक साक्ष्य 4. समाचार पत्रों का प्रभाव . 5. उपसंहार।

समाचार पत्र पर निबंध 1000 शब्दों में – Newspaper Essay in Hindi
1. प्रस्तावना – समाचार पत्र आज मानव की दिनचर्या का एक अनिवार्य अंग बन गया है। उसकी अनुपस्थिति अत्याधिक खलती है। “बाबूजी अखबार” की आवाज सुनते ही पूरा घर द्वार की ओर लपकता है और उसके हाथ में आते ही कोई ऊपर नजर दौड़ा रहा है, कोई नीचे से झाँक रहा है, कोई ले भागने को खड़ा ताक रहा है तो कोई हठीले शिशु के समान इसका एक कोना माँ के आँचल के समान थामे बैठा है।
क्योंकि मनुष्य का सामाजिक होना उसकी जन्मजात विशेषता है। जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त वह समाज का अंग बनकर रहता है। जैसे मानव बड़ा होता जाता है उसमें जिज्ञासा जागती है। अपने चारो ओर के वातावरण, देश ही नहीं विश्व और उससे भी आंगे आकाश के रहस्यों तथा समुद्र की गहराई को जानने की उसकी इच्छा बलवती होती जाती है।
मुद्रण कला के आविष्कार के साथ समाचार पत्र का जन्म हुआ। प्रसिद्ध विद्वान “चार्ल्स लैंब” ने लिखा है-“समाचार पत्र जिज्ञासा को उत्तेजित करते हैं। किन्तु इस उत्तेजना की शांति का रहस्य समाचार पत्रों में है। इनका फैलाव सम्पूर्ण विश्व में है।
प्रातः काल उठते ही समाचार पत्र (भारत)मिलने से अनोखी बेचैनी उत्पन्न होती है। आधुनिक जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता ‘समाचार पत्र’ बन गया है।
2. समाचार पत्र का विकास – आज यह माना जाता है कि सत्रहवीं शताब्दी में समाचार पत्र ‘बेनिस नगर’ नगर से पहली बार प्रकाशित हुआ। भारतवर्ष में अंग्रेजों के शासन काल में ‘इंडिया गजट’ नामक पत्र का प्रकाशन प्रथम बार हुआ था। बाद में समाचार दर्पण’, ‘कौमुदी’, ‘प्रभात’ नामक प्रकाशित हुए।
सन् 1835 से यह सिलसिला शीघ्रता से आगे बढ़ा और आज विभिन्न भाषाओं में भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की संख्या हजारों में हैं। कुछ समाचार पत्रों के संस्करण लाखों में प्रकाशित हो रहे हैं। देश और विश्व के कोने-कोने में घटित होने वाली घटनाओं की पूरी सूचना समाचार-पत्र द्वारा हम तक पहुँच जाती है।
सूचनाएँ दूरदर्शन द्वारा भी मिलती हैं किन्तु इनमें प्रचारात्मक दृष्टिकोण अधिक दिखाई देता है। विभिन्न प्रकार के समाचारों की कटाई-छटाई सम्पादक मंडल करता है, प्रकाशित करते समय वह उनकी विवेचना, टीका-टिप्पणी भी कर देता है। सामाजिक, शैक्षिक, राजनीतिक, व्यापारिक, खेल-जगत के • विभिन्न समाचारों पर विशेषज्ञों के विश्लेषण भी समाचार पत्रों में (भारत) प्रकाशित होते रहते हैं।
विज्ञापन समाचार पत्रों की आय का बहुत बड़ा साधन है। इनके द्वारा नई से नई उत्पादित वस्तुओं की जानकारी आम जनता तक पहुँच जाती है। इस प्रकार आज समाचार पत्र इतने विकसित हो गए हैं कि इन्हें यदि दिन-प्रतिदिन का इतिहास कहें, तो अनुचित न होगा।
3. ऐतिहासिक साक्ष्य – किसी देश के इतिहास को पीछे मुड़कर देखें, तो ज्ञात होगा कि जनता की राय बनाने अथवा उसकी राय को बदलने में समाचार पत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत का इतिहास देखें तो स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए किए गए संघर्ष में इनकी भूमिका सराहनीय रही है।
राष्ट्रीय नेताओं की भावनाओं को अभिव्यक्ति देने में तथा अपने पक्ष में जनता की सम्मति बनाने में समाचार पत्र पूर्ण रूप से सक्रिय रहे हैं। इन्होंने सदैव जनमत को वाणी दी है। आवश्यकता पड़ने पर विरोध भी किया है और इस तरह भारत में प्रजातन्त्र की जड़े मजबूत की है।
सोचा जाए, समाचार तो आज इण्टरनेट के माध्यम से भी जाने जा सकते हैं किन्तु लिखित रूप की विश्वसनीयता साथ ही सम्पादक की सुलझी हुई टिप्पणी समाचार पत्र की उपयोगिता को सिद्ध करती है। ज्ञानवृद्धि के साधन तथा प्रचार का सर्वाधिक सशक्त माध्यम यही है।
4. समाचार पत्रों का प्रभाव – समाचार पत्रों का सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रकार का प्रभाव पड़ता है। इनका सकारात्मक पक्ष यह है कि ये सभी प्रकार की सूचनाएँ देते हैं, घटित घटनाओं को शीघ्र हम तक पहुँचाते हैं तथा सामाजिक बुराइयों को दूर करने का साधन बनते हैं।
समाचार पत्रों का नकारात्मक पक्ष भी है। कभी-कभी इनमें हानिकारक वस्तुओं के विज्ञापन भी आते हैं, जिनकी ओर जनता आकृष्ट होती है और बाद में क्रय करके पछताती है। यह भी देखा जाता है कि कुछ समाचार पत्र विशेष प्रकार की विचारधारा को लेकर समाचारों को महत्त्व देते हैं, इनसे पाठकों पर बुरा प्रभाव पड़ने की सम्भावना रहती है। कभी-कभी समाचारों को चटपटा बनाकर छापा जाता है।
साथ ही “यलो जरनलिज्म’ के नाम पर बहुत कुछ ऐसा छपता है जो समाज को दूषित करता है। इनसे बचना आवश्यक है। विश्व – बन्धुत्व को जागरूक रखने और युद्ध की विभीषिका से संसार को बचाने में समाचार पत्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती हैं। अपने देश की सही तस्वीर प्रस्तुत करना, राष्ट्रीय, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक आन्दोलनों में जनता का सही मार्गदर्शन करना भी समाचार पत्रों का महत्त्वपूर्ण दायित्व है।
5. उपसंहार- अतः कहा जा सकता है कि आज जनमत तैयार करने के माध्यम रूप में समाचार पत्रों का महत्त्व असंदिग्ध है। व्यक्ति, समाज, राष्ट्र के विकास में इनका योगदान नित्य प्रति फलित होता है। पूरे राष्ट्र को दिशा-निर्देश करने के उत्तरदायित्व को इन्हें सजगता से निभाना चाहिए। पत्रकारिता एक गौरवशाली आजीविका है।
समाज और शासन दोनो ही पत्रकार को आदर प्रदान करते हैं। अत: इनको भी अपनी गरिमा का ध्यान रखते हुए क्षुद्र स्वार्थों एवं लोभ-लाभों से बचना चाहिए। समाज को सत्य, शिव और सुन्दर के वरण में सहायक होकर अपनी महत्ता का परिचय देना चाहिए। एक उद्योग के रूप में भी समाचार पत्रों का संरक्षण करना शासन का कर्त्तव्य है।
प्रेस परिषद की स्थापना द्वारा आत्म नियंत्रण और आचार की मार्यादा की भावना भी समाचार पत्र में जाग्रत हुई है। श्रमजीवी पत्रकारों के वेतन तथा सुरक्षा आदि के विषय में सरकार को सचेत रहना आवश्यक है। निष्पक्ष विज्ञापन नीति, कागज की उपलब्धि कराना और समाज विरोधी तत्वों से संरक्षण भी शासन का कर्तव्य है। आशा है कि भारतीय समाचार पत्र उत्तरोत्तर अपने दायित्वों के निर्वहन में निष्पक्ष, सबल और सक्षम होंगे।