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मोहम्मद गोरी – Mohammad Ghori

मोहम्मद गोरी

मोहम्मद गोरी (Mohammad Ghori) एक प्रमुख इस्लामिक सुलतान थे जो 12वीं और 13वीं सदी के बीच भारत पर आक्रमण करने के लिए जाने जाते हैं। वह गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतिहार राजवंश के प्रतिहार नामक राजा जयचंद के बाद 1192 में दिल्ली के प्रतिहार राजवंश की राजधानी दिल्ली पर आक्रमण किया।

मोहम्मद गोरी का आक्रमण प्रतिहार वंश के प्रतिहार राजा पृथ्वीराज चौहान के साथ तारीख 1192 में तराई क्षेत्र में लड़ा गया और गोरी की सेना ने पृथ्वीराज चौहान को हराया। इस युद्ध का परिणामस्वरूप दिल्ली क्षेत्र में गोरी का शासन स्थापित हुआ और वह यहाँ पर दिल्ली सलतनत की नींव रखे।

मोहम्मद गोरी के बाद, उसके भाई कुतुब-उद-दीन आबक द्वारा दिल्ली सलतनत की नींव रखी गई, जिससे भारत में इस्लामी शासन की शुरुआत हुई। इसके बाद कुतुब-उद-दीन आबक के बाद, दिल्ली सलतनत के अनेक सुलतानों ने भारतीय इतिहास को प्रभावित किया और भारत में इस्लामी संस्कृति को फैलाया।

मोहम्मद गोरी का आक्रमण भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण घटना माना जाता है, जिससे भारत में इस्लामी सुलतनत का आरंभ हुआ।

परिचय

मोहम्मद गोरी (Mohammad Ghori), जिनका जन्म करीब 1162 ईसा पूर्व हुआ था और मृत्यु 1206 ईसा पूर्व के आस-पास हुई, एक प्रमुख इस्लामिक सुलतान थे जो दिल्ली सलतनत की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह गोरी वंश के सदस्य थे और अफगानिस्तान के गजनी (Ghazni) शहर के सुलतान थे।

मोहम्मद गोरी का प्रमुख उद्देश्य भारत पर आक्रमण करना था, और वह कई बार भारतीय उपमहाद्वीप के प्रांतों पर आक्रमण करने का प्रयास किया। उनका सबसे महत्वपूर्ण आक्रमण 1191 में पृथ्वीराज चौहान के खिलजी (Khilji) नामक सेनापति के खिलफ़ हुआ, जिसमें पृथ्वीराज चौहान ने उन्हें हराया। लेकिन मोहम्मद गोरी ने फिर से वापस आकर 1192 में तराई क्षेत्र के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हराया और दिल्ली क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया।

मोहम्मद गोरी ने दिल्ली क्षेत्र में अपने सल्तनत की नींव रखी और इसे एक अफगान साम्राज्य की शुरुआत के रूप में देखा। उन्होंने अपने बाद के सुल्तानों को भारत में इस्लामी शासन की नींव रखने में मदद की और दिल्ली सलतनत की विकास का मार्ग प्रशस्त किया।

मोहम्मद गोरी का आक्रमण भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण घटना है, जिससे भारत में इस्लामी सलतनत की नींव रखी गई। उनके आक्रमण ने भारतीय इतिहास की धारा को परिवर्तित किया और भारतीय सभ्यता पर भी गहरा प्रभाव डाला।

भारत पर आक्रमण

मोहम्मद गोरी (Mohammad Ghori) ने 12वीं और 13वीं सदी के बीच भारत पर कई आक्रमण किए। वे अफगानिस्तान के गजनी (Ghazni) से आकर भारत पर अपनी सल्तनत का प्रसार करने का प्रयास किया। उनके आक्रमण भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे दिल्ली सलतनत की नींव रखने में सफल रहे और इसके बाद के सुल्तानों के लिए एक प्रमुख उत्थान का कारण बने।

  1. पहला आक्रमण (1175-1178): मोहम्मद गोरी का पहला आक्रमण भारत पर 1175 से 1178 तक हुआ था, जब उन्होंने पंजाब और गुजरात क्षेत्रों पर हमला किया। इस आक्रमण में वे सम्राट प्रिथ्वीराज चौहान के साथ टरण के युद्ध में भिड़े, लेकिन जीत नहीं पा सके।
  2. दूसरा आक्रमण (1191): मोहम्मद गोरी ने 1191 में फिर से पृथ्वीराज चौहान के खिलजी सेनापति के खिलफ युद्ध किया, जिसमें पृथ्वीराज चौहान हार गए। इस युद्ध को तराई के युद्ध के नाम से जाना जाता है।
  3. तीसरा आक्रमण (1192): उसके बाद, मोहम्मद गोरी ने 1192 में पुनः तराई के युद्ध में भाग लिया और इस बार वह विजयी रहे, जिसके परिणामस्वरूप वह दिल्ली क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया और दिल्ली सलतनत की नींव रखी।

इन आक्रमणों के बाद, मोहम्मद गोरी ने भारतीय उपमहाद्वीप पर अपने आदिकालीन सल्तानों को स्थापित करने में मदद की और दिल्ली सलतनत की नींव रखी, जिससे भारत में इस्लामी सलतनत का आरंभ हुआ।

राज्य सीमा

मोहम्मद गोरी की सल्तनत की राज्य सीमा उनके समय के अनुसार बदलती रही, क्योंकि वे भारत में अपने आक्रमणों के परिणामस्वरूप नए क्षेत्रों को अपने अधीन कर रहे थे। उनकी सल्तनत का केंद्र गजनी (Ghazni) था, जो कि आजकल के पाकिस्तान में है, और उन्होंने इस सल्तनत के तहत भारत के पंजाब, सिंध, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, और हिमाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों पर आक्रमण किया।

मोहम्मद गोरी की सल्तनत का क्षेत्र उसके समय के आक्रमणों के आधार पर बदलता रहा, लेकिन उनकी मुख्य ध्यान केंद्र भारत के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों पर ही था। उन्होंने अपने सल्तनत की सीमा को दक्षिण में सिंध नदी, पूर्व में गंगा नदी, उत्तर में हिमालय और पश्चिम में अरावली पर्वतमाला तक बढ़ा दिया।

मोहम्मद गोरी की सल्तनत की सीमा के बारे में अधिक विस्तारित जानकारी केवल उनके आक्रमणों के विशिष्ट दौर के अधित्याग के आधार पर उपलब्ध है, और इसमें बदलाव हो सकता है जब उनके अधीन किए गए क्षेत्रों के विचार से अधिक विश्लेषण किया जाता है।

पृथ्वीराज चौहान से युद्ध

मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच का प्रमुख युद्ध, 1191 में लड़ा गया था और इसे “तराई का युद्ध” या “प्रिथ्वीराज रासो” (Battle of Tarain) के रूप में जाना जाता है। यह युद्ध मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच दिल्ली क्षेत्र की नियंत्रण के लिए लड़ा गया था।

  1. पृथ्वीराज चौहान की पक्ष: पृथ्वीराज चौहान ने इस युद्ध को दिल्ली क्षेत्र की सुरक्षा के लिए लड़ा था। उनकी सेना में हजारों गांवों के लोग थे और वे दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद गोरी के आक्रमण का विरोध करने के लिए तैयार थे।
  2. मोहम्मद गोरी की पक्ष: मोहम्मद गोरी ने यह युद्ध भारत में अपनी सल्तनत का प्रसार करने के लिए लड़ा था। वे गजनी से आकर भारत के पंजाब क्षेत्र में अपनी आधिकारिक सत्ता को बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे।

युद्ध के परिणामस्वरूप, मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया और दिल्ली क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया। हालांकि पृथ्वीराज चौहान ने प्रथम युद्ध में जीत हासिल की थी, लेकिन दुसरे युद्ध में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

इस युद्ध के परिणामस्वरूप, मोहम्मद गोरी ने दिल्ली क्षेत्र में अपनी सल्तनत की नींव रखी, जिससे दिल्ली सलतनत का आरंभ हुआ और इस्लामी सलतनत की स्थापना हुई।

भारी पराजय

मोहम्मद गोरी की भारी पराजय का प्रमुख कारण उनकी दिल्ली क्षेत्र में हुई युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के हाथों हुई थी। यह युद्ध 1191 में तराई क्षेत्र में लड़ा गया था और इसे “तराई का युद्ध” या “प्रिथ्वीराज रासो” (Battle of Tarain) के रूप में जाना जाता है।

इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की सेना ने मोहम्मद गोरी की सेना को हराया और गोरी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। मोहम्मद गोरी ने इस युद्ध में अपनी सेना के साथ असंख्यक सैन्यक गांवों और शहरों के लोगों को भी साथ लिया था, लेकिन उन्होंने फिर भी हार का सामना किया।

पृथ्वीराज चौहान की यह जीत मोहम्मद गोरी के लिए एक महत्वपूर्ण पराजय थी, लेकिन गोरी ने इसके बाद तय किया कि वह फिर से आकर भारत पर हमला करेगा। इसके परिणामस्वरूप, 1192 में मोहम्मद गोरी ने पुनः तराई के युद्ध में भाग लिया और इस बार वह विजयी रहे, जिसके परिणामस्वरूप वह दिल्ली क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया और दिल्ली सलतनत की नींव रखी।

पृथ्वीराज चौहान की पराजय और मृत्यु

मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच का मुख्य युद्ध 1192 में तराई क्षेत्र के पास लड़ा गया था, और इसे “तराई का युद्ध” या “प्रिथ्वीराज रासो” (Battle of Tarain) के रूप में जाना जाता है। इस युद्ध के परिणामस्वरूप, पृथ्वीराज चौहान को हार का सामना करना पड़ा और उनकी मृत्यु हुई।

मोहम्मद गोरी के साथ युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की सेना कई प्रमुख कारणों से हारी:

  1. उनकी लक्ष्मणा का विश्वास: पृथ्वीराज चौहान की सेना में एक भरपूर अंग्रेजी भाषा का ज्ञाता और विश्वासी सलाहकार था जिसका नाम लक्ष्मणा था। लक्ष्मणा के सुझाव पर पृथ्वीराज चौहान ने सेना को एक नरकरी चलाने के लिए रात के अंधेरे में आगे बढ़ा दिया, लेकिन यह उनके लिए एक सफलता नहीं था।
  2. आक्रमण का अनदेखा रास्ता: मोहम्मद गोरी ने युद्ध के समय अपनी सेना को पृथ्वीराज चौहान की सेना के पीछे गुप्त रूप से पास किया, जिससे पृथ्वीराज चौहान की सेना को आक्रमण के लिए तैयार नहीं रहा।
  3. प्रिथ्वीराज की सेना की असावधानी: युद्ध के प्रारंभ में पृथ्वीराज चौहान की सेना अत्यंत असावधान थी और वे मोहम्मद गोरी की सेना के अप्रत्यक्ष हमले के खिलाफ तैयार नहीं थे।

इस पराजय के परिणामस्वरूप, पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गोरी की बंदूकों के सामने हार का सामना करना पड़ा और वे गोरी की कैद में चले गए। इसके बाद, मोहम्मद गोरी ने दिल्ली क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया और दिल्ली सलतनत की नींव रखी।

युद्ध स्थल चंदवार

मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच का युद्ध स्थल चंदवार (Chandwar) था। इस युद्ध को “तराई का युद्ध” या “प्रिथ्वीराज रासो” (Battle of Tarain) के नाम से भी जाना जाता है। चंदवार युद्ध, 1192 में लड़ा गया था और यह युद्ध मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच दिल्ली क्षेत्र की नियंत्रण के लिए लड़ा गया था।

यह युद्ध चंदवार (जिला यमुनानगर, हरियाणा, भारत) के पास लड़ा गया था, जो कि आजकल हरियाणा राज्य में स्थित है। यह युद्ध मोहम्मद गोरी के और पृथ्वीराज चौहान के बीच भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण पल है, क्योंकि इसका परिणामस्वरूप गोरी ने यह युद्ध जीतकर दिल्ली क्षेत्र को अपने अधीन किया और दिल्ली सलतनत की नींव रखी।

सिक्के

मोहम्मद गोरी के समय में जो सिक्के चालीसगढ़, अफगानिस्तान, और भारतीय उपमहाद्वीप में प्रयुक्त होते थे, वे इस्लामिक सलतनत के लिए चाँदी और सोने के सिक्के होते थे। इन सिक्कों पर अरबी और फारसी भाषा में कलिग्राफी और इस्लामी ग्राफिक्स की चित्रण किया जाता था, और उनमें सुल्तान के नाम, सलतनत का नाम, और इस्लामी चिह्न शामिल होते थे।

इन सिक्कों की दरें और डिज़ाइन समय के आधार पर भिन्न थीं और वे सल्तनत के आदर्शों और स्थिति के हिसाब से बनाए जाते थे। मोहम्मद गोरी के समय के सिक्कों को आजकल इतिहासी और औद्योगिक संग्रहणों में मौजूद हो सकता है, और वे समाचार पत्रिकाओं, ज्ञानमाला, और संग्रहणों में प्राप्त किए जा सकते हैं।

मृत्यु

मोहम्मद गोरी की मृत्यु की जानकारी के साथ-साथ कई विभिन्न तारीखें मिलती हैं, लेकिन आमतौर पर सबसे प्रमुख तारीख 1206 ईसा पूर्व होती है।

मोहम्मद गोरी की मृत्यु के पीछे का एक प्रमुख कारण यह था कि वह भारत में अपनी सल्तनत को बढ़ाने के लिए बार-बार आक्रमण करते रहे थे और उनके युद्ध में हार जाने के बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया था। उनकी मृत्यु के बाद, उनके भाई और सदाये वजीर मुइज़्ज़ उद-दीन मुहम्मद ग़ोरी ने सल्तनत का प्रशासन संभाला।

मोहम्मद गोरी का युगबद्ध समय और मृत्यु की विस्तारित जानकारी इतिहासकारों के अनुसार उपलब्ध है, लेकिन इसके बावजूद यह सच है कि उनके आक्रमणों ने भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला और उन्होंने दिल्ली सलतनत की नींव रखी

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