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मेरी प्रिय पुस्तक ‘श्री रामचरितमानस’ पर निबंध – Meri Priya Pustak Shri Ramcharitmanas par nibandh

रूपरेखा – 1. प्रस्तावना 2. विषयवस्तु 3. लोकप्रियता के ( ख ) महान आर्दशों की प्रस्तुति (ग) लोक संग्रह की भावना (ङ) आशा और विश्वास का मणिदीप । 4. काव्य के रूप में 5 – आधार – ( क ) समन्वय का प्रशंसनीय प्रयास पूर्ण (घ) धर्म और आध्यात्मिकता का आधार उपसंहार ।

Meri Priya Pustak Shri Ramcharitmanas par nibandh
Meri Priya Pustak Shri Ramcharitmanas par nibandh

1. प्रस्तावना – किसी देश की सभ्यता संस्कृति के संरक्षण एवं उसके प्रचार-प्रसार में पुस्तकें अहम भूमिका निभाती हैं। पुस्तकें ज्ञान का संरक्षण भी करती हैं। यदि हम प्राचीन इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं, तो इसका अच्छा स्रोत भी पुस्तकें हैं।
पुस्तकें शिक्षा का प्रमुख साधन तो है ही इसके साथ ही इनसे अच्छा मनोरंजन भी होता है।

पुस्तकों के माध्यम से लोगों में सद्वृत्तियों के साथ-साथ सृजनात्मकता का विकास भी किया जा सकता है। इन्हीं महत्त्वों के कारण पुस्तकों से मेरा विशेष लगाव रहा है । पुस्तकों ने हमेशा एक अच्छे मित्र के रूप में मेरा साथ दिया है। मैंने अब तक कई पुस्तकों का अध्ययन किया है, इनसे कई पुस्तकें मुझे प्रिय हैं किन्तु सभी पुस्तकों में “रामचरितमानस मेरी सर्वाधिक प्रिय पुस्तक है।

2. विषयवस्तु – रामचरितमानस का विषय लोक-पावन, मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम का चरित्र है। सूर्यवंशी सम्राट दशरथ के यहाँ जन्म लेकर अयोध्या की विधियों में क्रीड़ा करने वाले राम परम आज्ञाकारी एवं मेधावी बालक हैं।

वह जनक की राजसभा में शिव के इन्द्रधनुष को खण्डित करके जगदम्बा सीता का पाणिग्रहण करते हैं। कैकेयी के षडयंत्र के कारण महाराजा दशरथ का मनोरथ विफल होता है और युवराज के स्थान पर राम वनवासी होते हैं।

चौदह वर्ष के वनवास में सीता का लंकापति रावण द्वारा अपहरण, सेतुबन्ध, राम-रावण युद्ध, लंका – विजय और तत्पश्चात् राज्याभिषेक, इन सभी घटनाओं का महाकवि तुलसीदास ने अपने प्रतिभा- कौशल द्वारा महाकाव्य की काया में बाँधा है। अनेक अवान्तर कथाओं के साथ इस अद्वितीय साहित्य-सृष्टि में न केवल रचनाकार को ही बल्कि हिन्दी को भी विश्व साहित्य में महान गौरव का पात्र बनाया है।

3. लोकप्रियता का आधार – रामचरितमानस की लोकप्रियता के पीछे अनेक उदाहरण हैं –

( क ) समन्वय का प्रशंसनीय प्रयास – तुलसी ने मानस में समन्वय की उदार भावना को स्थान प्रदान किया है। इसमें समाज के प्रत्येक वर्ग का प्रतिनिधित्व है और प्रत्येक समुदाय के उपयोग की सामग्री है। लौकिक और आध्यात्मिक, ज्ञानी और भक्त, पण्डित और साधारण ज्ञान, गृहस्थ और सन्यासी सभी को सन्तोष करना पड़ता है यह महाग्रन्थ ।

( ख ) महान आर्दशों की प्रस्तुति – रामचरित मानस की लोकप्रियता का दूसरा कारण है महान आदर्शों का प्रस्तुतीकरण । जीवन का ऐसा कौन-सा क्षेत्र है जो मानस से अपनी मंजिल का दिशा संकेत न प्राप्त कर रहा हो ।

ब्रह्मचारी, ग्रहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यासी, राजा, प्रजा इन सभी की कसौटी मानस में विद्यमान है। पिता दशरथ सा, माता कौशल्या सी, पत्नी सीता सी, पुत्र राम सा, भाई भरत और लक्ष्मण जैसा, गुरु वशिष्ठ सा, दास हनुमान सा, भक्त शबरी जैसा, कहाँ तक गिनाया जाए, तुलसी ने जीवन का कोई अंग अछूता नहीं छोड़ा। यहाँ मित्रता और शत्रुता का आदर्श भी उन्होंने प्रस्तुत किया है।

(ग) लोक संग्रह की भावना से पूर्ण- यद्यपि तुलसीदास जी के अनुसार उन्होंने अपने मन के सुख के लिए लेकिन उसके आत्मसुख में लोक का सुख समाया हुआ है। उनके राम लोक को त्रास और मानस की रचना की है, अत्याचार से मुक्त करने, दुष्टों का दलन करने तथा धर्म की रक्षा करने के लिए अवतार लेते हैं—

जब-जब होहि धरम के हानि। बाढ़ाहिं असुर अधम अभिमानी ।
तब तब धरि प्रभु विविध शरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा ॥

वर्णाश्रम व्यवस्था के समर्थक होते हुए भी उन्होंने प्रत्येक वर्ष को उचित सम्मान दिलाया है। उनके वशिष्ठ निषाद को बरबस गले लगाते हैं
रामसखा मुनि बरबस भेंटा। जुन महिं लुठत सनेह समेटा ।

(घ) धर्म और आध्यात्मिकता का आधार – रामचरितमानस ने सामान्य जन के लिए सुलभ धर्म प्रस्तुत किया है। इस तुलसी धर्म में ” नाना पुराण निगमागम” का सार संचित है। उसमें धर्म और आध्यात्मकार नीरस उपदेश न होकर, आचरण का उत्कर्ष हैं। सभी धर्म-सम्प्रदाय उसे मुक्त भाव से अपना सकते हैं। इसमें धर्म के सभी मूल तत्व विद्यमान हैं। तुलसी आध्यात्मिकता को तर्क-वितर्क और तत्व चिन्तन से बाहर निकालकर उसे सामान्य जन की भाव भूमि पर टिकाया है।

(ङ) आशा और विश्वास का मणिदीप – ‘मानस’ ने निराशा और उत्पीड़न के अंधकार मे डूबी एक पूरी की पूरी जाति को सहारा दिया था। आज भी ‘मानस’ ‘अप्रासंगिक’ नहीं हुआ है। वह केवल एक धार्मिक ग्रन्थमात्र नहीं है। वह करोड़ों मानवों को जीवन की गूढ़ समस्याओं में मार्ग दिखाने वाला है। सामाजिक और पारिवारिक समरसता की अमूल्य भेट वह आज भी हमें प्रदान कर सकता है। महाराजा दशरथ के पुत्र-वियोगी हृदय को जिन पंक्तियों से धीरज बँधाया गया वे प्रत्येक गृहस्थ को आज भी संताप के भीषण क्षणों में सहरा देती है – था,

धीरज धरिय न पाइअपारु।
नाहिं न बूइड् सब परिबारु ॥

अधीरता के भीषण क्षणों में इस अर्द्धाली ने मुझे भी धीरज बँधाया है तभी तो ‘मानस’ मेरा प्रिय ग्रन्थ है।

4. काव्य के रूप में – रामचरित मानस पर धार्मिकों और काव्य प्रेमियों का समान अनुराग रहा है। यह केवल हिन्दुओं का धर्म ग्रन्थ नहीं है बल्कि विश्व – साहित्य की अनुपमकृति रामचरितमानस एक काव्य के रूप में भी मुझे अत्याधिक प्रभावित करता है। इसके भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही अनुपम है।

मानव जीवन की सभी भावनाओं, परिस्थितियों, उत्कर्ष और अपकर्षों को इसमें स्थान प्राप्त हुआ है। पिता-पुत्र, पति-पत्नी, गुरु-शिष्य, भाई-भाई आदि सभी जीवन-सम्बन्धों को विचार का विषय बनाया गया है। रस, छन्द, अलंकार, भाषा, शैली आदि समस्त कला तत्व अपने उत्कृष्ट रूप में विद्यमान है। इसीलिए इन्हें पढ़ने में आनन्द आता है।

5. उपसंहार – जीवन के हर सम्बन्धों पर आधारित ‘रामचरितमानस’ के दोहे एवं छन्द आम जन में अभी भी कहावतों की तरह लोकप्रिय है। लोग किसी भी विशेष घटना के सन्दर्भ में इन्हें उद्धृत करते हैं। लोगों द्वारा प्राय: उद्धृत किए जाने वाले दोहे की एक- एक पंक्ति का उदाहरण देखिए जो ‘रामचरितमानस’ से लिया गया है –

सकल पदारथ हैं जग माहीं । कर्महीन नर पावत नाहीं ।
“रामचरितमानस” को भारत में सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला ग्रन्थ कहा जाता है। विदेशी विद्वानों ने भी इसकी खूब प्रशंसा की है। इसका अनुवाद विश्व की कई भाषाओं में किया गया है किन्तु अन्य भाषाओं में अनुदित “रामचरितमानस” में वह काव्य सौन्दर्य एवं लालित्य नहीं मिलता जो मूल रामचरित मानस में है।

इसको पढ़ने का अपना एक आनन्द है। इसको पढ़ते समय व्यक्ति को संगीत एवं भजन से प्राप्त होने वाली शान्ति का आभास होता है। इसलिए भारत के कई मंदिरों में इसका विशेष रूप से नित्य पाठ किया जाता है।

हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में “रामचरितमानस” की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है। ‘रामचरितमानस’ आज भी उतना ही प्रासंगिक और प्रेरक है जितना सैकड़ों वर्ष पूर्व था। यह भारतीय संस्कृति का ‘वट-वृक्ष’ है जिस पर प्रत्येक जाति के विहग निसंकोच आश्रय ले सकते हैं। यही कारण है कि यह मेरा सर्वाधिक प्रिय ग्रन्थ है ।

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