आदर्श शिक्षक अथवा मेरा प्रिय अध्यापक अथवा अध्यापक का छात्र के प्रति कर्त्तव्य अथवा आदर्श अध्यापक के गुण
रूपरेखा – 1. प्रस्तावना 2. अध्यापक की वेशभूषा 3. विद्यालय की सेवाएँ 4. उपसंहार।

मेरा प्रिय अध्यापक पर निबंध 830 शब्दों में – Mera Priya Adhyapak per nibandh
1. प्रस्तावना – मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। उसे परिवार, मित्र, दुकानदार, डाक्टर आदि सभी की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे वह दूसरों के सम्पर्क में आता है, उसके जीवन का अनुभव क्षेत्र बढ़ता जाता है। अपने अनुभव हमारे मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ते हैं। ये अनुभव स्थाई और अमूल्य और दोनों प्रकार के होते हैं।
अवसर पड़ने पर ये शिक्षक की तरह हमें राह दिखाते हैं। शिक्षक तथा शिक्षा को श्रेष्ठ एवं महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता है। भारत में तो गुरू का स्थान ईश्वर से भी श्रेष्ठ बताया गया है। विद्यार्थी का विकास, उसकी भावी दिशा तथा समाज के भावी स्वरूप को निश्चित करने में शिक्षक का अमूल्य योगदान रहता है।
इस दृष्टि में प्रत्येक विद्यालय में आदर्श शिक्षक पाए जाते हैं। विद्यार्थी जीवन को बनाने तथा सँवारने में अध्यापक की अहम भूमिका होती है। कबीरदास ने कहा है-
“गुरू कुम्हार सिस कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़े खोट,
अन्तर हाथ सहार दे, बाहर-बाहर चोट।”
अध्यापक यद्यपि छात्र के साथ कठोर रहता है, लेकिन उसका हृदय छात्र की कल्याण-कामना से पूरिपूर्ण रहता है। गुरू के द्वारा ही ईश्वर का ज्ञान और ईश्वर का दर्शन कराया जाता है। गुरू ईश्वर से पूर्व पूजनीय है। इस तथ्य को सुस्पष्ट शब्दों में कबीरदास ने इस प्रकार कहा है-
“गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पाँय।
बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताय|| ‘
2. अध्यापक की वेशभूषा- मैं देवी प्रसाद इण्टर कालेज की कक्षा 12 का विद्यार्थी हूँ। मेरे प्रिय अध्यापक का नाम श्री शेषमणि त्रिपाठी है। वे मेरी कक्षा को हिन्दी एवं संस्कृत पढाते हैं। वे “सादा जीवन एवं उच्च विचार” में आस्था रखने वाले अध्यापक हैं। साहित्यिक लेखन एवं हिन्दी की पाठ्यपुस्तकें लिखने का कार्य भी करते हैं।
उनके व्यक्तित्व का प्रभाव मन-मस्तिष्क पर इतना गहरा पड़ता है कि मैंने उन्हें अपना प्रिय अध्यापक बना लिया है। वे एम०ए० और आचार्य हैं। वे कालेज में स्वच्छ वस्त्र पहनकर आते हैं। सादा वेशभूषा का विद्यार्थियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
दूसरों के प्रति दया, सहानुभूति और प्रेम का भाव रखना, गरीबो की सहायता करना, दिशाहीन लोगों को दिशा-निर्देश करना, नियमितता, समयबद्धता, परिश्रमपूर्वक अध्यापन करना, अपने कार्य के प्रति निष्ठा आदि अनेक गुण विद्यमान हैं। मैंने उन्हें कभी क्रोध करते नहीं देखा। अनुचित बात पर वे छात्रों को प्रेम से समझाते हैं। उनकी आँखों का स्नेह और गम्भीरता ही छात्र के लिए डॉट का पर्याय बन जाती है।
3. विद्यालय की सेवाएँ— श्रीमान शेषमणि त्रिपाठी जी विद्यालय के कार्यों को पूर्ण निष्ठा से सम्पन्न करते हैं। वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के लिए छात्रों को तैयार करते हैं, छात्रों में लेखन की प्रतिभा को विकसित करते हैं। यदि उनके छात्र कक्षा में सही प्रकार से काम नहीं कर पा रहे हैं तो उन्हें अतिरिक्त समय देकर पढ़ाते हैं।
मुझे भी उन्होंने अतिरिक्त समय देकर पढ़ाया था। विद्यालय की पत्रिका का सम्पादन उनका दायित्व है। उनकी कक्षा का अनुशासन काफी अच्छा है। सभी विद्यार्थी उन्हें पसन्द करते हैं। वे एक आदर्श शिक्षक हैं। वे समय के पाबन्द हैं। समय से पूर्व कालेज में आ जाते हैं। हमने कभी इन्हें विलम्ब से आते हुए नहीं देखा।
वे विद्यार्थी की व्यक्तिगत एवं मानसिक समस्याओं का भी समाधान करते हैं। शारीरिक दण्ड देना वह जरूरी नहीं समझते। एक आदर्श शिक्षक के उनमें सभी गुण हैं। वे छात्रों की मानसिक क्षमताओं से उन्हें अवगत कराते हैं। वे छात्रों की बुद्धि को उत्प्रेरित करते हैं। वे छात्रों के प्रश्नों का उत्तर बड़े प्रेम से देते हैं। वे सदैव विद्यार्थियों के हित की बात सोचते हैं।
यदि कोई छात्र इनके घर पर विषय से सम्बन्ध में कठिनाई निवारण करने के लिए जाता है तो बड़े प्रेम से उसकी कठिनाई को दूर करते हैं। सभी छात्र त्रिपाठी जी का हृदय से सम्मान करते हैं और बड़ी श्रद्धा के साथ उन्हें ‘गुरुजी’ कहते हैं।
4. उपसंहार – मेरा जीवन धन्य है, जो मुझे त्रिपाठी जी की कक्षा में पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। वस्तुतः आज भी शिक्षक यदि चाहे तो सच्चे अर्थों में जीवन-निर्माता और राष्ट्र-निर्माता का गौरव प्राप्त कर सकता है। अध्यापक ही देश की नौका के भावी कर्णधारों का निर्माता होता है। भारत में इसकी भूमिका के लिए उसे सदा से ही सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर रहा है। कबीर तो उसकी महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं
‘कबीरा ते नर अंध हैं, गुरू से कहते और
हरि रूठे गुरू ठौर है, गुरू रूठे नहिं ठौर।।
खेद की बात है कि भारत सरकार ने अभी इस महान व्यक्ति की ओर ध्यान नहीं दिया है। तभी तो देश महान संकट के दौर से गुजर रहा है। देश के भविष्य के लिए शिक्षक की ओर सरकार और समाज को ध्यान देना ही पड़ेगा। शिक्षक हमारे समाज की युवा पीढ़ी के भविष्य का कर्णधार है यदि शिक्षक असन्तुष्ट है तो पूरा समाज अंधकार में हो जायेगा। अतः आदर्श अध्यापक श्री शेषमणि त्रिपाठी की तरह ही होना चाहिए।