भारतीय महापुरुष अथवा महात्मा गाँधी अथवा मेरा प्रिय नायक अथवा मेरा आदर्श जननायक अथवा अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी अथवा महापुरुष जिसने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया
रूपरेखा – 1. प्रस्तावना 2. जीवन-वृत्त 3. देश-सेवा 4. विचारधारा 5. उपसंहार ।

महात्मा गाँधी पर निबंध 920 शब्दो मे – Mahatma Gandhi par nibandh
1. प्रस्तावना – जब-जब मानवता हिंसा, स्पर्द्धा और शोषण से त्रस्त होती है, अहंकारी शासको के क्रूर दमन से कराहने लगती है तो परमपिता की करुणा, कभी कृष्णा, कभी राम, कभी गौतम और कभी गाँधी बनकर इस धरती पर अवतरित होती है तथा घायल मानवता के घावों को अपनी स्नेह-संजीवनी के रस द्वारा धोती है। कवि ने कहा है—
जो जन-जन के जीवन का विष पीते हैं;
अमृत का पावन झरना बन जीते हैं।
वे ही जन-नायक, जन-जन हृदय भुवन में,
युग-युग तक सुरभित होते स्मृति-उपवन में ॥
2. जीवन-वृत्त – निर्माणोन्मुख आदर्शों के अन्तिम ‘दीपशिखोदय’ मानव आत्मा के प्रतीक, दलित देश दुर्दम नेता श्री मोहनदास करमचन्द गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 ई० को काठियाबाड़ जिले के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था। आपके पिता करमचन्द पहले पोरबन्दर के तथा बाद में राजकोट तथा बीकानेर के दीवान थे।
आपकी माता पुतलीबाई व्रत, उपवास तथा पूजा-पाठ में विश्वास रखने वाली एक धार्मिक महिला थीं। अपने परिवार विशेषतया माता के प्रभाव से आप बचपन में ही सत्य और अहिंसा के पुजारी बन गए। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा राजकोट में हुई। आपका विवाह 13 वर्ष की अल्पायु में कस्तूरबा गाँधी के साथ हुआ था।
सन् 1887 ई० में मैट्रिक की परीक्षा में उर्तीण होने के में बाद आप कानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड चले गए और वहाँ से तीन वर्ष में बैरिस्ट्री पास करके लौट आए। भारत आकर आपने बम्बई तथ राजकोट में वकालत प्रारम्भ की किन्तु सत्य के पक्षपाती होने के कारण आपको इसमें सफलता प्राप्त न हो सकी।
सन् 1893 में आप पोरबन्दर के एक धनी व्यापारी के मुकदमें की देख-रेख के लिए अफ्रीका गए। सच्ची लगन तथा कठिन परिश्रम के कारण आप इस मुकदमे में सफल हो गए। यहाँ पर रहने वाले भारतीयों की दशा देखकर उनका हृदय द्रवित हो उठा।
उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतवासियों के साथ होने वाले अत्याचारों का विरोध किया। गाँधजी के सतत प्रयत्नों के कारण दक्षिण अफ्रीका के मजदूरों और भारतीयों की दशा में काफी सुधार हुआ। आप सन् 1914 ई० में अफ्रीका में भारतीयों का मस्तक ऊँचा करके भारत लौट आए।
3. देश-सेवा – दक्षिण अफ्रीका में सफलता प्राप्त कर गाँधी जी ने स्वदेश- सेवा के क्षेत्र में पदार्पण किया। भारत में अंग्रेजी शासन से पीड़ित जनता के उद्धार का व्रत इस महात्मा ने ग्रहण किया। यद्यपि भारत में अनेक स्वदेश प्रेमी इसी प्रयास में लगे हुए थे, लेकिन गाँधी जी एक अपूर्व संघर्ष-पद्धति को लेकर स्वतन्त्रता संग्राम में अवतरित हुए-
ले ढाल अहिंसा की कर में, तलवार प्रेम की लिए हुए।
आए तुम सत्य समर करने, ललकार क्षेम की किए हुए।
इस अद्भुत रण पद्धति के सन्मुख हिंसा और असत्य की शक्तियाँ नहीं टिक सकीं। अंग्रेजी शासन का सम्पूर्ण बल गाँधजी के विरूद्ध सक्रिय हो गया। दमन-चक्र हो आरम्भ गया। दमन-चक्र आरम्भ हो गया। इसके फलस्वरूप 1920,1932 तथा 1942 में आन्दोलन की पुनरावृत्ति हुई। जेलें भर गयीं किन्तु जनता ने अपनी शक्ति को और अपने मार्गदर्शक को पहचान लिया। तभी तो-
चल पड़े जिघर ‘दो डग’ मग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर।
उठ गयी जिधर भी ‘एक दृष्टि’ उठ गए कोटि दृग इसी ओर ॥
गाँधी जी द्वारा प्रदर्शित यह मार्ग देश की स्वतन्त्रता की मंजिल तक ले गए। जिसके राज्य में सूर्यास्त नहीं होता था, वह बिट्रिश सत्ता गाँधी जी के चरणों में नत हो गई। गाँधी जी के नेतृत्व में भारत ने 15 अगस्त 1947 ई० को स्वतंत्रता का • अमूल्य उपहार प्राप्त हुआ। इससे बढ़कर देश की सेवा क्या हो सकती है?
4. विचारधारा — गाँधी जी ने यद्यपि कोई सर्वथा नवीन विचार धारा संसार के समक्ष प्रस्तुत नहीं की, किन्तु महान विचारधारा को आचरण में परिणत करके दिखाया। आप सत्य और अहिंसा के सच्चे पुजारी थे। आपने जीवनभर सत्य ओर अहिंसा के सफल प्रयोग किए और इसी के बल पर भारत को स्वतंत्रता दिलाई। महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त’ ने भी गाँधी जी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि में कहा है
जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर चेतना, अहिंसा, नम्र ओज,
पशुता को पंकज बना दिया, तुमने मानवता का सरोज
गाँधी जी को मनुष्य की महानता में विश्वास था। वह अपराधी के नहीं अपराध के विरोधी थे। हृदय परिवर्तन द्वारा समाज का सुधार करने में उनका पूर्ण विश्वास था। वह छुआ-छूत, ऊँच-नीच, धार्मिक भेदभाव और हर प्रकार के शोषण के विरोधी थे। हरिजनों के उद्धार में विशेष रुचि थी। इसी प्रकार गाँधी जी में अन्य विशेषताएँ भी हैं जो उनकी सहायता का प्रमाण है; जैसे- दूरदर्शिता, भावात्मक एकता, प्रेम, सदाचार, सहयोग एवं सद्भावना की मूर्ति, अपूर्व देश-भक्ति एवं दया व करुणा के प्रति ओत-प्रोत का हृदय।
5. उपसंहार – 30 जनवरी 1948 ई० की एक काली शाम आई। प्रवचनरत महापुरुष गाँधी जी के वक्ष में नाथूराम गोडसे ने गोलिया उतार दीं। आशयों का दीपक बुझ गया। भले ही गाँधी जी आज तन से उपस्थित नहीं हैं किन्तु वह मुझ जैसे कोटि-कोटि भारतवासियों के मन में विराज रहे हैं। फूल झर गया लेकिन उसकी संजीवनी सुगंध अब भी मानवता को साँसों को महका रही है –
सुमन झर गया तो क्या, महक उसकी अभी बाँकी है,
इस तरह जीना और इस तरह मरना, सब की किस्मत नहीं होती।
आपने हिन्दु-मुस्लिम एकता, अछूतोद्वार, ग्राम-सुधार और खादी-प्रचार के लिए भरसक प्रयत्न किए। आपकी महानता का वर्णन करना मानव शक्ति के लिए असम्भव है। हम तो केवल इतना ही कह सकते हैं-
“पूर्ण पुरुष विकसित मानव, तुम जीवन शुद्ध अहिंसक।
हे मुक्त हुए तुम, मुक्तजन, जन-बन्धन महात्मनः॥