रूपरेखा — 1. प्रस्तावना 2. भारत में किसान का महत्त्व 3. भारतीय कृषक का जीवन 4. भारतीय किसान की समस्याएँ 5. किसान की समस्याओं का समाधान 6. उपसंहार ।
“बरसा रहा है रवि अनल, भूतल तवा-सा जल रहा,
है चल रहा सन-सन पवन, तन से पसीना बह रहा।
देखो, कृषक शोणित सुखाकर, हल तथापि चला रहे,
किस लोभ से इस आँच में, निज शरीर जला रहे ॥ “

किसान पर निबंध – Kisan Par Nibandh Hindi mein (800 शब्द)
1. प्रस्तावना – भारत-पुत्र किसान से भला कौन सुपरिचित न होगा? यही-अन्नदाता ही वास्तव में देश का सच्चा नागरिक है। यह एक ऐसा तपस्वी है, जो अपनी तपस्या का समस्त फल परोपकार में ही समर्पित कर देता है। परहित और पर-सेवा ही उसका मूल मंत्र है।
वह अपने हल और बैलों के सहारे ऊसर (बंजर) – भूमि के सीने को फोड़कर हरियाली का स्रोत निकालता है। सर्दी, धूप, वर्षा, ओले, आदि उसके सम्मुख अपने को परास्त – सा अनुभव करते हैं। वह स्वयं भूखा रहकर देश के करोड़ों लोगों के निमित्त अन्न प्रदान करता है। भला, ऐसे परोपकारी एवं सहृदय से कौन अपरिचित रह सकता है?
2. भारत में किसान का महत्त्व – भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ की लगभग 60% जनता गाँवों में निवास करती। गांव का मुख्य व्यवसाय कृषि ही है और-
है घास-फूस की झोपड़ियाँ, इनमें ही जीवन चलता है।
दिन-रात परिश्रम में पिसता, टुकड़ों में मानवपलता है।।
भारतीय कृषक की प्रमुख समस्या अशिक्षा है। अज्ञान उसके घर-आँगन के अतिथि बन गए हैं। शिक्षा के अभाव में किसान न तो खेती के उन्नत तरीकों को जानता है और न ही अपने अधिकारों के प्रति सजग ही है। निरक्षर होने के कारण वह अनेक कुरीतियों से घिरा हुआ है। वह शिक्षा के अभाव में अनाचार, वैमनस्य, कलह, हिंसा, आदि से ग्रस्त है।
अधिक सरलता भी किसान के लिए एक समस्या बन जाती है। उसके सीधेपन तथा सरलता का लाभ उठाकर साहूकार, व्यापारी और आढ़तिया उसे खूब लूटते हैं। परिश्रम किसान करता है तथा जेबें भरती हैं साहूकार की।
गाँवों में किसान के लिए स्वास्थ्य तथा मनोरंजन के समुचित साधनों का सर्वथा आज भी अभाव है। शिक्षा तो उसके लिए गूलर का फूल है। वह तो खेतों में आँखें खोलता है और वहीं बन्द भी कर लेता है। किसानों के लिए एक समस्या यह भी है कि उसके कल्याण की समस्त योजनाएँ-कृषि बीमा, ॠण तथा खाद आदि नगर तक केन्द्रित रहते हैं।
इसलिए किसानों को हर बात के लिए नगरों का मुँह ताकना पड़ता है। इसी कारण कृषि का बेताज बादशाह है— किसान। यदि गाँवों में से कृषक के अस्तित्व को नकार दिया जाए तो देश शून्य ही रह जायेगा। राष्ट्रपिता गाँधी जी का कथन है—
“भारत का हृदय गाँवों में बसता है। गाँवों में ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते हैं। ये किसान ही नगरवासियों के अन्नदाता हैं, सृष्टि पालक हैं।”
3. भारतीय कृषक का जीवन- भारतीय किसान का जीवन आडम्बर रहित और स्वभावतः सरल तथा शान्तिप्रिय है। किसान सदैव किसी न किसी चुनौती से घिरा रहता है। उसे नित्य कठोर-जीवन जीना पड़ता है। वह छल, कपट तथा धोखाधड़ी में कभी विश्वास नहीं करता। विश्व कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने ठीक ही कहा है—
“यदि तुम्हें ईश्वर के दर्शन करने हों तो वहाँ चले जाओ जहाँ किसान जेठ की दोपहरी में हल जोत कर चोटी का पसीना एड़ी तक बहाता रहता है।”
आज औद्योगीकरण की अतिशयता के कारण हमारे गाँव सूने होते जा रहे हैं लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। कवि अश्वघोष के शब्दों में –
“चेहरे पर चुप्पी-सी ओढ़कर भाग रहे गाँव छोड़कर।
ये शहरों के भूखे हैं, लोग बहुत ही रूखे हैं ॥”
4. भारतीय किसान की समस्याएँ– यह कैसी विडम्बना है कि भारत का अन्नदाता स्वयं भूखा है। दुनियाभर का पेट भर कर भी वह अपने लिए भी अन्न नहीं जुटा पाता। उसका जीवन चारों ओर समस्याओं से घिरा रहता है। अभाव तथा दरिद्रता मानो उसके जीवन साथी हैं। ऋतुओं की भीषणता उसे पुरस्कार स्वरूप मिली है। निर्धनता ने तो उसके मुख को कान्तिहीन बना दिया है।
कृषक को न तो पेटभर अन्न मिलता है और न शरीर ढकने के लिए वस्त्र। सामाजिक दृष्टि से भी किसान की स्थिति ठीक नहीं है। गाँवों का असुरक्षित वातावरण भी कृषक की कठिनाईयों को बढ़ाए हुए है। दिन-रात चोर-डाकुओं का भय उसे आतंकित किये रहता है।
जीवन की पूर्ण सुरक्षा भी उसे प्राप्त नहीं हो पाती। आज भी उसे ऋण की सरलतम सुविधायें प्राप्त नहीं हो पा रही हैं। इस प्रकार किसान का जीवन समस्याओं तथा असुविधाओं की जीवन कहानी है।
5. किसान की समस्याओं का समाधान- भारतीय किसान की इस दयनीय स्थिति को देखकर हमारी सरकार ने विविध प्रकार की योजनाएँ जैसे—सर्वहित बीमा योजना, फसली ऋण व्यवस्था, भूमि सेना योजना, कृषक बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना आदि योजनाएँ तथा कार्यक्रम आरम्भ कर दिये हैं। फिर भी सरकारी भ्रष्टाचार तथा किसानों की उदासीनता ने इन योजनाओं को उजागर नहीं होने दिया है।
सरकार की ओर से पंचवर्षीय योजनाओं में ग्रामीण जीवन के सुधार के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। शिक्षा के प्रसार-प्रचार के लिए गाँवों में स्थान-स्थान पर बेसिक तथा पूर्वमाध्यमिक विद्यालय खोले जा रहे हैं। जिनमें नि:शुल्क शिक्षा तथा मध्याह्न भोजन की व्यवस्था भी कर दी गयी है। हमारी सरकारें गरीब किसानों को कम ब्याज पर ऋण दे रही है।
सरकार ने उनके लिए ग्रीन कार्ड की नयी योजना बनायी है। आवागमन के साधनों का विशेष विकास किया जा रहा है। ग्रामीण सहकारी समितियों को और अधिक कारगर बनाया जा रहा है। डाक-घर, चिकित्सालय तथा विशेष बैंकों की स्थापना करके कृषकों को बड़ी-बड़ी सुविधायें उपलब्ध करायी जा रही हैं। पंचायत तथा ग्राम सभाओं का और अधिक विकास किया जा रहा है। किसी-किसी राज्य में तो किसानों को निःशुल्क बिजली दी जा रही है।
आशा है कि उपर्युक्त सभी उपायों से कृषकों के जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन होंगे तथा उनका सर्वांगीण विकास और उन्नति का अभ्युदय हो सकेगा।
6. उपसंहार – भारतीय कृषक देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। अतः यह निश्चित हैं कि कृषक जीवन के सर्वांगीण विकास एवं उन्नति से ही भारत का मार्ग प्रशस्त होगा। ऐसी स्थिति में किसानों की विविध समस्याओं की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। उनकी समस्याओं के समाधान से ही हमारे राष्ट्र का विकास सम्भव है। सच तो यह है कि राष्ट्र उन्नति के नाम पर गाँवों के सुधार में संलग्न करना होगा।
कवि सोहनलाल द्विवेदी जी के शब्दों में-
“है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ?
वह बसा हमारे गाँवों में।