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बढ़ती जनसंख्या पर निबन्ध – Essay on Population in Hindi

बढ़ती जनसंख्या, घटती सुविधाएँ अथवा जनसंख्या विस्फोट अथवा बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या अथवा भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या अथवा जनसंख्या वृद्धि : कारण और निवारण

रूपरेखा—1. प्रस्तावना 2. बढ़ती जनसंख्या की समस्या 3. जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम 4. नियंत्रण के उपाय 5. उपसंहार।

Essay on Population in Hindi
Essay on Population in Hindi

1. प्रस्तावना – भारत की सरकार और जनता सभी क्षेत्रों में उन्नति करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है। किन्तु अभी वह सफलता प्राप्त नहीं हो रही है जिसकी अपेक्षा की जाती है। वर्तमान स्थिति को देखें तो यहाँ की जनसंख्या विस्फोटक समस्या के रूप में सन्मुख है। उन्नति में असफल होने का एक महत्वपूर्ण कारण यही है।

सन् 1947 के समय यहाँ की जनसंख्या 36 करोड़ थी। लगभग 70 वर्षों में यहाँ की जनसंख्या तीन गुना से ज्यादा बढ़ गई है। यदि यही स्थिति रही, तो आबादी की दृष्टि से भारत बहुत शीघ्र चीन को पीछे छोड़ देगा। इसी कारण से रेलों में भीड़, विद्यालयों में स्थान नहीं, सड़कों पर निकलना दूभर, वेतन कम पड़ रहे हैं, वस्तुएँ कम होती जा रही है।

पानी पर कतारें, राशन की दुकान पर लाइनें, एक स्थान रिक्त हुआ हजारों प्रार्थना पत्र आ रहे हैं। जहाँ देखिए भीड़-भाड़, शोर, तनाव, झगड़े। ऐसा पहले नहीं था। हाँ बड़े-बूढ़े लोग ऐसा ही कहते हैं। वे वीरान सड़कें, सुनसान दोपहरियाँ। दुकानदार बुला- बुलाकर समान देते थे। अब तो उन्हें बात करने की फुर्सत नहीं।

ध्यान दीजिए, “ऐसा क्यों हो रहा है?” इसका सिर्फ एक ही उत्तर है—जनसंख्या में असाधारण वृद्धि। एक अनार सौ बीमार फिर कैसे हो उपचार? हम प्रतिदिन सुनते हैं कि नए कारखाने, नए उत्पादन केन्द्र खुल रहे हैं लेकिन यह सब कहाँ जा रहा है?

2. बढ़ती जनसंख्या की समस्या – वस्तुतः देश की जनसंख्या ही उसकी शक्ति का आधार होती है, परन्तु अनियन्त्रित गति से इसका बढ़ते हुए जाना निश्चय ही देश के लिए बोझ सिद्ध होगा। सीमा से अधिक आबादी किसी देश के लिए गौरव की बात कदापि नहीं कही जा सकती। ऐसी दशा में तो जनसंख्या एक अभिशाप ही कही जाएगी।

भारत इस समय आबादी की दृष्टि से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। वास्तविक तथ्य यह है कि जब तक आर्थिक विकास होगा, तब तक जनसंख्या इतनी बढ़ चुकी होगी कि वह समग्र विकास को निगल जाएगी। प्रगति की सभी योजनाएँ धरी की धरी रह जाएँगी। जनसंख्या का अनियन्त्रित ढंग से बढ़ना समग्र विकास को नष्ट कर डालेगा।

यह संकट अनायास नहीं आया है। सन्तान को ईश्वरीय विधान और वरदान मानने वाला भारतीय समाज ही इस रक्तबीजी संस्कृति के लिए उत्तरदायी है। चाहे खिलाने को रोटी और पहनने को वस्त्र न हों, शिक्षा को शुल्क और रहने को छप्पर न हो, लेकिन अधभूखे, अधनंगे बच्चों की कतार खड़ी करना प्रत्येक भारतीय अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है। यदि इस जन वृद्धि पर नियन्त्रण न हो सका तो हमारे सारे प्रयोजन और आयोजन व्यर्थ हो जाएँगे तथा धरती पर पैर रखने की जगह नहीं बचेगी।

3. जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम – कुछ व्यक्तियों का विचार है कि जनसंख्या बढ़ने से हमारे मानव संसाधन में वृद्धि होती है। किन्तु इस वृद्धि ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। भोजन, वस्त्र तथा आवास जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी कठिन हो रहा है। इसके अतिरिक्त निर्धनता, बेरोजगारी, अशिक्षा, दुर्भिक्ष आदि विभिन्न समस्याओं का मूल कारण भी आबादी बढ़ना है।

वस्तुओं का उत्पादन तो गणितीय क्रम से होता है और जनसंख्या रेखागणित की दर से बढ़ती है। परिणामस्वरूप जनसंख्या और उत्पादन-दर में चोर-सिपाही का खेल आरम्भ हो जाता है। आगे-आगे जनसंख्या दौड़ती है और पीछे-पीछे उत्पादन वृद्धि।

आज हमारे देश में यही हो रहा है। जनसंख्या वृद्धि समस्त समस्याओं की जननी है। बढ़ती महँगाई, बेराजगारी, कृषि योग्य भूमि की कमी, उपभोक्ता वस्तुओं का अभाव, यातायात की कठिनाई, सबके मूल में यह बढ़ती जनसंख्या है।

4. नियन्त्रण के उपाय – भारत की इतनी जनसंख्या बढ़ चुकी है कि इस बढ़ती हुई वृद्धि को रोकने के उपाय करना अनिवार्य हो गया है। यदि हम इस विस्फोटक समस्या को दूर करना चाहते हैं तो सरकार द्वारा किए गए प्रयासों को अपनाना होगा, साथ ही देश की उत्पादन शक्ति बढ़ानी होगी।

इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए सरकार अपनी ओर से निरंतर प्रयत्न कर रही है। ‘परिवार कल्याण मंत्रालय’ के नाम से एक पृथक इकाई है जो परिवार सम्बन्धी योजनाएँ तो चलाती हैं, साथ ही परिवार नियोजन के कार्यक्रमों की प्रगति को नियंत्रित करती है।

इसके अतिरिक्त दो से अधिक बच्चों वाले माताा-पिता को कई सुविधाओं से वंचित करने जैसे कई उपाय भी सरकार की ओर से किए गए हैं। देश में वस्तुओं का अधिक उत्पादन हो तथा सभी क्षेत्रों में देश आत्मनिर्भर बने, बड़े उद्योगपतियों को इसमें कार्यरत होना होगा।

5. उपसंहार — भारत में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। देश में कुछ धार्मिक पुरुष, हिन्दुओं की जनसंख्या घटने के डर से परिवार नियोजन का विरोध करते हैं। ईसाई तथा इस्लाम धर्म भी अपने-अपने धार्मिक दृष्टिकोण से इसका विरोध करते हैं। ऐसी देश-विरोधी भावनाओं को राष्ट्र के उत्थान के लिए नष्ट करना नितान्त आवश्यक है।

आपातकालीन स्थिति में सरकार ने इस राष्ट्रीय समस्या का युद्ध स्तर पर समाधान निकालने का जो निश्चय किया था, उसको क्रियान्वित करने में कहीं-कहीं ज्यादती हुई। तथापि सरकार द्वारा चलाए गए कार्यक्रमों, सन्देशों तथा शिक्षा के प्रसार ने अच्छे परिणाम भी प्रदान किए हैं। जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित करने में ही देश की भलाई है। कवि शारदा प्रसाद शर्मा ‘शारदेन्दु’ जी कहते हैं-

“परिवार नियोजन करने से
निज देश प्रगति पर जाएगा।
मात-पिता बच्चो का जीवन,
खुशियाली से भर जाएगा।
तथा
” “परिवार नियोजन अपनाओ
अपने घर सुख-शांति बढ़ाओ।
पौष्टिक भोजन ऊँची शिक्षा,
अपने बच्चों को दिलवाओ।”


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