
भूमिका
मनुष्य के जीवन में सुख और दुख आते जाते रहते हैं सुख के दिनों को मनुष्य बड़े हैं आसानी से विदा लेता है पर दुख के दिनों को मनुष्य बड़ी है कठिन परिस्थिति मैं बिताता है ऐसे वक्त में मनुष्य को एक व्यक्ति की जरूरत महसूस होती है जो उसके दुख के दिनों में उसका साथ दें और उसके सारे दुखों को अपने साथ बांट ले दुख के दिनों में साथ निभाने वाला व्यक्ति उस मनुष्य का सच्चा मित्र होता है।
मित्र एक अनमोल धन
सच्चा मित्र है अपने मित्र के दुख के दिनों में अपने मित्र के साथ हमेशा खड़ा रहता है इसीलिए कहा जाता है कि सच्चा मित्र ही अनमोल धन होता है मित्र के रुप में या धन मिलना बहुत ही कठिन होता है परंतु जो लोग भाग्यशाली होते हैं, उन्हें सच्चा मित्र मिलता है सच्चा मित्र उस दवा के समान है जो उसे दर्द से बचाता है इतना ही नहीं वहां अपने मित्र को गलत रास्ते हटाकर सही मार्ग पर ले आता है और उसे गलत मार्ग के चलने से।
सच्चे मित्र की पहचान
सच्चे मित्र की पहचान करना बहुत ही कठिन काम होता है किसी व्यक्ति के कुछ गुणों को देखकर लोग उसे अपना मित्र बना लेते हैं ऐसे मित्र बुरे वक्त में ऐसे साथ छोड़ जाते हैं जैसे जाल पर पानी मछलियों का साथ छोड़ देता है ऐसे में हमें जल जैसे सौभा वाले व्यक्ति को अपना मित्र नहीं बनाना चाहिए रहीम दास जी ने सही कहा है-
जाल परे जल जात बहि, तजी मीनन को मोह,
रहिमन मछली नीर को, तऊ न छोडत छोह
सच्चे मित्र की पहचान हमेशा बुरे वक्त में पता चलती है कवि रहीम दास जी ने कहा है की-
कह रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत,
विपत्ति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत
कवि तुलसीदास जी ने कहा है कि बुरे समय में मित्र की परीक्षा करनी चाहिए।
आपत्तिकाल परखिए चारी धीरज, धर्म, मित्र, अरु, नारी
सच्ची मित्रता के उदाहरण
इतिहास में सच्ची मित्रता के अनेक उदाहरण है जब लोगों ने अपने मित्र के साथ सच्ची मित्रता का निर्वाह किया उनकी मित्रता दूसरों के लिए आदर्श और अनुकरणीय बन गई इस क्रम में भगवान कृष्णा और सुदामा जी की मित्रता विशेष रुप से उल्लेखनीय है सुदामा जी और भगवान कृष्ण की आर्थिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर था कहां भगवान कृष्ण द्वारिका के राजा और कहां सुदामा जी एक भिखारी थे भगवान कृष्ण ने कहा-
कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली
लोकोक्ति को झूठ करके सुदामा को भगवान कृष्ण ने इतना दिया कि उन्हें अपने सामान बना दिया और भगवान श्री कृष्ण ने इस बात की भनक भी सुदामा जी को ना लगने दी।
उपसंहार
जीवन में जितना कठिन किसी का मित्र बनना है उससे भी कठिन मित्रता निभाना हम सभी को अपने मित्र के साथ अपनी मित्रता को अच्छे से निभाना चाहिए जिससे कि जब मित्रता की बात है तो उनमें उन लोगों का नाम आए जो अपने मित्र के साथ सच्ची मित्रता किए हैं हमें अपने मित्र के सुख को अपना सुख मानना चाहिए और अपने मित्र के दुख को अपना दुख मानना चाहिए यह कहा भी गया है कि-
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी
तिनही बोलो कत पाटक भारी