भारत में निरक्षरता अथवा निरक्षरता : एक अभिशाप अथवा निरक्षरता से हानि अथवा प्रौढ़ शिक्षा अथवा साक्षरता
रूपरेखा – 1. प्रस्तावना 2. भारत में निरक्षरता 3. निरक्षरता से हानि 4. निरक्षरता मिटाने के प्रयास 5. उपसंहार ।

भारत में निरक्षरता पर निबंध 1000 शब्दों में – Essay on Illiteracy in India Hindi
1. प्रस्तावना – शिक्षा प्राप्त करना जीवन के पवित्रतम संस्कारों में से एक था। उसी भारत में एक समय ऐसा आया जब बर्बर आक्रान्ताओं ने उसके विद्यापीठों को अपनी पाशविकता का लक्ष्य बनाया। तक्षशिला और विक्रम विश्वविद्यालयों के ध्वंसावसेष इस मानवीय अद्यः पतन की कहानी आज भी सारे विश्व को सुना रहे हैं।
निरंतर विदेशी आक्रमणों के होते रहने से देश का सम्पूर्ण विद्या-संजाल नष्ट-भ्रष्ट हो गया। सम्पूर्ण विश्व को ज्ञान और शिक्षा का वितरण करने वाला भारतीय समाज स्वयं ही निरक्षरता के कलंक से दूषित हो गया। जीवन की प्रगति के लिए साक्षर होना आवश्यक है।
शहरों, गाँवों में जो बच्चें प्राथमिक शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं, उनका बौद्धिक विकास सम्यक रूप से नहीं हो पाता है। इनके है। निरक्षरता को दूर करने के मानसिक विकास हेतु तथा उनके जीवन को सुखी एवं सार्थक बनाने हेतु साक्षरता आवश्यक लिए साक्षरता ज्ञान की प्रथम सीढ़ी है।
2. भारत में निरक्षरता – यद्यपि भारत को स्वतन्त्र हुए 70 वर्ष हो चुके हैं और विभिन्न क्षेत्रों में देश ने अभूतपूर्व उन्नति की है। किन्तु देश के करोड़ों लोग आज भी निरक्षर हैं। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र और उसमें भी स्त्री- समाज निरक्षरता का अभिशाप भोग कर रहा है।
नगरों में शिक्षा प्राप्ति के साधन सुलभ हैं, किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालय अधिकांशतः सरकारी अभिलेखों में ही चलते रहें हैं। जहाँ सुविधाएँ भी हैं, वहाँ भी कुछ चुने हुए परिवारों के बच्चे नियमित रूप से विद्यालय जाते हैं। किसान और मजदूर वर्ग की दृष्टि में शिक्षा की आज भी कोई उपयोगिता नहीं बन पाई है।
वे अपनी किसानी और मजदूरी में शिक्षा का कोई स्थान आज भी निश्चित नहीं कर पाते हैं। स्थिति यही है कि शिक्षा तो दूर की बात है, भारतीय समाज का बहुत बड़ा भाग साक्षर भी नहीं है। भारत में साक्षरता को जन-जन तक पहुँचाना होगा।
इन अनपढ़ युवक-युवतियों को सामाजिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक ज्ञान देना अति आवश्यक है। उनके अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का बोध कराते हुए उन्हें सम्यक् ज्ञान प्रदान करना आज के समय में आवश्यक है।
3. निरक्षरता से हानि- प्रथम चार पंचवर्षीय योजनाओं में ऐसी व्यवस्था के होते हुए 3/4 जनसंख्या अशिक्षितों की. थी। करोड़ों देशवासी काला अक्षर भैंस बराबर हैं। अशिक्षित जनता में लोकतन्त्रीय शासन पद्धति चलना एवं चलाना दोनों कठिन हैं। सुशिक्षित ही राष्ट्र भक्ति एवं चुनावी प्रणाली में पूर्ण विश्वास रखने में सुसमर्थ होते हैं।
ग्रामीण समाज का विचार बहुधा यही रहा है कि उसके व्यवसाय या वृत्ति शिक्षित या साक्षर होने से, या न होने से कोई अन्तर नहीं पड़ता। ये कार्य व्यवहारिक और परम्परागत अनुभव से चलते आ रहे हैं और चलते रह सकते हैं।
खेत जोतने, बोने या काटने में, मेहनत मजदूरी करने में, आटा पीसने, खाना बनाने या सिर पर पानी ढोने में अक्षर ज्ञान क्या लाभ या हानि पहुँचा सकता? यह विचारधारा बड़ी संकुचित और कूप मण्डूकता की परिचयक हैं।
आज के संसार में पग-पग पर मनुष्य को अशिक्षा का अभिशाप पीड़ित करता है। चाहे सामाजिक दृष्टि से देखिए, चाहे आर्थिक और धार्मिक दृष्टि से, निरक्षरता हर क्षेत्र में मनुष्य को असहाय और प्रवंचित-सा बनाए रखती है। यदि बहू निरक्षर है तो घर का हिसाब नहीं रख सकती, बच्चों की शिक्षा में कोई सहायता नहीं कर सकती, उत्पीड़ित होने पर अपने माँ-बाप को एक पत्र तक नहीं लिख सकती।
निरक्षर व्यक्तियों-किसान-मजदूरों का शोषण साहूकार और पटवारी सदा से करते आ रहे हैं। अंगूठाछाप व्यक्तियों ने समाज में बंधकों और शोषकों की संख्या बढ़ाने में पूरा योगदान किया है। धार्मिक दृष्टि में निरक्षर व्यक्ति पराश्रित और अन्धविश्वासी बना रहता है। अपने धर्मग्रन्थों का पाठ या परिचय उसके लिए सपना ही बना रहता है।
राजनीतिक दृष्टि से भी निरक्षरता आज के युग में घोर अभिशाप है। मत- पत्र पर छपे हुए चुनाव चिन्ह और उन पर लगाए जाने वाले ठप्पे, आज भारतीय जनता की निरक्षरता की लज्जाजनक घोषणाएँ हैं। शिक्षित नागरिक ही उचित-अनुचित का निर्णय कर सकता है। निरक्षर जन समूह देश की सरकार पर एक कलंक के समान है।
4. निरक्षरता मिटाने के प्रयास- इधर कुछ समय से सरकार का ध्यान निरक्षरता मिटाने पर गया है। साक्षरता के लिए प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। स्वयंसेवी संस्थाएँ भी इस दिशा में सक्रिय हुई हैं। दूरदर्शन तथा समाचार पत्रों के द्वारा साक्षरता के महत्त्व को समझाया जा रहा है। यह फैशन कितने दिनों तक चलेगा, कहा नहीं जा सकता।
जैसे अन्य सरकारी कार्यक्रम प्रचार-प्रसार ज्यादा होते हैं। इन्हीं जैसा यह साक्षरता अभियान भी प्रतीत होता है। वह कार्यक्रम मात्र लोगों को हस्ताक्षर करना सिखाने तक ही सीमित प्रतीत होता है। निरक्षरता की समाप्ति केवल सरकारी प्रयासों से नहीं हो सकती।
शिक्षित वर्ग और समाजसेवी संस्थाओं को आगे आना होगा और इसे एक पवित्र दायित्व समझते हुए सघन अभियान चलाना होगा। केवल अक्षर ज्ञान कराना साधनों का अपव्यय है। पढ़ना-लिखना सिखाना ही इस संसार का लक्ष्य होना चाहिए। ग्रीष्मावकाश में छात्रों का सहयोग लेकर भी इस दशा में बहुत कुछ किया जा सकता है।
5. उपसंहार – निरक्षरता विश्व समुदाय के एक बहुत बड़े भाग को ग्रसित कर चुकी हैं। विशेषकर अफ्रीका और एशिया महाद्वीप इस कलंक से प्रदूषित है। अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ इस ओर रुचि लेती हैं लेकिन उनके प्रयास घोर निर्धा और राजनीतिक त्रासों के समुद्र में डूबकर रह जाते हैं। भारतीय समाज की दशा भी इससे कोई खास भिन्न नहीं है।
जितना धन यहाँ राजनीतिक और सामाजिक पाखण्डों पर व्यय किया जाता है, उसका दसवाँ भाग भी शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर खर्च किया जाए, तो एक सचेत और संगठित समाज की रचना हो सकती है। आशा है, हमारे राजनीतिज्ञ और समाजसेवी इस पवित्र दायित्व के निर्वहन को पूर्ण ईमानदारी से स्वीकार करेंगे। साक्षरता आज की आवश्यकता है। इसे हम पहचाने, अपनाएँ, खुद पढ़े और अन्यों को साक्षर बनाएँ।