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डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जीवन परिचय – Dr. Rajendra Prasad ka Jivan Parichay

लेखक परिचय

Dr. Rajendra Prasad ka Jivan Parichay
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जीवन परिचय

देशरत्न डॉ० राजेन्द्र प्रसाद एक राष्ट्रीय नेता ही नहीं वरन् श्रेष्ठ लेखक भी थे। देशभक्ति, सत्यनिष्ठा, ईमानदारी तथा निर्भीकता उनके रोम-रोम में व्याप्त थी।

उन्होंने अपने व्यक्तित्व के अनुरूप कुशल लेखनी द्वारा बड़ी सरलता तथा गहनता के साथ दर्शन, संस्कृति, समाज, शिक्षा आदि की अनेक समस्याओं पर विशेष प्रकाश डाला। हिन्दी साहित्य जगत् के लिए वे अपने नाम के अनुरूप ‘प्रसाद’ ही थे।

जीवन-परिचयभारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जन्म सन् 1884 ई० में बिहार राज्य के छपरा जिले के जीरादेई ग्राम के एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री महादेव सहाय था।

उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम०ए० तथा एम०एल० की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। कुशाग्र बुद्धि होने के कारण आपने अपनी सभी परीक्षाओं में प्रथम श्रेणी प्राप्त किया। सन् 1917 ई० में गाँधी जी के आदर्शों से प्रभावित होकर ‘चम्पारन के आन्दोलन’ में सक्रिय रूप से भाग लिया।

भारत सरकार ने आपको देश की सर्वोच्च उपाधि भारत रत्न से सन् 1962 ई० में सम्मानित किया। आजीवन राष्ट्र की निःस्वार्थ सेवा करते हुए 28 जनवरी, सन् 1963 ई० को दिवंगत हो गए।

कृतियाँ / रचनाएँ—डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की रचनाएँ इस प्रकार हैं-
शिक्षा और संस्कृति, चम्पारन में महात्मा गाँधी, मेरी आत्मकथा, गाँधी जी की देन, मेरे योरोप के अनुभव, भारतीय शिक्षा आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।

भाषा-शैली – राजेन्द्र प्रसाद जी की भाषा-शैली में कोई बनावट नहीं है। आपकी भाषा सरल, सुबोध तथा खड़ीबोली है। इन्होंने अपनी भाषा में कहावतों तथा मुहावरों का यथास्थान प्रयोग किया है।

मुख्य रूप से आपकी शैली भावात्मक शैली है। इसके अतिरिक्त आपकी रचनाओं में आत्मकथात्मक, विवेचनात्मक तथा साहित्यिक शैली के यत्र-तत्र दर्शन हो जाते हैं।

‘भारतीय संस्कृति’ शीर्षक निबन्ध डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी के एक भाषण का मुख्य अंश है। इसमें आपने बताया है कि भारत जैसे विशाल देश में जीवन तथा रहन-सहन की विविधता में भी एकता के दर्शन होते हैं।

विभिन्न भाषा, जाति, धर्म की मणियों को एक सूत्र में पिरोकर रखने वाली हमारी संस्कृति अनुपम है। तात्पर्य यह है कि भारतीय संस्कृति में भिन्नता में एकता विद्यमान है।

हिन्दी साहित्य में स्थान – डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी का आदर्श था—’सादा जीवन, उच्च विचार’ । वे अपने सरल, सुबोध अभिव्यक्ति के लिए सदैव याद किये जायेंगे। उनकी लोकप्रिय पुस्तक ‘मेरी आत्मकथा’ का विशेष स्थान है। वे भारत गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति भी थे। आप हिन्दी के विशेष सेवक तथा प्रचारक थे। हिन्दी भाषा की आजीवन सेवा के लिए आपका नाम सदा अमर रहेगा।

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