
जीवन परिचय –
धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसम्बर, सन् 1926 ई0 को इलाहाबाद में हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय लेकर एम० ए० और पी-एच0 डी0 की उपाधियाँ लीं। इन्होंने कुछ वर्षों तक यहीं से प्रकाशित होनेवाले साप्ताहिक पत्र ‘संगम’ का भी सम्पादन किया।
सन् 1959 ई० से 1987 ई0 तक ये मुम्बई से प्रकाशित होनेवाले हिन्दी के प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्र ‘धर्मयुग’ के सम्पादक रहे। कुछ समय तक ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक भी रहे।
सन् 1972 ई0 में भारतीजी को ‘पद्मश्री’ की उपाधि, भारत-भारती सम्मान (1989), महाराष्ट्र गौरव (1990), व्यास सम्मान (1994), हल्दीघाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार से अलंकृत किया गया। 4 सितम्बर, 1997 ई0 को यह कलम का सिपाही इस असार संसार से विदा लेकर परलोकवासी हो गया।
• जन्म – 25 दिसम्बर, सन् 1926 ई0 ।
• मृत्यु – 4 सितम्बर, सन् 1997 ई०।
• जन्म – स्थान-इलाहाबाद (उ० प्र०) ।
• भाषा – परिमार्जित खड़ीबोली ।
• सम्पादन – ‘संगम’ तथा ‘धर्मयुग’ ।
• हिन्दी साहित्य में स्थान-कथाकार, नाटककार, निबन्धकार एवं कवि के रूप में।
साहित्यिक परिचय –
धर्मवीर भारती प्रतिभाशाली कवि, कथाकार व नाटककार थे। इनकी कविताओं में रागतत्त्व की रमणीयता के साथ बौद्धिक उत्कर्ष की आभा दर्शनीय है। कहानियों और उपन्यासों में इन्होंने सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं को उठाते हुए बड़े ही जीवन्त चरित्र प्रस्तुत किये हैं। वस्तुतः साहित्य की जिस विधा का भी भारतीजी ने स्पर्श किया, वही विधा इनका स्पर्श पाकर धन्य हो गयी।
साथ ही समाज की विद्रूपता पर व्यंग्य करने की विलक्षण क्षमता भारतीजी में रही। कहानी, निबन्ध, एकांकी, उपन्यास, नाटक, आलोचना, सम्पादन व काव्य-सृजन के क्षेत्र में इन्होंने अपनी विलक्षण सृजन प्रतिभा का परिचय दिया। ‘गुनाहों का देवता‘ जैसा सशक्त उपन्यास लिखकर भारतीजी अमर हो गये। इस उपन्यास पर बनी फिल्म भारतीय समाज में अधिक लोकप्रिय हुई।
प्रमुख कृतियाँ – धर्मवीर भारती की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं कहानी संग्रह-मुर्दों का गाँव, स्वर्ग और पृथ्वी, चाँद और टूटे हुए लोग, बन्द गली का आखिरी मकान, साँस की कलम से।
काव्य रचनाएँ – ठण्डा लोहा, सात गीत, वर्ष, कनुप्रिया, सपना अभी-भी, आद्यान्त ।
उपन्यास – गुनाहों का देवता, सूरज का सातवाँ घोड़ा, ग्यारह सपनों का देश, प्रारंभ व समापन।
निबन्ध – ठेले पर हिमालय, पश्यंती, कहनी-अनकहनी। कहानियाँ-अनकही, नदी प्यासी थी, नीली झील, मानव मूल्य और साहित्य। नाटक और एकांकी- ‘नदी प्यासी थी’ इनका चर्चित नाटक है। ‘नीली झील’ संग्रह में इनकी एकांकियाँ संकलित हैं। पद्य नाटक-अंधा युग।
आलोचना – प्रगतिवाद : एक समीक्षा, मानव मूल्य और साहित्य। इसके अतिरिक्त विश्व की कुछ प्रसिद्ध भाषाओं की कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी ‘देशान्तर’ नाम से प्रकाशित हुआ है।
भाषा शैली –
भारतीजी की भाषा परिष्कृत एवं परिमार्जित खड़ीबोली है। इनकी भाषा में सरलता, सजीवता और आत्मीयता का पुट है तथा देशज, तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग हुआ है। प्रस्तुत निबन्ध ‘ठेले पर हिमालय’ एक यात्रा-वृत्त है, जिसमें हिमालय की रमणीय शोभा का वर्णन है।
विषय और विचार के अनुकूल भारतीजी की रचनाओं में भावात्मक, समीक्षात्मक, वर्णनात्मक, चित्रात्मक शैलियों के प्रयोग हुए हैं। मुहावरों और कहावतों के प्रयोग से भाषा में गति और बोधगम्यता आ गयी है। शीर्षक की विचित्रता के साथ नैनीताल से कौसानी तक की यात्रा का वर्णन कम रोचक नहीं है और शैली में नवीनता इसका मुख्य कारण है।