यदि मैं प्रधानमंत्री होता अथवा देश का प्रधानमंत्री
रूपरेखा – 1. प्रस्तावना 2. देश के शासन में प्रधानमंत्री का महत्त्व 3. प्रधानमंत्री के रूप में कार्य(क) राजनीतिक स्थिरता (ख) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में (ग) राष्ट्रीय सुरक्षा और मेरी नीति (घ) शिक्षा नीति (ङ) बेरोजगारी की समस्या का समाधान तथा खाद्य समस्या का निदान (च) सामाजिक सुधार 4. उपसंहार।

देश के प्रधानमंत्री पर निबन्ध – Desh ke pradhanmantri par nibandh
1. प्रस्तावना—मैं स्वतन्त्र भारत का नागरिक हूँ और मेरे देश की शासन-व्यवस्था का स्वरूप जनतन्त्रीय है। यहाँ का प्रत्येक नागरिक, संविधान के नियमों के अनुसार, देश की सर्वोच्च सत्ता को सँभालने का अधिकारी है। मानव-मन स्वभाव से ही महत्वाकांक्षी है। मेरे मन में एक महात्वकांक्षा है और उसकी पूर्ति के लिए मैं निरंतर प्रयासरत हूँ। मेरी इच्छा है कि मैं भारतीय गणराज्य का प्रधानमंत्री बनूँ।
भारत के प्रधानमंत्री का पद अति महत्वपूर्ण है, इसलिए प्रधानमंत्री बनना किसी भी भारतीय नागरिक के लिए गौरव की बात है। प्रधानमंत्री का पद जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही अधिक जिम्मेदारी भरा भी, इसके बाद लगभग हर भारतीय का सपना प्रधानमंत्री बनना होता है।
यदि मैं भी जीवन में कभी इस पद पर पहुँचने में सफल रहा, तो मेरे लिए यह गौरव की बात होगी। एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में भारत के प्रधानमंत्री से भी मेरी कुछ आशा है। यदि मैं भारत का प्रधानमंत्री होता, तो अपनी इन उम्मीदों पर बिल्कुल खरा उतरने की कोशिश करता।
2. देश के शासन में प्रधानमंत्री का महत्त्व – मैं इस बात को भली प्रकार जानता हूँ कि संसदात्मक शासन-व्यवस्था में, जहाँ वास्तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रि-परिषद में निहित होती है। देश के शासन का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व प्रधानमंत्री पर ही होता है । वह केन्द्रीय मंत्रि-परिषद का अध्यक्ष और नेता होता है। वह मंत्रि-परिषद की बैठकों की अध्यक्षता तथा उसकी कार्यवाही का संचालन करता है।
मंत्रि-परिषद के सभी निर्णय उसकी ईच्छा से प्रभावित होते हैं। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति तथा उसके विभागों का वितरण प्रधानमंत्री की इच्छा के अनुसार ही किया जाता है। मंत्रि-परिषद यदि देश की नौका है तो प्रधानमंत्री इसका नाविक ।
3. प्रधान मंत्री के रूप में कार्य — आप कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद तुम क्या करोगे? मैं कहूँगा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मैं राष्ट्र के विकास के लिए निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कार्य करूंगा –
(क) राजनीतिक स्थिरता – आज सारा देश विभिन्न आन्दोलन से घिरा है । जिधर देखिए उधर आन्दोलन हो रहे हैं, कभी असम का आन्दोलन, तो कभी पंजाब में अकालियों का आन्दोलन । कभी वेतन वृद्धि के लिए आन्दोलन तो कभी हिन्दी विरोधी आन्दोलन । ऐसा लगता है कि प्रत्येक राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए प्रत्येक दल और प्रत्येक वर्ग आन्दोलन का मार्ग अपनाए हुए है।
विरोधी दल सत्तारूढ़ दल पर पक्षपात का आरोप लगाता है तो सत्तारूढ़ दल विरोधी दलों पर तोड़-फोड़ का आरोप लगाता है। मैं विरोधी दलों के महत्त्वपूर्ण नेताओं से बातचीत करके उनकी उचित माँगों को मानकर देश के राजनीतिक स्थिरता स्थापित करने का प्रयास करूंगा। मैं प्रेम और नैतिकता पर आधारित आचरण करते हुए रानजीति को स्थिर बनाऊँगा।
( ख ) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में— हमारा देश शान्तिप्रिय देश है—हमने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, परन्तु प्रत्येक आक्रमण का मुँहतोड़ जवाब अवश्य दिया है। चीन और पाकिस्तान हमारे पड़ोसी देश हैं। दुर्भाग्य से ये दोनों ही देश पारस्परिक सम्बन्धों में निरन्तर विष घोलते रहते हैं।
अपनी परराष्ट्र की प्राचीन परम्परा को निभाते हुए मैं इस बात का प्रयास करूंगा कि पड़ोसी देशों से हमारे सम्बन्ध निरन्तर मधुर रहे। किन्तु यदि किसी देश ने हमें अहिंसक समझकर हम पर आक्रमण किया तो हम उसका मुँहतोड़ जवाब देंगे।
(ग) राष्ट्रीय सुरक्षा और मेरी नीति — देश की सुरक्षा दो स्तरों पर करनी पड़ती है— देश की सीमाओं की सुरक्षा, अर्थात् बाह्य आक्रमण से सुरक्षा तथा आन्तरिक सुरक्षा प्रत्येक राष्ट्र अपनी सार्वभौमिकता की रक्षा के लिए प्रत्येक स्तर पर आवश्यक प्रबन्ध करता है। प्रधानमंत्री के महत्त्वपूर्ण पद पर रहते हुए मैं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सदैव प्रयत्नशील रहूँगा और देश पर किसी भी प्रकार की आँच न आने दूँगा।
बाह्य सुरक्षा के लिए मैं अपने देश की सैनिक शक्ति को सुदृढ़ बनाने का पूरा प्रयत्न करूँगा तथा आन्तरिक सुरक्षा के लिए पुलिस एवं गुप्तचर विभाग को प्रभावशाली बनाऊँगा। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम का कड़ाई से पालन किया जाएगा और ऐसे व्यक्तियों को कड़ी सजा दी जाएगी, जो राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा को खण्डित करने का दुष्प्रयास करेंगे।
किन्तु आन्तरिक सुरक्षा के समक्ष ऐसी चुनौतियाँ हैं, जो इसकी शान्ति एवं व्यवस्था पर प्रश्नचिंह लगा रहा है। साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद, आतंकवाद, अलगाववाद, भाषावाद, नक्सलवाद इत्यादि भारत की आन्तरिक सुरक्षा के समक्ष ऐसी कुछ खतरनाक चुनौतियाँ हैं। मैं इन समस्याओं का समाधान कर आन्तरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने का प्रयास करूंगा।
(घ) शिक्षा नीति – देश के प्रधानमंत्री के रूप में सबसे पहले मैं भारत में शिक्षा के उचित प्रसार पर ध्यान देता। किसी भी देश का आर्थिक विकास इस बात पर निर्भर करता है कि उसके नागरिक कितने शिक्षित हैं। समय के अनुसार विज्ञान एवं प्रधानमंत्री के रूप में प्राथमिकता प्रौद्योगिकी में परिवर्तन को देखते हुए भारतीय शिक्षा प्रणाली में भी इनको प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता है।
मैं शिक्षा द्वारा उत्पादकता बढ़ाने के लिए विज्ञान की शिखा कार्यानुभव एवं व्यावसायिक शिक्षा पर जोर देता। मैं इस प्रकार की शिक्षा नीति बनाऊँगा, जो विद्यार्थियों को चरित्रवान, कर्त्तव्यनिष्ठ और कुशल नागरिक बनाने में सहायता प्रदान करे तथा उन्हें श्रम की महत्ता का बोध कराए।
इस प्रकार हमारे देश में देशभक्त नागरिकों का निर्माण होगा और देश से बेरोजगारी के अभिशाप को भी मिटाया जा सकेगा। मैं शिक्षा का राष्ट्रीकरण करके गुरू-शिष्य परम्परा की प्राचीन परिपाटी को पुनः प्रारम्भ करूँगा।
(ङ) बेरोजगारी की समस्या का समाधान तथा खाद्य समस्या का निदान- देश की अनेक समस्याओं में प्रमुख समस्या बेरोजगारी है। इस बेरोजगारी की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। सर्वप्रथम मैं लोगों को जनसंख्या नियोजन के लिए प्ररित करूंगा। मेरे शासन में कोई भी नवयुवक बेरोजगार नहीं घूमेगा।
शिक्षित युवकों को इनकी योग्यता के अनुरूप कार्य दिलाना मेरी सरकार का दायित्व होगा। साथ ही साथ नवयुवकों को स्वरोजगार के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाएगी। भिक्षावृत्ति पर पूरी तरह रोक लगा दी जाएगी। हमारा देश कृषि प्रधान देश है।
इस देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य पर निर्भर है, फिर भी यहाँ खाद्य-समस्या निरन्तर अपना मुँह खोले खड़ी रहती है और हमें विदेशों से खाद्य सामग्री मँगानी पड़ती है। इस समस्या के निदान के लिए मैं वैज्ञानिक खेती की ओर विशेष ध्यान दूंगा।
नवीन कृषि यंत्रों और रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाएगा तथा सिंचाई के आधुनिक साधनों का जाल बिछा दिया जाएगा जिससे देश को थोड़ी-सी भूमि भी बंजर या सूखी न पड़ी रहे। किसानों के लिए उत्तम और अधिक उपज देने वाले बीजों की व्यवस्था की जाएगी।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात होगी–कृषि उत्पादन का सही वितरण और संचयन इसके लिए सहकारी संस्थाएँ और समितियाँ किसानों की भरपूर सहायता करेंगी।
(च) सामाजिक सुधार– किसी भी देश की वास्तविक प्रगति तब तक नहीं हो सकती, जब तक इसके नागरिक चरित्रवान, ईमानदार और राष्ट्रभक्त न हो। हमारा देश इस समय सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक आदि विभिन्न प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त हैं।
यहाँ मुनाफाखोरी, रिश्वतखोरी, जमाखोरी तथा भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी जम चुकी हैं। इन समस्याओं को दूर करने के लिए मैं स्वयं को पूर्णतः समर्पित कर दूंगा।
मेरे शासन में प्रत्येक वस्तु का मूल्य निर्धारित कर दिया जायेगा। सहकारी बाजारों की स्थापना की जाएगी, जिससे जमाखोरी और मुनाफाखोरी की समस्या दूर होगी। मुनाफाखोर बिचौलियों को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा।
रिश्वत का कीड़ा हमारे देश की नींव को निरंतर खोखला कर रहा है। रिश्वतखोरों को इतनी कड़ी सजा दी जाएगी कि वे भविष्य में इस विषय में सोच भी न सकेंगे। इसके लिए न्याय और दण्ड प्रक्रिया में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए जाएँगे।
4. उपसंहार – इस तरह स्पष्ट है कि यदि मैं भारत का प्रधानमंत्री होता तो देश एवं देश की जनता को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं शैक्षिक स्तर सुदृढ़कर भारत को पूर्णतः विकसित ही नहीं, खुशहाल देश बनाने का सपना साकार करता। मैं संकल्प और विश्वास के बल पर अपने देश को पूर्ण कल्याणकारी गणराज्य बनाने की योग्यता भी रखता हूँ।
मैं चाहता हूँ कि मेरे देश के कमजोर, निर्धन, पीड़ित, शोषित और असहाय वर्ग के लोग चैन की साँस ले सकें और सुख की नींद सो सकें। मेरे शासन में प्रत्येक व्यक्ति के पास रहने को मकान, करने को काम, पेट के लिए रोटी और पहनने के लिए वस्त्रों की व्यवस्था होगी। इस रूप में हमारा देश सही अर्थों में महान् और विकसित देश बन सकेगा।