Skip to content

रघुवीर सहाय का जीवन परिचय – Biography Raghuvir Sahay in Hindi

रघुवीर सहाय

Biography Raghuvir Sahay in Hindi
Biography Raghuvir Sahay in Hindi

जीवन परिचय –

रघुवीर सहाय दूसरा सप्तक बीसवीं सदी के उतरार्द्ध के एक महत्वपूर्ण कवि है। उनका जन्म 9 सितंबर 1929 को लखनऊ में हुआ था।उनके पिता हरदेव सहाय साहित्य के अध्यापक थे। सन 1951 में कवि ने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की।

परंतु इसी वर्ष हुए दिल्ली चले गए तथा ” प्रतीक ” पत्रिका के सहायक संपादक बन गए। 1953 से 1957 तक वे आकाशवाणी में का काम करते रहे। बाद में वे ” कल्पना ” पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य बन गए।

परंतु उनका रचना कार्य सन 1946 से ही आरंभ हो चुका था। वे आराम से ही पत्रकारिता से जुड़ गए।  1949 में उन्होंने “दैनिक नवजीवन” को अपनी सीमाएं दिल्ली आरंभ कर दी।  सन 1951 तक वे इस दैनिक समाचार पत्र के संपादक तथा संस्कृति संवादाता के रूप में कार्य करते रहे।

परंतु सन 1961 में वे पन : आकाशवाणी को अपनी सेवाएं देने लगे। बाद में 1967 में वे ‘ दिनमान ‘ साप्ताहिक पत्रिका से जुड़ गए। 1982 तक वे इसके प्रधान संपादक रहे, परंतु बाद में वे स्वतंत्र लेखन करने लगे। 30 दिसंबर 1990 को उनका निधन हो गया।

  • नाम – रघुवीर सहाय।
  • जन्म – 9 दिसंबर, 1929।
  • मृत्यु – 30 दिसंबर, 1990।
  • जन्म स्थान – लखनऊ, उत्तर प्रदेश।
  • मृत्यु स्थान – दिल्ली।
  • पत्नी – विमलेश्वरी सहाय।
  • कर्म-भूमि – भारत ।
  • कर्म-क्षेत्र – लेखक, कवि, पत्रकार, सम्पादक, अनुवादक।
  • भाषा – हिन्दी, अंग्रेज़ी।
  • विद्यालय – लखनऊ विश्वविद्यालय।
  • शिक्षा – एम. ए. (अंग्रेज़ी साहित्य)।
  • पुरस्कार-उपाधि – साहित्य अकादमी पुरस्कार (लोग भूल गए हैं)।
  • नागरिकता – भारतीय।
  • मुख्य रचनाएँ ‘- लोग भूल गये हैं’, ‘आत्महत्या के विरुद्ध’, ‘हंसो हंसो जल्दी हंसो’, ‘सीढ़ियों पर धूप में’ आदि।
  • अन्य जानकारी – रघुवीर सहाय ‘नवभारत टाइम्स’, दिल्ली में विशेष संवाददाता रहे। ‘दिनमान’ पत्रिका के 1969 से 1982 तक प्रधान संपादक रहे। उन्होंने 1982 से 1990 तक स्वतंत्र लेखन किया।

भाषा शैली –

रघुवीर सहाय कला के प्रति सजग कवि हैं। इनकी भाषा में पैनी व्यंग्यात्मकता, सुगठित भाषा आधुनिक हिंदी – साहित्य में विशेष पहचान है। इनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें संस्कृत के तत्सम, तद्भव और विदेशी भाषाओं के शब्दों का भी समायोजन हुआ है।

इनके काव्य में मुहावरे से अलग सीधी-सादी भाषा का प्रयोग हुआ है। संवेदनशील कवि होने के साथ इनकी भाषा में भी संवेदनशीलता का अनुपम चित्रण मिलता है। इनकी कविता में वक्तृत्व गुण ही मूल अर्थ को व्यंजित करने में समर्थ बन सका है। इन्होंने अपने काव्य में व्यंग्यात्मक भावपूर्ण शैली का प्रयोग किया है।

उनकी कविताओं में नेहरू, वाजपेयी, मोरारजी देसाई के नाम प्रतीक रूप में प्रयुक्त हुए हैं। आरंभ में उन्होंने छंद का निर्वाह करते हुए कविताएँ लिखीं। परंतु आगे चलकर वे छंद मुक्त कविता करने लगे। कवि की आरंभिक कविताओं में प्रकृति के बिंब देखे जा सकते हैं, परंतु परवर्ती कविताओं में वे जनसाधारण के जीवन के चित्र उकेरते हैं।

संक्षेप में हम कह सकते हैं, कि भाव और भाषा दोनों दृष्टियों से रघुवीर सहाय का काव्य नई कविता से लेकर समकालीन कविता की प्रवृत्तियाँ लिए हुए हैं। उनकी कविताएँ प्रेम, प्रकृति, परिवार, समाज तथा राजनीति का यथार्थ वर्णन करने में सक्षम रही हैं।

प्रमुख रचनाएं –

रघुवीर सहाय सन् 1951 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘दूसरा सप्तक’ के कारण प्रकाश में आए। ‘सीढ़ियों पर धूप में‘ इनका पहला काव्य संग्रह है।

काव्य संग्रह –

  • प्रतिनिधि कविताएं 1994
  • लोग भूल गए हैं। 1982
  • सीढ़ियों पर धूप में 1960
  • एक समय था।
  • कुछ पत्ते कुछ चिट्टियां 1989
  • आत्महत्या के विरुद्ध 1967
  • हंसो हंसो जल्दी हंसो 1975

कहानी संग्रह –

  • आने वाला खतरा
  • रास्ता इधर से है
  • स्वाधीन व्यक्ति
  • जो आदमी हम बना रहे हैं
  • दुनिया
  • अखबार वाला
  • समझौता
  • मौका
  • कैमरे में बंद अपाहिज
  • पानी के संस्मरण
  • पानी
  • लंबी सड़कें
  • अरे, अब ऐसी कविता लिखो
  • राष्ट्रगीत
  • याचना
  • बसंत
  • सारस्वत
  • लोकतंत्र का संकट
  • तस्वीर
  • रामदास
  • कमरा
  • खोज खबर
  • लाखों का दर्द
  • गुलामी
  • बदलो
  • चेहरा
  • मेरा जीवन
  • चांद की आदतें
  • हमारी हिंदी
  • बड़ा सफर
  • अकेला
  • मेरे अनुभव
  • युगचेतना
  • पढ़िए गीता
  • इतने शब्द कहां है
  • गरीबी

निबंध संग्रह –

  • लहरें और तरंग
  • भँवर
  • लिखने का कारण
  • ऊबे हुए सुखी
  • यथार्थ का अर्थ
  • दिल्ली मेरा परदेस
  • वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे।

बाल कविताएं –

  • फायदा।
  • चल परियों के देश।

अनुवाद –

  • तीन हंगारी नाटक।
  • शेक्सपियर के नाटक ‘मैकबेथ’ का अनुवाद ।

सम्मान एवं पुरस्कार –

रघुवीर द्वारा अनुवादित तीन हंगरी नाटक भी प्रदर्शित हुए। रघुवीर सहाय को 1984 में “लोग भूल गए हैं” पर ‘साहित्यक अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

राजनीतिक चेतना –

पत्रकारिता से जुड़े रहने के कारण रघुवीर सहाय की कविताओं में राजनीतिक चेतना सहज रूप में व्यक्त हुई है। कवि स्वीकार करता है कि राजनीति ने देश को अवसरवादिता, जातिवाद, हिंसा तथा भ्रष्टाचार जैसी बुराइयाँ प्रदान की हैं। कवि ने राजनीति की क्रूरताओं तथा गतिविधियों का सहज वर्णन किया है।

इस संदर्भ में कवि के काव्य में मंत्री मुसद्दी लाल लोकतंत्र के भ्रष्टाचार का प्रतीक है। इसलिए डॉक्टर बच्चन सिंह ने रघुवीर सहाय को पोलिटिकल कवि कहा है। देश की दयनीय दशा देखकर कवि बड़े-से-बड़े राजनेता का नाम लेने में संकोच नहीं करता।

“गया वाजपेयी जी से पूछ आया देश का हाल,पर उढ़ा नहीं सका एक नंगी औरत को कम्बल रेलगाड़ी में बीस अजनबियों के सामने।”

शिक्षा –

रघुवीर सहाय ने अपनी शिक्षा ‘प्रीपरेट्री स्कूल’ लखनऊ से प्रथम स्थान पर रहकर आरंभ की। चौथी कक्षा में “एंग्लो बंगाली इंटर स्कूल” में दाखिला लिया, इसी स्कूल से में पिताजी अध्यापक थे। सहाय जी ने सन् 1944 में मैट्रिक की परीक्षा पास की तथा सन् 1946 में इंटर पास किया।

इस स्कूल से संबद्ध अपने पिता की स्मृतियों में से कुछ पलों को कलमबद्ध करते हुए सहाय जी लिखते रहे। 1948 में लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र विषयों में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इन्होंने प्रचुर मात्रा में गद्य और पद्य लिखें हैं।

दूसरा सप्तक में भवानी प्रसाद मिश्र, शकुन्त माथुर, हरिनारायण व्यास, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय एवं धर्मवीर भारती की रचनाएँ संकलित हैं।परंतु इनकी मूल विधा पद्य ही रही है। रघुवीर सहाय दूसरा सप्तक कवियों में से एक है।

वे अपनी पढ़ाई के बारे में स्वयं सहाय जी के विचार इस प्रकार थे- ‘पढ़ने-लिखने में साधारण प्रतिभा दिखला सका फ़र्स्ट क्लास केवल एक बार आठवें दर्जे में आया, और थर्ड क्लास केवल एक बारबी.ए. में। वहीं से 1951 में इन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया। साथ ही हिंदी साहित्य सम्मेलन की परीक्षा ‘विशारद‘ पास की।

सहाय जी ने साहित्य सृजन 1946 से प्रारम्भ किया। अंग्रेज़ी भाषा में शिक्षा प्राप्त करने पर भी उन्होंने अपना रचना संसार हिंदी भाषा में रचा। पत्रकार दयानंद पांडेय लिखते हैं- ‘वह अंग्रेजी में एम.ए. थे, लेकिन रोटी हिंदी की खाते थे। हिंदी के वह प्रखर प्रवक्ता थे। आजीवन हिंदी के लिए लड़ाई लड़ते रहे।

सामाजिक चेतना – 

रघुवीर सहाय पत्रकार तथा संपादन होने के कारण काव्य में सामाजिक चेतना भी देखी जा सकती है। कही कहीं कवि जनसाधारण का पक्षधर दिखाई देता है। कवि ने अपनी अधिकांश कविताओं में सामाजिक विरोधी तथा अंतर्विरोध दो एवं विसंगतियों का उद्घाटन किया है। 

कवि मध्यवर्गीय जीवन में दबाव और लोकतांत्रिक का जीवन की विडंबना का यथार्थ वर्णन करता है। यही नहीं, आम आदमी के साथ खड़ा दिखाई देता है इसलिए वह कहता है कि –

” मैं तुम्हें रोटी नहीं दे सकता ।
न उसके साथ खाने के लिए गम ।
न में मिट सकता हूं ईश्वर के के विषय में सब भ्रम ।”

मानवीय संबंधों का वर्णन – 

रघुवीर सहाय ने अपनी कुछ कविताओं में मानवीय संबंधों का वर्णन करते हुए मानवीय व्यथा के विविध आयामों पर प्रकाश डाला है। कवि ने स्त्री जीवन की पीड़ा को अधिकृत किया है । “बैंक में लड़कियां” शीर्षक कविता में कवि स्त्री तथा पुरुष के मनोविज्ञान पर प्रकाश डालता है। 

इसी प्रकार ‘चेहरा ‘कविता में गरीब लड़की का जो वर्णन किया है, वह बड़ा ही सजीवन बन पड़ा है। “कैमरे में बंद अपाहिज” कविता में कवि ने एक अपाहिज की पीड़ा के प्रति संवेदना व्यक्त की है । ‘अपराधी से आते हैं राज्यपाल , मुख्यमंत्री , विधायक बक्शे हुए से जाते हैं ‘।

अलंकार – 

इन्होंने अपने काव्य में शब्दालंकार और अर्थालंकार का उपयोग किया है। काव्य में  पदमैत्री , अनुप्रास , रूपक ,उपमा , उत्प्रेक्षा , मानवाली का प्राकृतिक उपयोग उपयोगिता। अभिधा , व्यंजना का भी इस्तेमाल किया। शीर्षक मुक्तक का उपयोग भी किये है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *