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श्यामनारायण पाण्डेय का जीवन परिचय – Biography of Shyamnarayan Pandey in Hindi

कवि- परिचय

Biography of Shyamnarayan Pandey in Hindi
Biography of Shyamnarayan Pandey in Hindi

पं० श्यामनारायण पाण्डेय वीर रस के सुप्रसिद्ध कवि ही नहीं वरन् अपनी ओजस्वी वाणी से श्रोताओं को मन्त्र-मुग्ध करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। 84 वर्ष की अवस्था में भी उनकी वाणी में जो जोश तथा कड़क आवाज विद्यमान थी वह युवाओं को भी लज्जित कर देती थी।

जीवन-परिचय – पं० श्यामनारायण पाण्डेय का जन्म सन् 1907 ई० में डुमराँव गाँव तथा जनपद — आजमगढ़ में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा के बाद श्यामनारायण पाण्डेय संस्कृत अध्ययन के लिए काशी (वर्तमान वाराणसी) आये। काशी से वे साहित्याचार्य की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। स्वभाव से सात्विक, हृदय से विनोदी और आत्मा से परम निर्भीक स्वभाव वाले थे।

पाण्डेय जी के स्वस्थ – पुष्ट व्यक्तित्व में शौर्य और सरलता का मिश्रण था। आप द्विवेदीयुगीन कवि थे। उन्होंने आधुनिक युग में वीर काव्य की परम्परा को खड़ी बोली में स्थापित किया। द्रुमराँव (डुमराँव) में अपने घर पर रहते हुए सन् 1991 ई० में 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। मृत्यु से तीन वर्ष पूर्व आकाशवाणी गोरखपुर में अभिलेखागार हेतु उनकी आवाज में उनके जीवन के संस्मरण रिकार्ड किये गये।

हल्दीघाटी में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के जीवन और जौहर में चित्तौड़ की रानी पद्मिनी के आख्यान हैं। हल्दीघाटी के नाम से प्रसिद्ध महाकाव्य पर उस समय का सर्वश्रेष्ठ सम्मान ‘देव पुरस्कार’ उन्हें प्रदान किया गया। इसी प्रकार दूसरा महाकाव्य जौहर भी अत्यधिक लोकप्रिय हुआ, जिसमें चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी के वीरांगना चरित्र को चित्रित किया गया है।

रचनाएँ / कृतियाँ – पं० श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं- हल्दीघाटी (सन् 1937 ई० में), जौहर (सन् 1940 ई० में), तुमुल, रूपान्तरण, आरती, जय हनुमान (काव्य), गोरा वध, आँसू के कण। अप्रकाशित काव्यों में परशुराम तथा वीर सुभाष आदि हैं।

हल्दीघाटी महाराणा प्रताप और अकबर के मध्य हुए प्रसिद्ध ऐतिहासिक युद्ध पर लिखा गया महाकाव्य प्रबन्ध है। प्रताप के इतिहास प्रसिद्ध शौर्य, त्याग, आत्म बलिदान एवं जातीय-गौरव भाव को प्रेरक आधार बनाते हुए कवि ने मध्यकालीन राजपूती मूल्यों को अत्यन्त श्रद्धा और पूजा के छन्दपुष्प अर्पित किये हैं।

भाषा-शैली – भाषा-नाद से आगे बढ़कर भावोत्साह की दृष्टि से कवि ने रचना को रसमय बनाया है। यह भाषा-नाद और आंतर भाव का सांमजस्य कवि-कला की नूतनता का प्रमाण है। बीच-बीच में सुन्दर प्रकृति-वर्णनों की उत्फुल्ल योजना हुई है। भाषा तत्सम प्रधान होकर खड़ी बोली में उर्दू शब्दों का भी प्रयोग है। अपने काव्यों में आपने ‘वीर-रस’ शैली का प्रयोग किया है।

हिन्दी साहित्य में स्थान – पाण्डेय जी द्वारा रचित जौहर नामक महाकाव्य जिसमें 21 चिनगारियों में पद्मिनी का चित्रण है। इसी प्रकार हल्दीघाटी में 18 सर्गों का राणा प्रताप के शौर्य तथा पराक्रम का अद्वितीय वर्णन करके यशः शरीर से आज भी जीवित हैं।

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