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जीवन परिचय –
केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई 1934 ई. में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गॉंव में हुआ था। एक किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम डोमन सिंह एवं माता का नाम लालझरी देवी था, इनका गाँव चकिया लगभग पांच हजार की आबादी वाला गाँव है तथा इसकी स्थिति बलिया जिले के अंतिम पूर्वी छोर पर गंगा एवं सरयू नदी की गोद में बसी हुई है ।
केदारनाथ सिंह की प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव में ही प्राथमिक विद्यालय में हुई, अपने गाँव में आठवीं की शिक्षा प्राप्त करने उपरांत केदारनाथ सिंह बनारस चले आये और यहीं पर इंटर की पढाई करने के साथ ही उदय प्रताप कालेज से स्नातक तथा इन्होंने बनारस विश्वविद्यालय से सन् 1956 ई. में हिन्दी में एम.ए. और सन् 1964 ई. में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की।
इन्होंने कविता व गद्य की अनेक पुस्तकें रची है। इन पर इन्हें उनेक सम्माननीय सम्मनों सम्मानित किया गया। इन्होंने अनेक कॉलेजों में पढाया और अन्त में जवाहरलाल नेेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद से सेवा-निवृत्त हुए। ये समकालीन कविता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। इनकी कविता में गॉव व शहर का द्वन्द्व स्पष्ट दृष्टिगत है। बाघ इनकी प्रमुख लम्बी कविता है, जिसे नई कविता के क्षेत्र में मील का पत्थर माना जा सकता है।
केदारनाथ सिंह का जीवन काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा इन्होनें अपनी पहली नौकरी 1969 ई० में पडरौना के एक कालेज से आरम्भ किये जो की इनके जीवन के आर्थिक संकट का समय भी रहा, पडरौना में नौकरी के दौरान इनकी पत्नी की तबियत काफी ख़राब हो गयी और कुछ ही दिनों के बाद इनकी पत्नी का निधन हो गया जो की इनके जीवन के लिए एक अपूरणीय क्षति रही।
इनके शोध गुरु आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी थे जिनके संरक्षण में इनका शोध कार्य संपन्न हुआ । इनके परिवार में इनकी पांच बेटियाँ एवं एक बेटा है, कुछ दिनों तक केदारनाथ सिंह ने अपनी सेवा गोरखपुर के सेंटएड्रयूज कालेज में भी दिया और यहाँ के बाद इनकी नियुक्ति देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय नई दिल्ली में हिंदी विभाग में हुई।
केदारनाथ सिंह ने लोक और स्थानीय ग्रामीण संवेदनाओं को एक अत्यंत चुस्त मुहावरे और उत्कृष्ट बिंबों के साथ न सिर्फ संभव किया, बल्कि उसे आधुनिक रचना संसार में प्रतिष्ठित भी किया, इनकी कविता एक जैविक उपस्थिति व किसी मामूली वस्तु या व्यक्ति को गैर-मामूली और मार्मिक परिप्रेक्ष्छ में रख देती है।
इन्हीं लाइनों के साथ हिंदी का यह अनमोल सितारा 19 मार्च 2018 ई० को नई दिल्ली के एम्स में संसार को अलविदा कह गया। जीवन के अंतिम संग्रह में इन्होनें “जाऊँगा कहाँ” को अपनी अंतिम कविता के रूप में रखा जिसकी कुछ लाइनें संसार से विदा होने की आहटें दे जाती है।
- नाम – केदारनाथ सिंह।
- जन्म – 7 जुलाई, 1934
- मृत्यु – 19 मार्च, 2018
- जन्म-स्थान – चकिया गाँव, बलिया (उत्तर प्रदेश)
- मृत्यु स्थान – नई दिल्ली।
- कर्म-क्षेत्र – कवि, लेखक।
- भाषा – हिंदी।
- विद्यालय – बनारस हिंदू विश्वविद्यालय।
- शिक्षा – एम.ए. (हिंदी), पी.एच.डी.
- नागरिकता – भारतीय।
- मुख्य रचनाएँ – अभी बिल्कुल अभी, ज़मीन पक रही है, यहाँ से देखो, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ, बाघ, तालस्ताय और साइकिल।
- पुरस्कार-उपाधि – ज्ञानपीठ पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान (1997)
- अन्य जानकारी – इनकी कविताओं के अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, स्पेनिश, रूसी, जर्मन और हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं।
भाषा-शैली –
इनकी कविता की भाषा बोलचाल की सहज हिन्दी है, किन्तु उसकी प्रवाहात्मकता नही की जलधारा के समान अविचल ओर अविरल है। इनकी काव्य भाषा के विषय में कहा गया है कि भाषा के समबन्ध में इनका संशय उत्तरोत्तर बढ़ा है और ये इस बात की लगातार शिनाख्त करते दिखाई देते हैं।
भाषा कहॉ है, कैसे बचेगी और कहॉ विफल है, कहॉ विकसित किए जाने की आवश्यकता है। काव्य में भाषा का परिष्कार करते ये अकेले ही दृष्टिगत होते है। इस क्रम में उनहें इस बात का आभास भी होता है कि भाषा को अभी विकसित होना बचा है।
उनकी काव्य-शैली के विषय में यही कहा जा सकता है कि उनकी कविता में मनुष्य की अक्षय ऊर्जा तथा अदम्य जिजीविषा है और परम्परा से मिली दिशाऍ है, जिनका सन्धान अन्होंने आवश्यकतानुसार अपनी पिछली जिन्दगी की ओर मुड़कर भी किया है। वे अपने काव्य-कृजन में आगे बढ़ते रहे हैं, किन्तु पीछे का नष्ट नहीं करते बलिक् उसकी भी कोई-न-का्ेई लीक गची रहती है, जहॉ आवश्यकतानुसार वे लौअते हैं।
केदारनाथ सिंह की मुख्य रचनायें –
- अभी बिल्कुल अभी
- तालस्ताय और साइकिल
- उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ
- अकाल में सारस
- यहाँ से देखो
- सृष्टि पर पहरा
- जमीन पक रही है
- बाघ
केदारनाथ सिंह को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया-
- बिहार का दिनकर सम्मान
- उत्तर प्रदेश का भारत – भारती सम्मान
- मैथलीशरण गुप्त सम्मान
- केरल का आशान सम्मान
- साहित्य अकादमी पुरस्कार 1989
- व्यास सम्मान
- इसके अलावा 2013 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पुरस्कार-सम्मान –
1989 में उनकी कृति ‘अकाल में सारस’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। इसके अलावा उन्हें व्यास सम्मान, उत्तर प्रदेश का भारत-भारती सम्मान, मध्य प्रदेश का मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, बिहार का दिनकर सम्मान तथा केरल का कुमार आशान सम्मान मिला था। वर्ष 2013 में उन्हें प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वह हिन्दी के दसवें साहित्यकार थे।
मुख्य कृतियाँ –
- अकाल में सारस(1988)
- जमीन पक रही है(1980)
- उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ(1995)
- बाघ(1996),(पुस्तक के रूप में)
- सृष्टि पर पहरा (2014)
- अभी बिल्कुल अभी (1960)
- तालस्ताय और साइकिल(2005)
- यहाँ से देखो(1983)
आलोचना –
- मेरे साक्षात्कार
- मेरे समय के शब्द
- कल्पना और छायावाद
- आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान
संपादन –
- शब्द (अनियतकालिक पत्रिका)
- साखी (अनियतकालिक पत्रिका)
- समकालीन रूसी कविताएँ
- कविता दशक
- ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन)