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महाकवि कालिदास का जीवन परिचय – Biography of Kalidas in Hindi

Biography of Kalidas in Hindi

जीवन परिचय –

कालिदास के जन्म वर्ष और जन्म स्थान को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद है। छठीं सदी के दौरान बाणभट्ट ने कालिदास का अपनी रचना हर्षचरित में वर्णन किया है। इन बातों से प्रतीत होता है की कालिदास का जन्म इनसे से पहले हुआ था।

इसी काल में पुलकेशिन द्वितीय के शासनकाल के अभिलेखों में भी कालिदास का वर्णन मिलता है। दूसरी तरफ कालिदास ने अपने एक नाटक मालविकाग्निमित्रम् में जिस शासक अग्निमित्र की जिक्र किया हैं उनका शासन काल १७० ईसापू्र्व माना जाता है।

इन तथ्यों के आधार पर यह कयास लगाया जाता है की कालिदास का जन्म पहली सदी और छठीं सदी के दौरान हुआ होगा। कुछ विद्वान उनका जन्म स्थान मध्यप्रदेश के उज्जैन को मानते हैं।

उनके जन्म स्थान को लेकर भी विद्वानों के बीच मतांतर है। जबकि कुछ विद्वान उनके जन्म स्थान उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग में स्थित कविल्ठा गांव को मानते हैं। उनके अनुसार कालिदास का जन्म कविल्ठा गांव में हुआ था और यही पर उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा भी हुई।

  • नाम – कालिदास।
  • जन्म – ईसा पूर्व पहली से तीसरी शताब्दी के बीच।
  • मृत्यु वर्ष – वास्तविक तिथि ज्ञात नहीं।
  • पत्नी – विद्योत्तमा।
  • प्रमुख रचना – अभिज्ञान शाकुंतलम्, मालविकाग्निमित्रम्, रघुवंशम् और दूसरा कुमारसंभवम् और मेघ दूत।

आरंभिक जीवन –

जन्म के काल को लेकर विवाद –

साहित्य के विद्दान और महाकवि कालिदास का जन्म कब और कहां हुआ इसके बारे में अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं हैं। लेकिन इनके जन्म को लेकर विद्धानों के अलग-अलग मत है।

छठीं सदी में बाणभट्ट ने अपनी रचना “हर्षचरितम्” में कालिदास का उल्लेख किया है तथा इसी काल के पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख में कालिदास का जिक्र है आखिरकार वे इनके बाद के नहीं हो सकते। इस तरह कालिदास के प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से  तीसरी शताब्दी ईसवी के बीच के जन्मे माने जाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि 150 ईसा पूर्व 450 ईस्वी तक कालिदास रहे होंगे। जबकि एक रिसर्च के मुताबिक कालिदास गुप्त काल में जन्मे होंगे। चूंकि कालिदास ने, द्धितीय शुंग शासक अग्निमित्र को नायक बनाकर “मालविकाग्निमित्रम्” नाटक लिखा और अग्निमित्र ने 170 ईसापू्र्व में शासन किया था जिससे कालीदास के जन्म का अनुमान लगाया जा सकता है।

कालीदास ने जन्म-स्थान के बारे में कुछ स्पष्ट ज्ञान नही –

महाकवि कालिदास के जन्म काल की तरह उनके जन्मस्थान के बारे में भी कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता। उन्होनें अपने खण्डकाव्य मेघदूत में मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर का काफी वर्णन किया है इसलिए कई इतिहासकार मानते है महाकवि कालिदास उज्जैन के निवासी थे।

कुछ साहित्यकारों की माने तो कालिदास का जन्म उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कविल्ठा गांव में हुआ था वहीं कविल्ठा गांव में भारत सरकार के द्धारा कालिदास की एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है इसके साथ ही एक सभागार का निर्माण भी करवाया गया है।

कालिदास के जन्मस्थान के बारे में भी साहित्यकारों के अलग-अलग मत हैं। इसके साथ ही आपको ये भी बता दें कि इस ऑडोटोरियमें में हर साल जून में तीन दिनों की एक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन होता है जिसमें हिस्सा लेने देश के अलग-अलग हिस्सों से विद्धान आते हैं।

महान कवी कालिदास जी के बारे में ये भी कहा जाता है कि वे बचपन में अनपढ़ थे उन्हें चीजों की समझ नहीं थी। कालिदास की छवि अति सुंदर और मनमोहक थी वे हर किसी को अपनी तरफ आर्कषित कर लेते थे इसके साथ ही वे राजा विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्नों में से एक थे। लेकिन बाद में वे साहित्य के विद्दान हो गए और उन्हें हिन्दी साहित्य के महान कवि का दर्जा मिला।

विवाह राजकुमारी विद्योत्मा से हुआ

महान कवि और दार्शनिक कालिदास की शादी संयोग से राजकुमारी विद्योत्मा से हुई। ऐसा कहा जाता है कि राजकुमारी विद्योत्मा ने प्रतिज्ञा की थी की जो भी उन्हे शास्त्रार्थ में हरा देगा, वे उसी के साथ शादी करेंगी जब विद्योत्मा ने शास्त्रार्थ में सभी विद्दानों को हरा दिया तो अपमान से दुखी और इसका बदला लेने के लिए छल से कुछ विद्धानों ने कालिदास से राजकुमारी विद्योत्मा का शास्त्रार्थ करवाया।

उनका विवाह राजकुमारी विद्योत्मा से करवा दिया। आपको बता दें कि शास्त्रार्थ का परीक्षण के लिए राजकुमारी विद्योत्मा मौन शब्दावली में गूढ़ प्रश्न पूछती थी, जिसे कालिदास अपनी बुद्धि से मौन संकेतों से ही जवाब दे देते थे।

इसलिए उसके जवाब में उन्होनें घूंसा दिखा दिया तब विद्योत्मा को लगा कि कालिदास कह रहे हैं कि पांचों इन्द्रियां भले ही अलग हों, सभी एक ही मन के द्धारा संचालित है। उदाहरण के लिए विद्योत्मा ने प्रश्न के रूप में खुला हाथ दिखाया तो कालिदास को लगा कि वह थप्पड़ मारने की धमकी दे रही हैं।

विद्योत्मा को लगता था कि कालिदास गूढ़ प्रश्न का गूढ़ जवाब दे रहे हैं। इससे प्रभावित होकर राजकुमारी विद्योत्मा ने कालिदास से शादी करने के लिए हामी भर दी और उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया।

पत्नी की धित्कार के बाद कालिदास महान कवि बने –

इस तरह उन्हें अपनी पत्नी के धित्कारने के बाद परम ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे महान कवि बन गए। आज उनकी गणना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाने लगी यही नहीं संस्कृति साहित्य में अभी तक कालिदास जैसा कोई दूसरा कवि पैदा ही नहीं हुआ।

फिर क्या था पत्नी से अपमानित हुए कालिदास ने विद्या प्राप्त करने का संकल्प लिया और सच्चे पंडित बनने की ठानी और इस संकल्प के साथ वे घर से निकल प़ड़े। और मां काली की सच्चे मन से उपासना करने लगे।

कुछ दिनों बाद जब राजकुमारी विद्योत्मा को जब कालिदास की मंद बुद्धि का पता चला तो वे अत्यंत दुखी हुईं और कालिदास जी को धित्कारा और यह कह कर घर से निकाल दिया कि सच्चे पंडित बने बिना घर वापस नहीं आना।

जिसके बाद मां काली के आशीर्वाद से वे परम ज्ञानी और साहित्य के विद्धान बन गए। इसके बाद वे अपने घर लौटे, और अपनी पत्नी को आवाज दी, जिसके बाद विद्योत्मा दरवाजे पर सुनकर ही समझ गईं कि कोई विद्धान व्यक्ति आया है।

संसार के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार कालिदास जी है –

महाकवि कालिदास की गणना भारत के ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण संसार के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकारों में की जाती है। उन्होंने नाट्य, महाकाव्य और गीतिकाव्य के क्षेत्र में अपनी अदभुत रचनाशक्ति का प्रदर्शन कर अपनी एक अलग ही पहचान बनाई ।

महाकवि कालिदास की रचनाएं – 

कालिदास ने अपनी दूरदर्शी सोच और विलक्षण बुद्दि से जो रचनाएं लिखी हैं उनकी गणना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कवियों और नाटककारों में होती है।

उनकी रचनाओं का साहित्य के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्त्व भी है। उनके रचनाओं की लंबी लिस्ट है लेकिन कालिदास को उनकी सात रचनाओं की वजह से सबसे ज्यादा ख्याति मिली है वे रचनाएं इस प्रकार से हैं –

चार काव्य-ग्रंथो में प्रसिद्ध हैं-

  • खंडकाव्य- मेघदूत, ऋतुसंहार।
  • तीन नाटक प्रसिद्ध हैं-
  • अभिज्ञान शाकुंतलम्।
  • महाकाव्य – रघुवंश, कुमारसंभव।
  • विक्रमोर्वशीय।
  • मालविकाग्निमित्र।

इन रचनाओं की वजह से वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ और महान कवि बने। इसकी सुन्दर सरस भाषा, प्रेम और विरह की अभिव्यक्ति और प्रकृति चित्रण से पाठक मुग्ध और भावविभोर हो उठते हैं। कालिदास की रचनाओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार से है –

अभिज्ञान शाकुन्तलम्  (नाटक) – 

महाकवि कालिदास जी का ये नाटक काफी मशहूर है ये नाटक महाभारत के आदिपर्व के शकुन्तला की व्याख्या पर आधारित है जिसमें राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा का वर्णन भी किया गया है। इस नाटक के कुल सात अंक है।

विक्रमोर्वशीयम् (नाटक) –

कवि का ये नाटक पाठकों को अंतिम क्षण तक बांधे रखता है और पाठकों में प्रेम भावना जागृत करता है इसलिए भारी संख्या में पाठक कवि की इस रचना से जुड़े हैं।

महाकवि कालिदास का विक्रमोर्वशीयम नाटक एक रोमांचक और रहस्यों से भरा नाटक है। जिसमें कालिदास जी पूरुरवा और अप्सरा उर्वशी के प्रेम संबंधों का वर्णन किया है।

मेघदूत (खंडकाव्य) –

कवि कालिदास का ये खंडकाव्य ने भी काफी प्रसिद्धि हासिल की है इस खंडकाव्य में कवि कालिदास ने एक पति की अपनी पत्नी के प्रति वेदना का वर्णन किया है। मेघदूत में कालिदास ने यक्ष नाम के एक सेवक की कहानी का वर्णन किया है।

रघुवंश (महाकाव्य) –

साहित्य के विद्धान कवि कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंश में रघुकुल वंश के राजाओं की व्याख्या की है। इस महाकाव्य में कवि ने बताया कि भगवान राम रघुवंश से संबंध रखते थे इसके साथ ही इस महाकाव्य में ये भी बताया गया है कि दिलीप रघुकुल के प्रथम राजा थे।

मालविकाग्रिमित्रम् (नाटक) –

महाकवि कालिदास का मालविकाग्रिमित्रम् नाटक राजा अग्रमित्र  की प्रेम कहानी पर आधारित नाटक है। इस नाटक में साहित्य के विद्धान कवि कालिदास ने राजा अग्रिमित्र और  एक नौकर की बेटी मालविका के प्रेम मिलन की व्याख्या को वक्त किया है।

महाकवि कालिदास का ये नाटक पाठकों के मन में एक अलखग जगाई है यही वजह है कि उनके इस नाटक को बहुत ख्याति प्राप्ति हुई है।

कुमारसंभवम् (महाकाव्य) –

महाकाव्य कुमारसंभवम् में भगवान शिव और माता पार्वती जी की प्रेमकथा की व्याख्या की है इसमें कवि कालिदास ने माता पार्वती के सौंदर्य रूप की व्याख्या करते हुए लिखा है कि संसार में जितने भी मनमोहक उपमान हो सकते थे।

उन सभी एकत्रित कर और फिर उसे भलिभांति सही स्थान पर संयोजित कर विधाता ने बड़े जतन से माता पार्वती को बनाया था उन्होनें अपने महाकाव्य में ये भी लिखा कि संसार का सारा सौन्दर्य माता पार्वती में समाहित है।

इसके साथ ही कालिदास ने कुमारसंभवम् में भगवान शिव का माता पार्वती के प्रति प्रेम को भावपूर्ण दर्शाया है जिसे पढ़कर हर पाठक भावभिभोर हो जाता है। इसके अलावा भी इस महाकाव्य में भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय के जन्म के बारे में भी व्याख्या की गयी है।

कालिदास की रचनाओं की खास बातें इस प्रकार से है

  • कालिदास जी अपनी रचनाओं में अलंकार युक्त, सरल और मधुर भाषा का इस्तेमाल करते थे।
  • कालिदास जी अपनी रचनाओं में आदर्शवादी परंपरा औऱ नैतिक मूल्यों का भी ध्यान रखते थे।
  • उन्होनें अपनी रचनाओं में ऋतुओं की भी व्याख्या की है जो कि सराहनीय योग्य है।
  • अपनी रचनाओं में श्रंगार रस का भी बखूबी वर्णन किया है।

अन्य रचनाएं –

  • श्यामा दंडकम्।
  • पुष्पबाण विलासम्।
  • श्रुतबोधम्।
  • सेतुकाव्यम्।
  • श्रृंगार रसाशतम्।
  • श्रृंगार तिलकम्।
  • कर्पूरमंजरी।
  • ज्योतिर्विद्याभरणम्।

कालिदास न सिर्फ एक अच्छे कवि और नाटककार थे बल्कि उन्हें ज्योतिषी का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त था।

कालिदास जी उत्तर कालामृत पुस्तक की रचना की है जो कि मुख्य रुप से ज्योतिष पर आधारित है और जिससे पता चलता है कि महाकवि कालिदास ज्योतिषी विद्या में भी प्रखर थे। कालिदास जी के द्वारा लिखी कुछ अन्य रचनाएं है।

महाकवि कालिदास जी के दोहे –

“एक सच्चा और धैर्यवान पुरुष वही होता है, जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी पूरे साहस के साथ धैर्य से काम लेता है और अपने मार्ग से विचलित नहीं होता है।”

“पृथ्वी पर तीन अनमोल रत्न जल, अन्न और सुभाषित है, लेकिन जो अज्ञानी पत्थरों के टुकड़ों को ही रत्न कहते हैं।”

“दान-पुण्य सिर्फ परलोक में ही सुख देता है जबकि एक योग्य संतान की सेवा से लोक और परलोक दोनों में ही परम सुख की प्राप्ति होती है।”

“सज्जन पुरुष ऐसे होते हैं जो दूसरों की उम्मीदों को ठीक उसी तरह से बिना कुछ कहे ही पूरा कर देते हैं, जैसे की सूर्य हर घर में अपना प्रकाश फैला देता है।”

“सूर्योदय होते समय जैसे सूर्य लालिमायुक्त होता है, ठीक उसी तरह सूर्यास्त के समय भी सूर्य उतना ही लाल होता है, वैसे ही एक महान और धैर्यवान पुरुष अपने सुख-दुख दोनों परिस्थितियों में एक समान रहता है।”

“अगर किसी काम को करने के बाद आप संतुष्ट होते हैं, और आपको इसका अच्छा परिणाम मिलता है, तो निश्चय ही उस परिश्रम की थकान याद नहीं रहती है।”

“कोई भी वस्तु पुरानी हो जाने पर अच्छी नहीं हो जाती और न ही कोई काव्य नया होने से बेकार हो जाता है, वहीं व्यक्ति के अच्छे गुणों और स्वभाव से ही उसके अच्छे या बुरे की पहचान होती है, अर्थात गुणी व्यक्ति ही हर जगह आदर-सम्मान पाता है।”

“किसी भी व्यक्ति का अवगुण नाव की पेंदी में एक छेद की तरह होता है, जो चाहे छोटा हो अथवा बड़ा हो नाव को डुबो ही देता है, ठीक उसी तरह किसी भी बुरे व्यक्ति की बुराइयां उसे खत्म कर देती हैं।”

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