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जीवन-परिचय –
हरिवंशराय बच्चन का जन्म प्रयागराज में मार्गशीर्ष कृष्ण 7, संवत् 1964 वि० (सन् 1907 ई०) में हुआ। इन्होंने काशी और प्रयागराज में शिक्षा प्राप्त की। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से इन्होंने डॉक्टरेट की। बच्चन उत्तर छायावादी काल के आस्थावादी कवि थे।
इनकी कविताओं में मानवीय भावनाओं की सामान्य एवं स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है। कुछ समय ये प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्यापक रहे और फिर दिल्ली स्थित विदेश मन्त्रालय में कार्य किया और वहीं से अवकाश ग्रहण किया।
सरलता, संगीतात्मकता, प्रवाह और मार्मिकता इनके काव्य की विशेषताएँ हैं और इन्हीं से इनको इतनी अधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई। इसके अतिरिक्त इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैण्ड नेहर पुरस्कार तथा एफ्रो-एशियन राइटर्स कान्फ्रेन्स का लोटस पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है।
बच्चन जी को उनकी आत्मकथा के लिये भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ‘सरस्वत सम्मान- 1991‘ से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति ने भी इन्हें पद्मभूषण अलंकृत किया। 18 जनवरी, सन् 2003 ई० में बच्चनजी का निधन हो गया।
• जन्म- 27 नवंबर, 1907 ई०।
• मृत्यु- 18 जनवरी, सन् 2003 ई०।
• पिता- प्रताप नारायण ।
• जन्म-स्थान- प्रयागराज ।
• शैली- भावात्मक गीत शैली।
• भाषा- खड़ीबोली।
रचनाएँ –
आरम्भ में बच्चन जी उमर खैयाम के जीवन-दर्शन से बहुत प्रभावित रहे। इसी ने इनके जीवन को मस्ती से भर दिया। इनकी काव्य-कृतियों में प्रमुख हैं—’मधुशाला’, ‘प्रणय पत्रिका’,’सतरंगिणी’, ‘मधुकलश’ ‘एकान्त संगीत’,’निशा निमन्त्रण’, ‘त्रिभंगिमा’, ‘मिलन यामिनी’, ‘बुद्ध का नाचघर’, ‘आरती और अंगारे’ तथ ‘जाल समेटा’। मधुशाला, मधुबाला, हाला और प्याला को इन्होंने प्रतीकों के रूप में स्वीकार किया।
साहित्यिक सेवाएँ –
पहली पत्नी की मृत्यु के बाद घोर विषाद और निराशा ने इनके जीवन को घेर लिया। इसी समय से इनके हृदय की गम्भीर वृत्तियों का विश्लेषण आरम्भ हुआ, किन्तु ‘सतरंगिणी’ में फिर नीड़ का निर्माण किया गया और जीवन का प्याला एक बार फिर उल्लास और आनन्द के आसव से छलकने लगा।
इसके स्वर हमको ‘निशा-निमन्त्रण’ और ‘एकान्त संगीत’ में सुनने को मिलते हैं। ‘बंगाल का काल’ तथा इसी प्रकार की अन्य रचनाओं में इन्होंने अपने जीवन के बाहर विस्तृत जनजीवन पर भी दृष्टि डालने का प्रयत्न किया।बच्चन वास्तव में व्यक्तिवादी कवि रहे हैं।
इनमें कवि की विचारशीलता तथा चिन्तन की प्रधानता रही। इन परवर्ती रचनाओं में कुछ नवीन विषय भी उठाये गये और कुछ अनुवाद भी प्रस्तुत किये गये। वास्तव में इनकी कविताओं में राष्ट्रीय उद्गारों, व्यवस्था में व्यक्ति की असहायता और बेबसी के चित्र दिखायी पड़ते हैं।
भाषा एवं शैली –
परवर्ती रचनाओं में कवि की वह भावावेशपूर्ण तन्मयता नहीं है, जो उसकी आरम्भिक रचनाओं में पाठकों और श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध करती रही। शैली भावात्मक गीत शैली है, जिसमें लाक्षणिकता और संगीतात्मकता है।इन्होंने सरस खड़ीबोली का प्रयोग किया है।