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गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय – Biography of Goswami Tulsidas in Hindi

कवि – परिचय

Biography of Goswami Tulsidas in Hindi
Biography of Goswami Tulsidas in Hindi

कविकुल चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास जी के नाम से विश्व का जन-जन सुपरिचित है। तुलसीदास जी हिन्दी साहित्य के मार्तण्ड हैं। लोकनायक तुलसी दास जी ने मानव-प्रकृति के जितने रूपों का हृदय स्पर्शी तथा सूक्ष्म चित्रण किया है, उतना किसी अन्य कवि से सम्भव न हो सका। आपने अपनी अद्भुत काव्य-प्रतिभा द्वारा हिन्दी-काव्य को अपूर्व गौरव एवं अमरत्व प्रदान किया है। हरिऔध जी के शब्दों में—

“कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला।”

जीवन-परिचय (जीवनी)– कविकुल कमल दिवाकर सन्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन अन्धकारपूर्ण रहा। इनकी जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में प्राय: विद्वानों में मतभेद हैं।

डॉ० नगेन्द्र ने इनके जन्मस्थल के बारे में लिखा है—(अ) राजापुर (बाँदा), (ब) सोरों (एटा), (स) सूकर क्षेत्र (आजमगढ़)। तुलसीदास जी सरयूपारी ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम श्री आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। ऐसा कहा जाता है कि तुलसी जी का जन्म अभुक्तमूल नक्षत्र में होने से इनके माता-पिता ने इनका परित्याग कर दिया था, इस प्रकार इनका बचपन बड़े कष्टों में बीता।

इनके बचपन का नाम रामबोला था। सौभाग्यवश इनकी भेंट बाबा नरहरिदास जी से हो गई। जिनके साथ आप तीर्थों में घूमते रहे और विद्याध्ययन भी करते रहे। इनकी कृपा से तुलसीदास जी वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात हो गए।

तुलसीदास जी के जन्म के विषय में यह दोहा विशेष प्रचलित है-

पन्द्रह सौ चौवन बिसै, कालिन्दी के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्यो शरीर॥

‘शिवसिंह सरोज’ ने आपका जन्म सम्वत् 1583 वि० (सन् 1526) तथा पं० रामगुलाम द्विवेदी द्वारा आपका जन्म सम्वत् 1589 वि० (1532 ई०) माना जाता है। अन्तः साक्ष्य के आधार पर इनका जन्म सम्वत् 1589 वि० (सन् 1532 ई०) युक्ति युक्त प्रतीत होता है।

तुलसीदास जी का विवाह पं० दीनबन्धु पाठक की सुन्दर एवं विदुषी पुत्री रत्नावली के साथ हुआ था। आप उससे अत्यन्त प्रेम करते थे। वे किसी क्षण भी उससे दूर नहीं होना चाहते थे। इनकी अनुपस्थिति में एक दिन वह अपने मायके चली गईं।

वे इस वियोग को सहन न कर सके और वे भीषण वर्षा में नदी को एक शव के द्वारा पार करके रात के समय पत्नी के पास जा पहुँचे। उनकी ऐसी आसक्ति देखकर रत्नावली ने इन्हें फटकारते हुए कहा-जितना प्रेम मुझसे करते हो, उतना प्रेम तुम राम से करो, जीवन धन्य हो जाएगा।

“लाज न आवत आपको, दौरे आयेहु साथ।
धिक्-धिक् ऐसे प्रेम को, कहा कहौं मैं नाथ ॥
अस्थि चर्ममय देह मम, तामें ऐसी प्रीति ।
जो कहुँ होती राम में, होती न तौं भव-भीति ॥”

पत्नी की उक्त भर्त्सना से तुलसीदास जी की अवधारा प्रभु राम की ओर उन्मुख हो गई। वे विरक्त होकर काशी चले गए और अनेक तीर्थ-स्थानों की यात्राएँ कीं, तथा इनका जीवन काशी, अयोध्या तथा चित्रकूट में अधिक व्यतीत हुआ।

काशी के विद्वान शेष- सनातन से शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त कर सम्वत् 1931 वि० में अयोध्या में रहकर रामचरितमानस की रचना 7 काण्डों में प्रारम्भ की और इसे दो वर्ष सात माह में परिपूर्ण किया। अन्ततः तुलसीदास जी काशी के असी घाट पर सम्वत् 1680 वि० (सन् 1623 ई०) में अपना पार्शिव शरीर त्यागकर राममय हो गए। इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में यह दोहा विशेष प्रसिद्ध है-

“सम्वत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी तज्यो शरीर ।। “

– साभार – श्रीराम चरितमानस

रचनाएँ (कृतियाँ) – तुलसीदास जी की 13 रचनाएँ प्रामाणिक मानी जाती हैं, जिसका वर्णन निम्नलिखित है-

1. रामचरितमानस – यह ग्रन्थ तुलसीदास जी की सर्वश्रेष्ठ कृति है। इसमें कवि ने राम-कथा को दोहा, सोरठा, चौपाई आदि छन्दों के द्वारा 7 काण्डों में प्रस्तुत किया है। विश्व-साहित्य के प्रमुख ग्रन्थों में इसकी गणना आज भी की जाती है। इस महानतम ग्रन्थ में नवरसों के साथ वात्सल्य तथा भक्तिरस का भी सुन्दर परिपाक हुआ है। इनकी भाषा ‘अवधी’ है।

2. श्रीकृष्ण दोहावली – कहा जाता है कि एक बार मथुरा में सूरदास से तुलसीदास जी की भेंट हो गई, धीरे-धीरे दोनों में प्रेम-भाव बढ़ गया। सूरदास से प्रभावित होकर तुलसीदास जी ने श्रीकृष्ण गीतावली की रचना कर डाली। इसमें 61 पदों में कवि ने पूरी श्रीकृष्ण-कथा को मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किया है।

3. गीतावली – इसमें संकलित 230 पदों में श्रीराम जी के चरित्र का सुन्दर वर्णन मिलता है। शृंगार, करुण, वीर रस का सुन्दर वर्णन है। यह ‘ब्रज’ भाषा में लिखी गयी है।

4. विनय पत्रिका –यह तुलसीदास जी की प्रौढ़तम कृति है। यह तुलसीदास जी की अरजी (प्रार्थना-पत्र) है। जो राम के दरबार में कलिकाल के विरुद्ध पेश की है। यह तुलसीदास जी का श्रेष्ठतम गीतिकाव्य है। इसकी भाषा ‘ब्रज’ है।

5. जानकी मंगल – इसमें कवि ने श्रीराम तथा जानकी के मंगलमय विवाहोत्सव का वर्णन किया है।

6. दोहावली—इसमें कवि के सूक्ति-संग्रह के दर्शन होते हैं। इसमें दोहों की संख्या 573 है। इसमें नीति, भक्ति के साथ-साथ राम-महिमा का सर्वत्र उल्लेख देखा जा सकता है।

7. कवितावली – भाव तथा भाषा की दृष्टि से ‘कवितावली’ तुलसीदास जी की सुन्दर रचना है। इसमें ‘रामचरितमानस’ की तरह 7 काण्डों के दर्शन होते हैं। इसमें राम कथा के साथ-साथ कृष्ण-चरित की भी कविताएँ संकलित हैं।

इसके अतिरिक्त इन्होंने रामलला नहछू, रामाज्ञा प्रश्न, बरवै रामायण, वैराग्य संदीपनी, पार्वती मंगल तथा हनुमान बाहुक की रचना की।

भाषा-शैली – तुलसीदास जी का ब्रज तथा अवधी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। ‘विनय-पत्रिका’ ब्रजभाषा में तथा श्रीरामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की है।

तुलसीदास जी ने तत्कालीन सभी काव्य-शैलियों का प्रयोग अपने काव्य में किया है। अवधी को साहित्यिक रूप प्रदान करने के लिए तुलसीदास जी ने संस्कृत के शब्दों का भी यथास्थान प्रयोग किया है। इनके काव्य के कलापक्ष की पूर्णता को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि तुलसीदास जी संस्कृत भाषा के साथ-साथ काव्य शास्त्र, ज्योतिष के भी पण्डित थे।

तुलसीदास जी के रामरूपी अमृत का पान करके ही अगणित जन अमर हो गए। इस प्रकार तुलसीदास जी का साहित्यिक अवदान अद्भुत तथा चिरस्मरणीय है।

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