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जीवन परिचय –
पं. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘ओय’ का जन्म सन् 1911 ई. में लाहौर के करतापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पं. हीरानन्द शास्त्री सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता थे। जिता का बार-बार स्थानान्तरण होने के कारण ‘ओय‘ जी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई।
इन्होंने फारसी ओर अँग्रेजी का अध्ययन घर पर ही किया । विज्ञान सनातक होने के बाद जब वे एम.ए. कर रहे थे तभी क्रान्तिकारी षड्यन्त्रों में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिए गए ओर सन् 1930 से 1934 ई. तक कारागार में रहे। गद्रास ताि लाहौर से इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की।
बाद में एक वष्र इन्हें घर में ही नजरबन्द रहना पड़ा। सन् 1943–1946 ई. में इनहोंने सेना में भर्ती होकर असम-बर्मा सीमा पर और युद्ध समाप्त हो जाने पर पंजाब-पश्चिमोत्तर सीमा पर एक सैनिक के रूप में सेवा की।
सन् 1955 ई. में वे यूनेस्कों की वृत्ति प्राप्त कर यूरोप चले गये। इनके उपन्यास ओर कहानियॉं उच्च कोटि की है। पत्रकार के रूप में इनहें पर्याप्त सम्मान मिला। सन् 1943 ई. में ‘तार-सप्तक‘ का प्रकाशन करके हिन्दी विता में नवीन आन्दोलन चलाया।
4 अप्रैल 1987 ई. को इनका देहान्त हो गया। वे प्रयोगवाद के प्रवर्त्तक तथा समर्थ साहित्यकार थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनकी प्रतिभा गद्य-क्षेत्र में नवीन प्रयोगों में दिखायी देती है।
- नाम – सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।
- जन्म – 7 मार्च सन् 1911 ई०।
- मृत्यु – 4 अप्रैल, 1987।
- जन्म-स्थान – कसया (कुशीनगर)।
- पिता – पंडित हीरानन्द शास्त्री।
- माता – वयन्ती देवी।
- पत्नी – कपिला।
भाषा-शैली –
अज्ञेय जी का अध्ययन और अनुभाव विशाल था। इनके शब्दों में और प्रतीको में भी जीवन के यथार्थ को उद्घाटित करने की शक्ति थी। इन्होने भाषा के विविध रूपों का प्रयोग किया है। इनकी भाषा विषय और प्रसंग के अनुसार बदलती रहती है।
अज्ञेय संस्कृतनिष्ठ भाषा से लेकर आम बोलचाल की भाषा तथा उर्दू व अग्रेज़ी के शब्दों का भी नि:संकोच प्रयोग किया है ।अत: अज्ञेय नवीन चेतना के संचालक, नवीन बोध के संवाहक तथा भाषा के अनूठे शिल्पी – कवि साहित्यकार है।
इनकी शैली विविधरूपिणी है। अज्ञेय जी के गंभीर व्यक्तित्व की छाप इनकी रचना – शैली पर विशेष रूप से दिखाई देती है। शैली के क्षेत्र में इन्होंने अनेक नवीन प्रयोग एवं मानक स्थापित किये है। इनकी रचनाओं में निम्नलिखित शैलियों के दर्शन होते है —
- व्यंग्यात्मक शैली
- अलोचनात्मक शैली
- विवेचनात्मक शैली
- भावात्मक शैली
- वर्णनात्मक शैली
इसके अतिरिक्त अज्ञेय जी ने उध्दरण शैली, प्रश्नोत्तर शैली, डायरी शैली, टिप्पणी शैली, इन्टरव्यू शैली आदि शैलियों का भी कलात्मक प्रयोग किया है।
कृतियाँ –
अज्ञेय प्रयोगवाद के परावर्तक तथा समर्थ साहित्यकार थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनकी प्रतिभा गद्य – क्षेत्र में नवीन प्रयोगों में दिखाई देती है। अज्ञेय हिन्दी – साहित्य के ऐसे रचनाकार है, जिन्होंने लगभग प्रत्येक विधा पर कुशलता के साथ अपनी लेखनी चलाई है। अज्ञेय जी की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार से है —
आलोचना या समीक्षा–ग्रन्थ – ‘हिन्दी – साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य ‘ , त्रिशंकु तथा तीनो सप्तको की भूमिकाएँ आदि।
निबन्ध–संग्रह- आत्मनेपद, सब रंग और कुछ राग, लिखि कागद कोरे आदि इनके वैयक्तिक या आत्मपरक निबन्ध-संग्रह है।
काव्य-रचनाएँ —
- इन्द्रधनुष रौदें हुए ये
- अरी ओ करुणा प्रभामय
- आँगन के पार द्वार
- बावरा अहेरी
- कितनी नावो में कितनी बार
- हरी घास पर क्षण भर
- भग्नदूत
- इत्यलम
- सुनहले शैवाल
- पहले मै सन्नाटा बुनता हूँ
- चिन्ता
- पूर्वा
कहानी-संग्रह —
- जयदोल (1951)
- परम्परा (1944)
- कोठरी की बात (1945)
- ये तेरे प्रतिरूप (1961)
- शरणर्थी (1948)
- विपथगा (1937)
नाटक- उत्तरप्रियदर्शी (1967) आदि।
उपन्यास-
- नदी के दीप
- अपने – अपने अजनबी (1961)
- शेखर: एक जीवनी – भाग-1 (सन्1941) , शेखर: एक जीवनी – भाग-2 (सन्1944)
यात्रा-साहित्य –
सम्पादन— ‘सैनिक’, ‘प्रतीक’, ‘विशाल भारत’, ‘दिनमान’, ‘वाक्’ आदि।
- एक बूंद सहसा उछली (1960)
- अरे यायावर रहेगा याद (1953)
इसके अतिरिक्त इन्होंने अन्य अनेक ग्रंथो का सम्पादन भी किया है। इनके द्वारा सम्पादित किये गए ग्रन्थ है ‘आधुनिक हिंदी – साहित्य’ (निबन्ध – संग्रह), ‘तार सप्तक’ (कविता – संग्रह) एवं नये एकांकी आदि। इनकी उपन्यास और कहानियाँ उच्च कोटि की है।
अज्ञेय जी को प्राप्त पुरस्कार और सम्मान —
अज्ञेय जी को जो प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए, उनमे से कुछ विशेष पुरस्कार इस प्रकार से है —
नागरी प्रचारिणी सभा पुरस्कार— शेखर: एक जीवनी के लिए सन् 1943 में ।
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार— ‘कितनी नावो में कितनी बार’ पर सन् 1978 में मिला था।
साहित्य अकादमी पुरस्कार— ‘आँगन के पार द्वार’ पर सन् 1962 में प्राप्त हुआ।
भारत – भारती पुरस्कार— मार्च 1987 में वर्ष 1983 – 84 के लिए उत्तरप्रदेश संस्थान द्वारा प्राप्त हुआ।
स्वर्णमाल पुरस्कार— मई 1983 में सुगा (युगोस्लाविया) में अंतर्राष्ट्रीय काव्य – समारोह की संचालन – समिति द्वारा प्रदान हुआ।
उपाधियाँ — अज्ञेय को हिन्दी साहित्य सम्मलेन प्रयाग द्वारा ‘साहित्य वाचस्पति‘ की उपाधि सन् 1968 में और विक्रम वि०वि० उज्जैन द्वारा डी० लिट० की उपाधि सन् 1971 में प्रदान की गयी थी।
विवाह —
6 जुलाई, 1956 को अज्ञेय का कपिला के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। इनकी धर्मपत्नी का नाम “कपिला” था।
‘अज्ञेय’ जी का पूरा नाम?
अज्ञेय जी का पूरा नाम सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ था।
शिक्षा —
इनकी घरेलू शिक्षा का प्रारम्भ लखनऊ में और विद्यालीय शिक्षा का समापन लाहौर में हुआ था। स्वाध्याय के बल पर उन्होंने संस्कृत ,बंगला, फारसी , अंग्रेजी और तमिल आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया।
अज्ञेय ने सन् 1925 में पंजाब से मैट्रिक परीक्षा व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में उत्तीर्ण की और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से इण्टरमीडिएट की परीक्षा सन् 1927 में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी।
लाहौर के फाॅरमन कॉलेज से सन् 1929 में बी० एस० सी० की परीक्षा उत्तीर्ण की। लाहौर में ही सन् 1930 में एम०ए० पूर्वाध्द अग्रेजी की परीक्षा दी और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए पर उत्तराध्द की परीक्षा न दे सके और क्रान्तिकारी संगठन में सम्मिलित हो गये।
अज्ञेय के महत्वपूर्ण कार्य —
इनके द्वारा किये गये कार्यो में सबसे महत्वपूर्ण कार्य ‘तारसप्तक के सम्पादन – प्रकाशन‘ का है। सन् 1943 – 1946 ई० में उन्होंने सेना में भर्ती होकर असम – वर्मा सीमा पर और युध्द समाप्त हो जाने पर पंजाब – पश्चिमोत्तर सीमा पर एक सैनिक के रूप में सेवा की। जिससे अज्ञेय जी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुआ।
सन् 1952 से 1955 तक आकाशवाणी के भाषा सलाहकार रहे। सितम्बर, 1961 से जुलाई, 1964 तक के लिए अज्ञेय की नियुक्ति कैलीफोर्निया वि० वि० , बर्कले (अमेरिका) में भारतीय संस्कृति और साहित्य विषय के अध्यापन हेतु हुई। फरवरी, 1965 में अज्ञेय की अगुवाई में दिनमान का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
जुलाई 1971 से सितम्बर 1972 तक जोधपुर वि०वि० में तुलनात्मक साहित्य में प्रोफेसर पद पर रहते हुए अज्ञेय ने विधिवत् अध्यापन – कार्य किया। जयप्रकाश नारायण के आग्रह पर सन् 1973 की जनवरी में ‘एवरीमैन्स‘ का सम्पादन स्वीकार कर दिसम्बर, 1973 में ही इससे त्यागपत्र दे दिया।
एवरीमैन्स के अनन्तर अज्ञेय ने दिसम्बर, 1973 में ही नया प्रतीक संज्ञक साहित्यिक मासिक पत्रिका निकालना शुरू किया। उन्होंने भारतीय ज्ञानपीठ से मिली धनराशि का उपयोग वत्सल निधि की स्थापना हेतु किया और वत्सल निधि के अंतर्गत व्याख्यान – मालाये आयोजित की ।
अगस्त, 1977 से अज्ञेय ने दैनिक नवभारत टाइम्स के सम्पादक का पद – भार ग्रहण किया और वहाँ वे 1979 तक रहे। सन् 1983 में सुगा (युगोस्लाविया) के अंतर्राष्ट्रीय काव्य -समारोह की संचालन – समिति द्वारा अज्ञेय को स्वर्णमाल पुरस्कार के लिए चैनित किया गया , जिसके परिप्रेक्ष्य में उन्होंने युगोस्लाविया की यात्रा की।
अज्ञेय का जन्म–स्थान?
प्रयोगवादी विचारधारा के प्रवर्तक पं० सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्सयन ‘अज्ञेय’ का जन्म 7 मार्च सन् 1911 ई० को कसया (कुशीनगर) के पुरातत्विक विभाग के एक खुदाई – शिविर में हुआ था।
अज्ञेय के माता–पिता का नाम?
अज्ञेय जी के पिताश्री का नाम पंडित हीरानन्द शास्त्री था। इनके पिता भारत के सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता थे। तथा इनकी माँ का नाम श्रीमती वयन्ती देवी था ।
अज्ञेय वात्स्यायन क्यों कहे जाते है?
अज्ञेय जी वत्स गोत्र के और सारस्वत ब्रह्मण परिवार के थे। संकीर्ण जातिवाद से ऊपर उठकर वत्स नामक गोत्र के होने के कारण ‘वात्स्यायन‘ कहलाये। अत: अज्ञेय जी वत्स गोत्रीय होने के कारण ‘वात्स्यायन‘ कहे जाते है।
Vill +po-konar
Ravi yadav konar ahiran ji