Skip to content

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय – Biography of Acharya Ramchandra Shukla

लेखक परिचय

Biography of Acharya Ramchandra Shukla
Biography of Acharya Ramchandra Shukla

जीवन-परिचय – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार हैं। शुक्ल जी हिन्दी साहित्य रूपी भवन के कुशल शिल्पी थे। वे सहृदय कवि, कुशल समालोचक, उत्कृष्ट निबन्धकार तथा सफल अनुवादक भी थे।

हिन्दी साहित्य की अमर विभूत् िआचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी का जन्म बस्ती जिले के अगोना नामक गाँव में सन् 1884 ई० को हुआ था। इनके पिता का नाम पं० चन्द्रबली शुक्ल था।

इनकी माँ महाकवि तुलसीदास जी के वंश की थीं। वे अत्यन्त विदुषी तथा धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्री थीं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा राठ तहसील में हुई। सन् 1901 ई० में मिशन स्कूल से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की तथा इन्टरमीडिएट में आने पर इनकी शिक्षा बीच में ही छूट गई।

आचार्य शुक्ल जी मिर्जापुर के पं० केदारनाथ पाठक एवं प्रेमधन के सम्पर्क में आकर आपने हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, बंगला आदि कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया।

आप नायब तहसीलदार की नौकरी छोड़कर मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक हो गए। धीरे-धीरे आपकी रचनाएँ आनन्द-कादम्बिनी में प्रकाशित होने लगीं।

आपकी विद्वता से प्रभावित होकर ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ ने हिन्दी शब्द सागर का सम्पादन करने के लिए बुलाया। यहीं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी अध्यापक के रूप में आपकी नियुक्ति हो गई।

सन् 1937 में बाबू श्यामसुन्दर दास के अवकाश ग्रहण करने पर आप हिन्दी विभाग के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। अनवरत हिन्दी-साहित्य की सेवा में संलग्न यह दिग्गज 2 फरवरी, सन् 1941 को स्वर्गवासी हो गए।

हिन्दी साहित्य में आचार्य शुक्ल जी का प्रवेश निबन्धकार तथा कवि के रूप में हुआ। नाटक लिखने की ओर भी आपकी रुचि रही, परन्तु इनकी प्रखर बुद्धि उनको निबन्ध-लेखन की ओर ले गई।

कृतियाँ (रचनाएँ)– शुक्ल जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनकी विविध रचनाओं का विवरण इस प्रकार है-
1. निबन्ध-संग्रह – चिन्तामणि (दो भाग), विचार वीथी ।
2. अनुवाद – आदर्श जीवन, कल्याण का आनन्द, बुद्ध चरित आदि।
3. इतिहास – हिन्दी साहित्य का इतिहास।

4. आलोचना–रस मीमांसा, त्रिवेणी, सूरदास ।
5. सम्पादन – भ्रमरगीत सार, काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका, तुलसी ग्रन्थावली, जायसी ग्रन्थावली, हिन्दी शब्द सागर, आनन्द – कादम्बिनी आदि।
6. काव्य – अभिमन्यु वध।
7. कहानी-ग्यारह वर्ष का समय।

भाषा-शैली – शुक्ल जी ने अपने साहित्य में संयत, प्रौढ़, परिष्कृत तथा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली भाषा को अपनाया। आपकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है। भाषा में कहीं-कहीं आवश्यकतानुसार उर्दू, फारसी तथा अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग देखने को मिलता है।

शुक्ल जी की भाषा-शैली गठी हुई है, उसमें व्यर्थ का एक भी शब्द नहीं आने पाता है। कम से कम शब्दों में अधिक विचार व्यक्त कर देना इनकी विशेषता है।

आपकी शैली भी भाषा की तरह पुष्ट तथा प्रौढ़ है। उनकी शैली में ‘गागर में सागर’ भरने की महान् शक्ति है। शुक्ल जी की रचनाओं में मुख्यतः भावात्मक, वर्णनात्मक, विवेचनात्मक, आलोचनात्मक, हास्य-व्यंग्यात्मक आदि शैलियों का प्रयोग मिलता है। ‘मित्रता’ नामक निबन्ध शुक्ल जी के ‘चिन्तामणि’ निबन्ध-संग्रह से संकलित है। इसमें शुक्ल ने मित्रता का अर्थ, चुनाव, महत्त्व तथा उसके उद्देश्य पर विशेष प्रकाश डाला है।

हिन्दी साहित्य में स्थान – आचार्य शुक्ल को हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में ‘आलोचना का सम्राट’ कहा जाता है। आप आलोचक तथा सहृदय कवि भी थे। आपने अपनी विशिष्ट प्रतिभा से हिन्दी-साहित्य में क्रान्ति पैदा कर दी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *