लेखक- परिचय

भगवतशरण उपाध्याय का जीवन परिचय 482 शब्दों में – Bhagwat Sharan Upadhyay ka Jivan Parichay
भगवतशरण उपाध्याय भारतीय संस्कृति और इतिहास के अनन्य उपासक और सरस्वती के अमर पुत्र हैं। उन्होंने अपनी पुरातत्व-कला से भारतीय संस्कृति और इतिहास के अनेक छिपे हुए तथ्यों को उजागर किया।
इसके साथ ही साथ उपाध्याय जी अनेक भाषाओं के ज्ञाता, समर्थ आलोचक, संस्कृत और पुरातत्व के महान विद्वान थे। वे एक सफल यात्रा वृत्तान्तकार तथा श्रेष्ठ संस्मरण व रेखाचित्रकार भी थे। हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में आपकी सौ से भी अधिक कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं।
जीवन-परिचय – भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व के आचार्य भगवतशरण उपाध्याय का जन्म बलिया जिले के उजियारपुर नामक गाँव में सन् 1910 ई० को हुआ था। प्रारम्भिक काल से ही उनकी अध्ययन के प्रति विशेष रुचि थी।
आप प्रारम्भ से एक प्रतिभाशाली छात्र के रूप में जाने जाते रहे। आपने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से ‘प्राचीन इतिहास’ में एम० ए० की उपाधि प्राप्त की।
उपाध्याय जी ने क्रमशः पुरातत्व विभाग, प्रयाग संग्रहालय, लखनऊ संग्रहालय के अध्यक्ष पद पर तथा पिलानी में बिड़ला महाविद्यालय में प्राध्यापक पद पर भी कार्य किया।
तत्पश्चात् ‘विक्रम विश्वविद्यालय’ के प्राचीन इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष पद पर कार्य करते हुए अवकाश ग्रहण किया। सन् 1982 ई० में आपका देहावसान हो गया।
कृतियाँ / रचनाएँ – उपाध्याय जी ने विविध विषयों पर तथा प्रमुख विधाओं पर सौ से भी अधिक रचनाओं का सृजन किया। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं
(i) आलोचनात्मक ग्रन्थ – ‘विश्व – साहित्य की रूपरेखा, साहित्य और कला, इतिहास के पन्नों पर, विश्व को एशिया की देन, मन्दिर और भवन, कालिदास आदि।
(ii) इतिहास- ग्रन्थ – इतिहास के पन्नों पर, खून के छींटे, इतिहास साक्षी है, प्राचीन भारत का इतिहास, साम्राज्यों के उत्थान-पतन।
(iii) पुरातत्व – भारतीय मूर्तिकला की कहानी, भारतीय चित्रकला की कहानी, कालिदास का भारत आदि। (iv) यात्रा – वृत्तान्त – सागर की लहरों पर, कलकत्ता से पीकिंग, लालचीन।
(v) संस्मरण तथा रेखाचित्र — ढूँठा आम, मैंने देखा आदि ।
(vi) अंग्रेजी रचनाएँ– ‘इण्डिया इन कालिदास’, विमेन इन ऋग्वेद, एंशियेण्ट इण्डिया आदि।
भाषा-शैली – भगवतशरण उपाध्याय अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। आपकी भाषा शुद्ध, परिष्कृत तथा परिमार्जित खड़ीबोली है। इनकी भाषा में सर्वत्र सरलता, सरसता तथा सुबोधता का भाव दृष्टिगोचर होता है।
आपकी रचनाओं में विषय के अनुसार शैलियों का प्रयोग किया गया है। आपने अपने साहित्य में वर्णनात्मक, भावात्मक, समीक्षात्मक तथा आलंकारिक शैलियों का प्रयोग किया है।
‘अजन्ता’ भगवतशरण उपाध्याय जी का पुरातत्व सम्बन्धी निबन्ध है। इसमें आपने अजन्ता की गुफाओं (औरंगाबाद) की चित्रकारी तथा शिल्प के इतिहास एवं सौन्दर्य का वर्णन ही नहीं किया वरन् दर्शक के मन पर पड़ने वाले उनके प्रभाव को भी अपनी मनोरम तथा चित्रात्मक शैली के माध्यम से साकार कर दिया है।
हिन्दी साहित्य में स्थान – डॉ० भगवतशरण उपायध्याय जी पुरातत्त्व विभाग, प्रयाग संग्रहालय, लखनऊ संग्रहालय के अध्यक्ष तथा पुरातत्त्व के ज्ञानी थे। पुरातत्त्व के क्षेत्र में आप सदा अग्रणी रहे हैं। आपने सौ से भी अधिक विभिन्न विधाओं में रचना करके हिन्दी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की। हिन्दी साहित्य को उन्नति के पथ पर अग्रसर कराने में आपका