होली अथवा रंगों का त्यौहार : होली अथवा होली : भारत का प्रमुख त्यौहार अथवा रंग पर्व- होली
रूपरेखा – 1. प्रस्तावना 2. पौराणिक महत्त्व 3. होली मनाने की विधि 4. होली से लाभ 5. होली से हानि 6. उपसंहार

होली पर निबंध – Holi par nibandh
1. प्रस्तावना – हिन्दुओं के चार प्रमुख त्यौहार में होली का पर्व भी एक प्रमुख पर्व है। वैसे भारत के त्यौहारों में प्रकृति तथा कृषि प्रमुख कारण रही है। दीपावली यदि खरीफ की फसल काटने और रबी की फसल बोने की प्रसन्नता में राम द्वारा रावण के वध के पश्चात अयोध्या के आगमन पर प्रसन्नता के परिणामस्वरूप मनायी जाती है, तो होली भी रबी की फसल पकने तथा विष्णु भक्त प्रहलाद की रक्षा तथा उसकी बुआ होलिका के दहन की प्रसन्नता में मनायी जाती है।
वैसे भी होली भारत में मनाया जाने वाला हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है। यह फाल्गुन मास की समाप्ति के बाद चैत्र मास के प्रथम दिन (प्रतिपदा) को मनाया जाता है। हँसी-ठिठोली का प्रतीक होली का त्यौहार रंगों का त्यौहार भी कहलाता है। यह रंगों औ धार्मिक त्यौहार होने के साथ-साथ मनोरंजन का उत्सव है। यह उत्सव अपने आप में उमंग तथा उल्लास लिए होता है। इसे मेल व एकता का पर्व भी कहा जाता है।
2. पौराणिक महत्त्व — होली से सम्बन्धित अनेक पौराणिक कथाओं का उल्लेख मिलता है। एक कथा के अनुसार “दैत्यराज हिरण्यकशिपु विष्णु का विरोधी था, लेकिन इसका पुत्र प्रहलाद विष्णु का परम भक्त था। गुरू द्वारा समझाने तथा पिता द्वारा मना करने पर भी उसने विष्णु नाम की रट नहीं त्यागी, परिणामस्वरूप प्रहलाद को मारने के लिए पिता की आज्ञा से अनेक यातनाएँ प्रदान की गईं किन्तु भगवत कृपा से वह जीवित रहा।
अन्ततः हिरण्यकशिपु की बहन होलिका जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन होलिका स्वयं जल गई और प्रहलाद सुरक्षित रहा। तभी यह त्यौहार प्रचलित हो गया। एक और कथा के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्टों का नाश कर गोपियों के साथ रास रचाया था। इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के कारण हर वर्ष होली का पावन पर्व मनाया जाता है। इस दिन फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा थी।
3. होली मनाने की विधि – फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पूर्व की लकड़ियाँ और टूटा-फूटा काठ-कबाड़ होली जलाने के लिए चौराहों पर एकत्र किया जाता है। इस कच्ची होली की पूजा करने के पश्चात ही उसे जलाया जाता है। होली की तीव्र लपटों में गन्ने, नारियल, जौं तथा हरे चने भूने जाते हैं। सूखे रंगों गुलाल आदि से होली की पूजा की जाती है।
दूसरे दिन प्रतिपदा पर गीले और सूखे रंगों से एक-दूसरे को रंग कर प्रसन्नता और प्रेम प्रदर्शित करते हैं। इस पर्व को मनाने में बच्चों का देखते बनता है। टेसू के फूलों से बने रंग से रंगे व्यक्तियों की शोभा अलग ही होती है।
इस दिन मित्र-शत्रु, छोटे-बड़े आदि का भेद मिट जाता है । इस अवसर पर किस ‘ द्वारा अपने खेत में उगाई गई फसलें पककर तैयार हो जाती हैं, जिसे वह देखकर झूम उठते हैं। किसान खेतों में खड़ी फसल की बालियों को भूनकर उसके दाने मित्रों व सम्बन्धियों में बाँटते हैं।
प्रत्येक क्षेत्र में अलग-अलग प्रकार से होली मनाई जाती है, जिसमें बृज क्षेत्र की बरसाने की लठमार होली, अत्यधिक प्रसिद्ध एवं आकर्षक होती है। बृज क्षेत्र की होली का आनन्द प्राप्त करने के लिए विदेशी पर्यटक भी आते हैं। स्थान-स्थान पर गुझियाँ एवं विभिन्न प्रकार के व्यंजनों से सत्कार किया जाता है तथा संगीत गोष्ठियों में होली, रसिया, भजन आदि अत्यन्त प्रेम और भक्तिपूर्वक गाए जाते हैं।
इस दिन भांग, ठण्डाई आदि का भी आयोजन होता है। द्वितीया के दिन लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं परस्पर सम्मान और प्रेम प्रकट करते हैं, बहनें अपने भाइयों को टीका करती हैं और घर के सदस्य लड़की को उपहार भेंट करते हैं।
4. होली से लाभ – होली प्रेम, उमंग और उत्साह का पर्व है। लाल रंग प्रेम का प्रतीक है। इस पर्व पर अमीर-गरीब, छोटे-बड़े अपने जाति भेद को भुलाकर तथा वर्षभर के वैमनस्य त्यागकर आपास में गले मिलते हैं तथा साथ-साथ खान-पान, आमोद-प्रमोद करते हैं। इस दृष्टि से यह पर्व भाईचारे तथा परस्पर सहयोग की भावना में वृद्धि करता है।
होली जलाने के निमित्त घर का टूटा-फूटा, काठ – कबाड़ होली पर जला दिया जाता है जिससे घर की सफाई हो जाती है। बसन्त पंचमी के बाद प्रकृति के करवट लेने पर जो वायु प्रदूषण होता है उसको भी होली की तीव्र लपटे नष्ट कर देती हैं तथा वायु प्रदूषण को शुद्ध करती है। कृषकों के लिए यह भी उत्साह और हर्ष का पर्व है क्योंकि रबी की फसल कटने को तैयार हो जाती है। टेसू के फूलों का पीला रंग रासायनिक गुणों से युक्त होता है जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हितकर होता है।
5. होली से हानि— आज होली का त्यौहार अपने वास्तविक उद्देश्य और स्वरूप से एकदम परिवर्तित हो गया है। कुछ लोग इसे मौज मस्ती और वासना का त्यौहार मानकर असंयमित और अभद्र आचरण करने लगे हैं। उसी के अतिरेक में विवेक खो बैठे हैं। जुआ, शराब के साथ-साथ व्यभिचार एवं गुण्डागर्दी को अपना अधिकार मानने लगे हैं।
1भले घर की बहूअपने घर से बाहर कदम रखने का साहस भी नहीं जुटा पाती हैं। रंगों के स्थान पर केमिकल, नालियों का कीचड़ और हानिकारक पेन्ट आदि के प्रयोग के कारण मनुष्य का स्वास्थ्य विशेष रूप से त्वचा पर कुप्रभाव डालता है। कभी-कभी होली के हुडदंग के बहाने पुरानी दुश्मनियाँ भी निकाली जाती हैं।
6. उपसंहार — होली का यह त्यौहार मानवीय अवगुणों को जलाकर सामाजिक सरसता का पल्ल्वन करता है लेकिन आज असामाजिक और अराजक तत्वों के मनमाने एवं उच्छृंखल आचरण के कारण बदनाम हो गया है। होली का यह त्यौहार इतना लोकप्रिय है कि फिल्म जगत में, नाटको में और विभिन्न साहित्यकार तथा चित्रकला की सृजनाओं में इसको मुख्य स्थान प्राप्त है।
होली प्रीति, शक्ति तथा प्रेम का त्यौहार है। होली प्रेम एवं सौहार्द के साथ-साथ बुराइयों के त्याग की भी प्रेरणा देती है, इसलिए विकृतियों को त्यागकर होली पर्व का आनन्द लेना चाहिए।