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जीवन परिचय –
सोहनलाल द्विवेदी का जन्म सन् 1906 ई० में फतेहपुर जिले के बिन्दकी नामक कस्बे में हुआ था। द्विवेदीजी का परिवार सम्पन्न था, अतः इनकी शिक्षा की व्यवस्था बचपन से ही अच्छी थी। उच्च शिक्षा के लिए यह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी गये।
हाईस्कूल तक की शिक्षा फतेहपुर में हुई। वहीं से इन्होंने एम० ए० और एल० एल० बी० की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ये मदनमोहन मालवीय के सम्पर्क में आये। इनके मन में देश-प्रेम की भावना दृढ़ हुई।
हिन्दी के सुयोग्य अध्यापक पं० बलदेवप्रसाद शुक्ल से इन्हें साहित्यिक संस्कार प्राप्त हुए। महात्मा गाँधी की विचारधारा से यह परिचित हुए। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया और जेल भी गये।
सन् 1938 से 1942 ई० तक दैनिक राष्ट्रीय पत्र ‘अधिकार’ का लखनऊ से सम्पादन करते रहे। कुछ वर्षों तक ‘बालसखा’ के अवैतनिक सम्पादक भी रहे। स्वतन्त्रता के बाद गाँधीवाद की मशाल जलाये रखने वाले इस कवियोद्धा का निधन 29 फरवरी, सन् 1988 ई० को हुआ।
• जन्म – 22 फरवरी, 1906 ई०।
● मृत्यु – 29 फरवरी, 1988 ई0।
• जन्म-स्थान– बिन्दकी (फतेहपुर), उ0प्र0 ।
• सम्पादन– ‘अधिकार’ और ‘बालसखा’ ।
• भाषा– खड़ीबोली ।
साहित्यिक सेवाएँ—
द्विवेदीजी ने किसानों की दशा, खादी का प्रचार, ग्रामोद्योग की उन्नति आदि विषयों को लेकर अपने गीतों की रचना की है। अपनी कविताओं के माध्यम से इन्होंने देश के नवयुवकों में अभूतपूर्व उत्साह एवं देश-प्रेम की भावना का संचार किया।
इसके बाद द्विवेदीजी निरन्तर साहित्य-साधना में लगे रहे। इनकी बाल-कविताएँ भी नवीन उत्साह और जागरण का मन्त्र फूंकने वाली हैं। सन् 1941 ई० में इनका प्रथम काव्य-संग्रह ‘भैरवी’ प्रकाशित हुआ। बालकों को प्रेरित करने के उद्देश्य से भी इन्होंने श्रेष्ठ साहित्य का सृजन किया।
रचनाएँ —
द्विवेदीजी की प्रमुख रचनाएँ इस तरह हैं।
1.कविता संग्रह —
‘चेतना’, ‘प्रभाती’ ‘भैरवी’, ‘पूजा गीत’,आदि। इनमें राष्ट्रीयता, समाज-सुधार एवं मानवोत्थान का आह्वान करने वाली कविताएँ संकलित हैं।
2. बाल कविता संग्रह —
‘बाँसुरी’, ‘दूध बतासा’, ‘बाल भारती’,’शिशु भारती’, ‘बिगुल’, ‘झरना’ तथा ‘बच्चों के बापू’ द्विवेदीजी के बाल कविता संग्रह हैं।
3. प्रेमगीत संग्रह –
‘वासन्ती’ द्विवेदीजी का प्रेम के गीतों का संग्रह है, इसमे प्रेम के उदात्त रूप की सरस अभिव्यक्ति हुई है।
4. आख्यान काव्य –
‘वासवदत्ता’, ‘विषपान’, ‘कुणाल’ द्विवेदीजी के प्रसिद्ध प्रबन्ध आख्यान काव्य हैं। इनमें इतिहास तथा कल्पना का अद्भुत समन्वय है।
भाषा-शैली-
द्विवेदीजी की भाषा सरल, परिष्कृत खड़ीबोली है। कहीं-कहीं पर संस्कृत शब्दों का तत्सम रूप में प्रयोग किया गया है। कुछ स्थानों पर उर्दू भाषा के प्रचलित शब्दों के प्रयोग भी देखने को मिलते हैं।
भाषा में व्यावहारिक शब्दों तथा मुहावरों का अनेक स्थलों पर प्रयोग कवि ने किया है। इन्होंने प्रबन्ध एवं मुक्तक दोनों ही शैलियों में काव्य रचना की है।