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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय- (Biography of Suryakant Tripathi Nirala in hindi)

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय

जीवन परिचय –

निरालाजी का जन्म सन् 1896 ई० में बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनके पिता रामसहाय त्रिपाठी उन्नाव जिले के गढ़कोला गाँव के रहने वाले थे और मेदिनीपुर में नौकरी करते थे। ही इनको कुश्ती, इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की।

बचपन से ही इनको घुड़सवारी और खेलों में बहुत अधिक रुचि थी। वहीं पर निराला की शिक्षा बँगला के माध्यम से आरम्भ हुई। बचपन में ही इनका विवाह ‘मनोहरा देवी’ से हो गया था। बालक सूर्यकान्त के सिर से माता-पिता की छाया अल्पायु में ही उठ गयी।

‘रामचरितमानस’ से इन्हें विशेष प्रेम था। इन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी का भी अध्ययन किया था। निराला जी को बंगला भाषा और हिन्दी साहित्य का अच्छा ज्ञान था। पत्नी के वियोग के समय में ही आपका परिचय पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी से हुआ।

इनकी पत्नी एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गयीं। निराला जी को बार-बार आर्थिक कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा। आर्थिक कठिनाइयों के बीच ही इनकी पुत्री सरोज का देहान्त हो गया। ये स्वामी रामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्द जी से बहुत प्रभावित थे। इनकी मृत्यु सन् 1961 ई० में हुई।

• जन्म- 21 फरवरी, 1896 ई0।

• मृत्यु- 15 अक्टूबर, 1961 ई0 ।

• पिता– पं० रामसहाय त्रिपाठी ।

• जन्म-स्थान – मेदिनीपुर (बंगाल) ।

• भाषा– खड़ीबोली।

• छायावादी रचनाकार ।

साहित्यिक सेवाएँ –

महाकवि निराला का उदय छायावादी कवि के रूप में हुआ। इन्होंने अपने साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ ‘जन्मभूमि की वन्दना’ नामक एक कविता की रचना करके किया। ‘जुही की कली’ नामक कविता की रचना करके इन्होंने हिन्दी जगत् में अपनी पहचान बना ली।

इन्होंने ‘सरस्वती’ और ‘मर्यादा’ पत्रिकाओं का निरन्तर अध्ययन करके हिन्दी का ज्ञान प्राप्त किया। छायावादी लेखक के रूप में प्रसाद, पन्त और महादेवी वर्मा के समकक्ष ही इनकी गणना की जाती है। ये छायावाद के चार स्तम्भों में से एक माने जाते हैं।

रचनाएँ –

निराला जी की प्रमुख रचनाएँ ?—

काव्य संग्रह –

अनामिका (1923), गीतिका (1936),परिमल (1930), अनामिका (द्वितीय) (1939) (इसी संग्रह में ‘सरोज स्मृति’ और ‘राम की शक्तिपूजा’ जैसी प्रसिद्ध कविताओं का संकलन है), तुलसीदास (1939), अणिमा (1943),आराधना (1953), बेला (1946), कुकुरमुत्ता (1942), नए पत्ते (1946), अर्चना (1950), गीत कुंज (1954), सांध्य काकली, अपरा (संचयन)।

उपन्यास –

प्रभावती (1936),अप्सरा (1931), अलका (1933), निरूपमा (1936),चोटी की पकड़ (1946), कुल्ली भाट (1938-39), बिल्लेसुर बकरिहा (1942), काले कारनामे (1950) (अपूर्ण), चमेली (अपूर्ण), इन्दुलेखा (अपूर्ण)। कहानी संग्रह-लिलि (1934), सुकुल की बीवी (1941), चतुरी चमार (1945),सखी (1935),

[‘सखी’ संग्रह की कहानियों का ही इस नए नाम से पुनर्प्रकाशन ]पपई (1934), प्रबंध प्रतिमा (1940), चाबुक (1942) निबन्ध-आलोचना-रवीन्द्र कविता कानन प्रबंध प्रतिमा (1940), (1929),चयन (1957), प्रबंध पद्म (1934), चाबुक (1942), संग्रह (1963)।

पुराण कथा-

रामायण की अन्तर्कथाएँ (1956), महाभारत (1939)।

बालोपयोगी साहित्य –

भक्त प्रहलाद (1926), भक्त ध्रुव (1926), भीष्म (1926), महाराणा प्रताप (1927), सीखभरी कहानियाँ (ईसप की नीति कथाएं) (1969)।

अनुवाद –

रामचरितमानस (विनय भाग) (1948),विषवृक्ष, आनंदमठ, कृष्णकांत का वसीयतनामा,राजरानी, देवी चौधरानी, कपालकुंडला, दुर्गेश नन्दिनी, राजसिंह, भारत में विवेकानंद, युगलांगुलीय, चन्द्रशेखर, रजनी, श्री रामकृष्णवचनामृत, परिव्राजक, राजयोग (अंशानुवाद) ।

भाषा-शैली –

निराला जी ने अपनी रचनाओं में शुद्ध एवं परिमार्जित खड़ीबोली का प्रयोग किया है। इनकी छायावादी रचनाओं में जहाँ भाषा की क्लिष्टता मिलती है, वहीं इसके विपरीत प्रगतिवादी रचनाओं की भाषा अत्यन्त सरल, सरस एवं व्यावहारिक है।

भाषा में अनेक स्थलों पर शुद्ध तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है, जिसके कारण इनके भावों को सरलता से समझने में कठिनाई होती है। छायावाद पर आधारित इनकी रचनाओं में कठिन एवं दुरूह शैली तथा प्रगतिवादी रचनाओं में सरल एवं सुबोध शैली का प्रयोग हुआ है।

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