ग्राम्य-जीवन अथवा मेरा गाँव अथवा ग्राम्य जीवन का आनन्द अथवा ग्रामीण समस्याएँ और उसका समाधान
रूपरेखा— 1. प्रस्तावना 2. ग्रामों की वर्तमान स्थिति 3. सुधार के उपाय 4. सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक सुधार 5. उपसंहार।

मेरा गाँव पर निबंध 1000 शब्दों में – My Village | Mera Gaon Essay in Hindi
1. प्रस्तावना – हमारा देश गाँवों का देश है। यहाँ की लगभग 75% जनसंख्या गाँवों में ही निवास करती है। गाँधी जी ने भी कहा है—‘भारत गाँवों में बसता है।” वस्तुतः यह पूर्ण सत्य है। ग्राम भारतीय सभ्यता के प्रतीक हैं तथा भोजन तथा नित्यप्रति की आवश्यकताएँ ग्राम ही पूरी करते हैं।
कारखानों के लिए कच्चा माल गाँवों से ही प्राप्त होता है। देश की सम्पदा इन्हीं गाँवों में निवास करती है। ग्राम यदि सुखी तथा समृद्ध होंगे तो देश भी समृद्ध होगा। हमारे देश की आर्थिक प्रगति के लिए ग्रामों की उन्नति होना अति आवश्यक है।
2. ग्रामों की वर्तमान स्थिति — ग्राम्य जीवन की दशा-
“अहा! ग्राम्य- जीवन भी क्या है, क्यों न इसे सबका मन चाहे ।”
उपर्युक्त कविता की पंक्तियों में ग्राम्य जीवन की सुन्दरता का चित्रांकन किया गया है। प्राकृतिक दृश्यों की सुषमा, स्वास्थ्यप्रद वातावरण, सात्विक प्रेम, त्यागमय जीवन और निष्कपट व्यवहार की दृष्टि से ग्राम्य-जीवन एवं आदर्श जीवन है। पर क्या कारण है कि हमारे मन में ग्राम्य-जीवन को अंगीकार करने की ललक नहीं उठती।
आज भी गाँवों और उसमें रहने वाले किसानों की दशा पूर्ण रूप से ठीक नहीं है। सामाजिक कुरीतियों, कलह, शोषण तथा अत्याचारों ने आज उन्हें खोखला बना दिया है। यही कारण है कि “पन्तजी” को आधुनिक ग्राम्य, मानव लोक से भी नहीं लगते-
‘यह तो मानव लोक नहीं रे, यह है नरक अपरिचित
यह भारत की ग्राम सभ्यता संस्कृति से निर्वासित ॥
x x x
अकथनीय क्षुद्रता विवशता भरी यहाँ के जन में।
गृह-गृह में कलह, खेत में कलह कलह है मन में ॥
यद्यपि यहाँ प्रकृति का कण-कण आनन्दमग्न रहता है, किन्तु यहाँ के निवासी तो जीते हुए भी मृतक के समान हैं। गाँवों में सड़कों पर रोशनी का प्रबन्ध नहीं होता। वहीं पर कुएँ तथा गन्दे तालाब पानी के स्रोत होते हैं। सर्वत्र दरिद्रता दृष्टिगोचर होती है किसानों के पास न पर्याप्त अन्न होता है न कपड़ा। इस प्रकार वर्तमान ग्रामों का जीवन अत्याधिक विषम तथा दयनीय है।
3. सुधार के उपाय – ग्राम्य और वहाँ के निवासी किसानों की दुर्व्यवस्था का निराकरण कैसे किया जाए? गाँव की आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक उन्नति कैसे की जाए? इस प्रकार से अन्य प्रश्नों के उत्तर में ग्रामोन्नति का इतिहास छिपा हुआ है।
ग्रामों की दीन दशा देखकर पूज्य बापू जी को भी दुःख हुआ था। उन्होंने इनकी दशा सुधारने के लिए सर्वोदय-संघ की स्थापना की थी। इस योजना में धन के विकेन्द्रीयकरण पर बहुत बल दिया है। इसमें माना गया है कि धन का वितरण ग्रामों तथा नगरों में समान रूप से होना चाहिए। ग्रामों में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहिए।
ग्राम पंचायत की अखिल व्यवस्था की अधिकारणी होनी चाहिए। उस ग्राम पंचायत के पंच परमेश्वर अपने ग्राम की शिक्षा, निवास, औषधि-वितरण, मनोरंजन आदि पर ही अपने अंकुश रखें अर्थात् किसान अपने ग्राम की सम्पदा से ही अपने ग्राम का सुधार करें।
4. सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक सुधार–हमें सर्वोदय के सिद्धान्तों पर चलकर ग्रामों में सुधार कर उनकी उन्नति करनी चाहिए। कुछ सुझाव निम्न प्रकार के सुधारों के लिए है –
सांस्कृतिक सुधार ( शिक्षा प्रचार ) – आज भी ग्रामों में अशिक्षा का बोलबाला है। इसके कारण ग्रामीणों को बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। किसी कवि ने ग्रामीण स्थिति को ध्यान में रखकर कहा है-
“जगती यहीं ज्ञान की ज्योती, शिक्षा की यदि कमी न होती।
तोये ग्राम स्वर्ग बन जाते, पूर्ण शान्ति रस में परा जाते॥”
सरकार को पाठशालाओं तथा प्रौढ़ पाठशालाओं की स्थापना करके निःशुल्क शिक्षा का प्रबन्ध करना चाहिए, जिससे ग्रामीण जन शिक्षा का लाभ उठा सकें। इससे ग्रामों में सुख और शान्ति की वर्षा होने लगेगी।
सामाजिक सुधार-ग्रामों में बाल विवाह, वृद्ध विवाह, छुआ-छूत, मद्य का सेवन, जुआ, पारस्परिक कलह आदि अनेक कुरीतियाँ फैली हुई हैं। इन कुरीतियों और बुरी आदतों ने ग्राम्य-जीवन को क्षत-विछत कर दिया है। अनेक प्रकार के संगठनों द्वारा इन्हें दूर करना चाहिए।
आर्थिक सुधार- किसान वस्त्र, नमक, मिर्च और और सुई धागा, जैसे दैनिक जीवन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए अपने अन्न, दूध, घी को बेचने के लिए शहरों पर आश्रित रहता है। हमने देखा है कि किसान की सच्चाई और भोलेपन से अनुचित लाभ उठाकर जमीदारों और साहूकारों ने किसान की कमाई का अन्न और कपास छीनकर शहरों में पहुँचाया है।
शहर के व्यापारी वर्ग ने कृषकों का पूर्णरूपेण शोषण किया। अतः आज ग्रामों की उन्नति के लिए सहकारी संघों की स्थापना करनी होगी। जहाँ किसान अपनी ऊपज को बेंचेगा और आवश्यकता की चीजों को खरीदेगा। आवश्यकता पड़ने पर ऋण प्राप्त करेगा और इस सम्पूर्ण कार्य में जो कुछ भी लाभ होगा, उस पर उसका अधिकार होगा, उस पर उसका अधिकार होगा।
इसके अतिरिक्त गाँवों में ग्रामीण बैंकों की स्थापना पर्याप्त संख्या में होनी चाहिए, जिससे किसानों को साहूकार व महाजनों से ऋण नहीं लेना पड़े और बैंकों से ही ऋण व सहायता मिले। इस प्रकार उसकी आर्थिक दशा सुधरेगी और वह आनन्द का उपभोग करेगा।
5. उपसंहार-सरकार ग्रमीण विकास की ओर ध्यान दे रही है। यदि भारतीय किसान को उक्त सुविधाएँ प्राप्त हो जायेंगी, तो वह निश्चय ही ग्राम की वसुन्धरा को सुजला-सुफला शस्य श्यामला बनाकर छोड़ेगा। यह हर्ष का विषय है कि हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में ग्रामों का पूर्ण ध्यान रखा गया है।
सरकार द्वारा अनेक ग्रामों में अब सड़कों और विद्युत की व्यवस्था की जा चुकी है। ग्रामों में भी शिक्षा का तीव्रता से प्रचार हो रहा है। कृषकों को बीज और खाद तथा ऋण के रूप में रुपए और अनुदान प्रदान किए जाते हैं।
विश्वास है, सरकार गाँव की उन्नति के लिए पूर्ण प्रयत्न करेगी और तब निश्चय ही ये गाँव संस्कृति के प्रतीक बनकर भारत को सम्पन्न करेंगे। वह वहाँ विश्वामित्र की नई दुनियाँ बसा देगा | ग्राम स्वर्ग बन जायेंगे। देव उन ग्रामों में निवास को तरसेंगे और स्वाभिमान के साथ कहेंगे-
“अहा! ग्राम-जीवन भी क्या है, क्यों