बाढ़ का आँखों देखा हाल अथवा बाढ़ का दृश्य अथवा जल प्रलय अथवा मैंने जल प्रलय देखी अथवा बाढ़-प्रकृति का अभिशाप
रूपरेखा – 1. प्रस्तावना 2. बाढ़ का कारण 3. भारत में बाढ़ का इतिहास व विनाशलीला 4. बाढ़ का रोमांचक दृश्य 5. बाढ़ के नियन्त्रण के उपाय 6. उपसंहार।

बाढ़ पर निबंध – Flood Essay in Hindi
1. प्रस्तावना – मानव सृष्टि पाँच तत्वों से बनी है, इनमें जल का महत्व किसी से कम नहीं है। यही जल पृथ्वी के तीन गुना भाग में फैला हुआ है। सूर्य का ताप इस जल को वाष्प के रूप में परिवर्तित करता है जो बादल का रूप धारण कर पर्वतों पर बर्फ की तरह तथा मैदानी क्षेत्रों में वर्षा की तरह आ जाता है।
पर्वतीय क्षेत्रों की बर्फ पिघलकर नदियों के रूप में समुद्र तक की यात्रा करती है। इस प्रकार समुद्र का जल फिर समुद्र में जाकर मिल जाता है। विभिन्न नदियों की यह यात्रा तीव्र होती है, किन्तु सन्तुलित होती है। जहाँ उसका संतुलन बिगड़ा पानी इधर-उधर फैलने लगता है जिसे बाढ़ कहा जाता है।
इस बाढ़ को दैवी प्रकोप माना जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि पर्वतों पर देवी और देवता का वास है। उनका क्रोध बाढ़ के रूप में माना जाता है। बाढ़ में खेत, फसलें, जानवर तथा मनुष्य जलमग्न होने लगते हैं, बहने लगते हैं, मरने लगते हैं, चारों ओर जल ही जल दिखाई देता है, प्रलय की सी स्थिति पैदा हो जाती है, उसे बाढ़ कहते हैं।
2. बाढ़ का कारण – आज बाढ़ आने के अन्य कारण भी हैं। मनुष्य की तीव्र इच्छा है कि वह प्रकृति पर नियन्त्रण करे। जल को अपने अधिकार में करने के उद्देश्य से नदियों पर बाँध बनाए गए हैं। पर्वतीय चट्टानों को काटकर मार्ग बनाए तथा सेतु बनाकर नदियों के पार आने के साधन उपलब्ध कराए। इस प्रकार प्रकृति के कार्य में हस्तक्षेप करके मान लिया कि उसने नदियों को वश में कर लिया है।
किन्तु नदियाँ अपनी सत्ता तथा शक्ति का लोहा मनवाने के लिए अकस्मात बाढ़ के रूप में सामने आती हैं। उस समय उनका विकराल रूप भय उत्पन्न करता है तथा क्षणभर में मानव को धराशायी कर देता है। नदियों में जल भरने का कारण अधिक वर्षा भी है। कभी-कभी किसी विशेष संयंत्र या स्थान को डूबने से बचाने के लिए अधिक जल नदियों में छोड़ा जाता है इसके कारण भी बाढ़ आती है।
3. भारत में बाढ़ का इतिहास व विनाशलीला – इतिहास साक्षी है कि भारत में बाढ़ की विनाशलीला बराबर होती रही है। कुछ क्षेत्रों में प्रतिवर्ष प्रकृति के इस अभिशाप या प्रकोप को सहना पड़ता है। कभी-कभी तो आषाढ़ की वर्षा के साथ ही बाढ़ आने का सिलसिला प्रारम्भ हो जाता है।
कभी एक सप्ताह तक लगातार इतनी वर्षा होती है कि महानगरों की सड़कों पर पानी इकट्ठा हो जाता है और निकट के निचले क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है। सन् 1968, 71, 73, 77 की बाढ़ों को लोग भूले नहीं हैं। इधर कुछ वर्षों से महाराष्ट्र और गुजरात में प्रकृति का प्रकोप सहन करना पड़ रहा है। पिछले दिनों राजस्थान के कुछ क्षेत्रों की नदियों में भी बाढ़ आ गई थी।
इन सबमें लाखों व्यक्ति बाढ़ के ग्रास बन गए थे तथा गाँव के गाँव बह गए। जानवरों के बहने तथा फसलों के नष्ट हो जाने से बेरोजगारी बढ़ गई। कई लाख मकान टूट गए, लोग बेघर हो गए तथा अरबों रुपये की हानि हुई। बाढ़ की भयंकरता का अनुमान कोई भुक्तभोगी ही लगा सकता है।”
4. बाढ़ का रोमांचक दृश्य – एक बार ऐसा हुआ अचानक दोपहर के समय बादल घिरने लगे, चारों ओर काला धुआँ-सा उठने लगा। नम हवाएँ चलने लगीं। भयंकर वर्षा होने लगी। भयंकर वर्षा पाँच घण्टे तक होती रही। इसके बाद देखने पर सड़कों पर तीन फिट तक पानी भरा हुआ था। सड़कों पर वाहन फँसे हुए थे।
कई शहरों की नदियों का जल स्तर खतरे के निशान के ऊपर पहुँच गया था। दूसरे दिन अखबारों ने भयंकर बाढ़ का समाचार छपा। प्रशासन ने एक सप्ताह तक सभी विद्यालय बन्द करवा दिए। चारों ओर दूर-दूर तक अनन्त जलराशि लहरा रही थी। उमड़ती हुई यमुना के कारण नाले उलटे बहने लगे। गाँव के गाँव बह गए।
साक्षात प्रलयकालीन दृश्य-सा उपस्थित था, अनेक व्यक्ति घर-द्वार हीन हो गये। सड़क-खेत का अनुमान लगाना कठिन था। कहीं-कहीं पर वृक्ष दिखाई दे रहे थे। सामने टीले पर लोग एकत्रित थे। चारों ओर जल ही जल था। कुछ लोग कह रहे थे कई गाँव बह गए हैं। कुछ लोग ही शेष बचे थे तथी एक नाव और कुछ मल्लाह आए जिनके साथ हमारे शिक्षक और हम दस छात्र सामग्री लेकर बढ़े।
नदी में एक छप्पर एक आदमी बैठा हुआ जा रहा था। जन समूह एवं नाव को देखकर ‘बचाओ-बचाओ’ चिल्लाने लगा। एक मल्लाह ने अपनी जान हथेली पर रखकर नदी में छलांग लगाई और तेजी से तैरता हुआ छप्पर के निकट पहुँच गया। उस बहते हुए आदमी की कमर पकड़कर वह किनारे पर ले आया और उसकी जान बचाई।
इतनी देर में सेना का हैलीकॉप्टर आया, उसने भी टीले पर बैठे लोगों को खाद्य सामग्री के पैकिट गिराए, भूखे एवं परेशान व्यक्ति गिरती सामग्री पर टूट पड़े, भूख क्या नहीं कराती, सेना की अन्य नावें जाल लेकर शव निकालती हुई उस टीले की ओर आ गईं। मुझे बाढ़ के दृश्य को देखकर यह अनुभव हुआ कि मनुष्य व्यर्थ में अहंकार करता है, लड़ता है, कितना नश्वर है यह संसार, कितना क्षणिक है।
5. बाढ़ के नियन्त्रण के उपाय – बाढ़ प्राकृतिक प्रकोप है। इससे बचाव के उपाय निरंतर किए जा रहे हैं। बाढ़ के बाद की समस्याएँ भी कम नहीं होती। बचे हुए लोगों के पुर्नवास की समस्या तथा महामारी फैलने का भय सभी को चिंतित कर देता है। सरकार, स्वयंसेवी संस्थाएँ, विद्यार्थी वर्ग तथा आम नागरिक सभी अपनी सामर्थ्य के अनुसार योगदान देते हैं।
राष्ट्र विदेशों से भी सहायता उपलब्ध कराता है। जब किसी देश के किसी क्षेत्र में बाढ़ का प्रकोप हुआ, धनवानों ने इसकी सहायतार्थ धनराशि दी। बाढ़ की स्थिति से मुक्ति पाने में तथा अधिक से अधिक व्यक्तियों को बचाने में सेना ने भी संभव सहयोग दिया। ऐसे समय में राष्ट्र की एकता अद्भुत होती है। किसी प्रकार का भेद-भाव नागरिकों में नहीं दिखाई देता ।
सबका लक्ष्य प्राणियों को जीवन देना होता है। लगातार चार दिन तक हमने वहाँ सेवा की, भूखों को भोजन, बिस्कुट एवं चने गुड़ बाँटना, बीमारों को प्राथमिक उपचार हेतु दवाइयाँ, वस्त्र देना एवं बच्चों को खिलौने आदि बाँटना यही हमारी दिनचर्या थी, धीरे-धीरे स्थिति सुधर रही थी । हम सेवा कार्य करके घर लौटे, हम सभी अपने-अपने घरों को तो पूर्ण रूपेण भूल चुके थे।
6. उपसंहार – बाढ़ की विनाशलीला राष्ट्र की सभी योजनाओं को पीछे छोड़ने पर विवश करती है। नदियाँ सहज रूप में बहें, इसके लिए जंगलों के संरक्षण की आवश्यकता है। सरकारी तंत्र को बाढ़ नियन्त्रण की योजनाओं को पूरी ईमानदारी से लागू करना चाहिए।
इसके लिए उच्चस्तरीय समिति का गठन करना होगा, जो ऐसे उपाय व सुझाव बतलाएँ जिससे बाढ़ पर नियन्त्रण किया जा सके। प्रत्येक नागरिक को, वैज्ञानिक को अपने मन से प्रकृति को अधिकार में करने के स्वप्न को भुलाना होगा। प्राकृतिक आपदाओं का साहस से मुकाबला करने के लिए प्रयत्नशील होना होगा।
क्योंकि बाढ़ का प्रलयकालीन दृश्य आज भी मेरे मानस पटल पर छाया हुआ है। बाढ़ का नाम सुनते ही हृदय हिल जाता है। बाढ़ अतिवृष्टि की एक विनाशकारी लीला है। भगवान बचाए बाढ़ से। हाँ, एक बात अवश्य है बाढ़ के आपातकाल में जीव अपने स्वाभाविक बैर-विद्वेष को छोड़ देता है। काश, हम अपने जीवन में बैर-विद्वेष को मिटा दें।