प्रदूषण
रूपरेखा – 1. प्रस्तावना 2.प्रदूषण का अर्थ 3.प्रदूषण के प्रकार 4.प्रदूषण की समस्या तथा इससे हानियां 5.समस्या का समाधान 6.उपसंहार

प्रदूषण पर निबंध 1000 शब्दों में – Essay on pollution in hindi
1.प्रस्तावना – आज का मानव औद्योगिकरण के जंजाल मे फंसकर स्वयं भी मशीन का एक ऐसा निर्जीव पूजा बनकर रह गया है कि वह अपने पर्यावरण की शुद्धता का ध्यान भी नहीं रख सका। अब एक और नई समस्या उत्पन्न हो गयी है-वह प्रदूषण की समस्या। इस समस्या को ओर आजकल सभी देशों का ध्यान केंद्रित है।
इस समय हमारे समस्त सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरण को बचाने की है क्योंकि पानी, हवा, जंगल, मिट्टी आदि सब कुछ प्रदूषित हो चुका है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण का महत्व बताया जाना चाहिए, क्योंकि यही हमारे अस्तित्व का आधार है। यदि हमने इस असंतुलन को दूर नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियां अभिशप्त जीवन होने को बाध्य होगी और पता नहीं, तब मानव जीवन होगा भी या नहीं।
2.प्रदूषण का अर्थ – संतुलित वातावरण में ही जीवन का विकास संभव है। पर्यावरण का नियम प्रकृति के द्वारा किया गया है। प्रकृति द्वारा प्रदत पर्यावरण जीवधारियों के अनुकूल होता है। जब वातावरण में कुछ हानिकारक घटक आ जाते हैं तो वे वातावरण का संतुलित बिगाड़ कर उसको दूषित कर देते हैं।
यह गंदा वातावरण जीवन धारियों के लिए अनेक प्रकार से हानिकारक होता है। इस प्रकार वातावरण में दूषित हो जाने को ही प्रदूषण कहते हैं। जनसंख्या की असाधारण वृद्धि और औद्योगिक प्रगति ने प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है और आज उसने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि इससे मानवता के निवास का संकट उत्पन्न हो गया है।
3.प्रदूषण के प्रकार – (क) वायु प्रदूषण-वायु जीवन का अनिवार्य स्रोत है। प्रत्येक प्राणी को स्वयं रूप से जीने के लिए शुद्ध वायु अर्थात ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, जिस कारण वायुमंडल में इसकी विशेष अनुपात में उपस्थित आवश्यक है।
जीवधारी सास द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करता है और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है। पेड़ पौधे कार्बन हाई ऑक्साइड ग्रहण कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इससे वायुमंडल में शुद्धता बनी रहती है आजकल वायुमंडल में ऑक्सीजन गैस का संतुलन बिगड़ गया है और वायु अनेक हानिकारक गैसों से प्रदूषित हो गयी है।
(ख) जल प्रदूषण-जल को जीवन कहा जाता है और यह भी माना जाता है कि जेल में ही सभी देवता निवास करते हैं। इसके बिना जीवन जंतु और पेड़ पौधों का भी अस्तित्व नहीं है।
फिर भी बड़े बड़े नगरों के गंदे नाले और सीवर नदियों में मिला दिए जाते हैं। कारखानों का सारा मेला वह कर नदियों के जल में आकर मिलता है। इससे जल प्रदूषित हो गया है और इससे भयानक बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। जिससे लोगों का जीवन भी खतरे में पड़ गया है।
(ग) ध्वनि प्रदूषण-ध्वनि प्रदूषण भी आज की नई समस्या है। इसे वैज्ञानिक प्रगति ने पैदा किया है। मोटर, कार, ट्रैक्टर, जेट विमान, कारखानों के सायरन, मशीनों तथा लाउडस्पीकर धोनी के संतुलन को बिगाड़ कर ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से मानसिक विकृति, तीव्र क्रोध, अनिद्रा एवं चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं।
(घ) रेडियोधर्मी प्रदूषण-आज के युग में वैज्ञानिक परीक्षणों का जोर है। परमाणु परीक्षण निरंतर होते ही रहते हैं। इसके विस्तार से रेडियोधर्मी पदार्थ संपूर्ण वायुमंडल में फैल जाते हैं और अनेक प्रकार के जीवन को क्षति पहुंचाते हैं।
(ड) रसायनिक प्रदूषण-कारखानों में बहते हुए अपशिष्ट द्रव्यों के अलावा रोग नाशक तथा कीटनाशक दवाइयों से और रसायनिक खादों से भी स्वस्थ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये पदार्थ पानी के साथ बेहतर जीवन को अनेक प्रकार से हानि पहुंचाते हैं।
4.प्रदूषण की समस्या तथा इससे हानियां – बढ़ती हुई जनसंख्या और औद्योगिकरण के विश्व के सम्मुख प्रदूषण की समस्या पैदा कर दी है। कारखानों के धुए से विषैले कचरे के बहाव से तथा जहरीली गैसों से रिसाव से आज मानव जीवन समस्याग्रस्त हो गया है। इस प्रदूषण से मनुष्य जानलेवा बीमारियों का शिकार हो रहा है।
कोई अपाहिज होता है तो कोई बहरा, किसी की दृष्टि शक्ति नष्ट हो जाती है तो किसी का जीवन। विविध प्रकार की शारीरिक विकृतियां, मानसिक कमजोरी असहाय व कैंसर इन सभी रोगों का मूल कारण विषैला वातावरण ही है।
5.समस्या का समाधान – वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए वृक्षारोपण सर्वश्रेष्ठ साधन है। दूसरी और वृक्षों के अधिक कटान पर भी रोक लगाई जानी चाहिए। कारखाने और मशीनें लगने की अनुमति उन्हीं लोगों को दी जानी चाहिए जो अभी कचरा और मशीनों के धुए को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था कर सकें।
संयुक्त राष्ट्र संघ को चाहिए कि वह परमाणु परीक्षणों को नियंत्रित करें की दिशा में उचित कदम उठाएं। तेज ध्वनि वाले वाहनों पर साइलेंसर आवश्यक रूप से लगाए जाने चाहिए तथा सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकरो आदि के प्रयोग को नियंत्रित किया जाना चाहिए।
जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए औद्योगिकरण संसाधनों मैं ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि व्यर्थ पदार्थों एवं जनों को उपचारित करके ही बाहर निकाला जाए तथा इनको जल स्त्रोतो मैं मिलने से रोका जाना चाहिए।
6.उपसंहार – प्रसन्नता की बात है कि भारत सरकार प्रदूषण की समस्या से प्रति जागरुक है। इसने 1974 ईस्वी में जल प्रदूषण निवारण अधिनियम लागू किया था। इसके अंतर्गत एक केंद्रीय बोर्ड तथा प्रदेशों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गठित किए गए हैं।
इसी प्रकाश ने उद्योगों को लाइसेंस देने और वनों की कटाई रोकने की दिशा में कठोर नियम बनाए गए हैं। इस बात से भी प्रयास किए जा रहे हैं कि नए वन क्षेत्र बनाए जाएं और जन सामान्य को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाए। न्यायालय द्वारा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को महान घरों से बाहर ले जाने के आदेश दिए गए हैं।
यदि जनता भी अपने ढंग से इन कार्यक्रमों से सक्रिय सहयोग दें और यह संकल्प ले कि जीवन में आने वाले प्रत्येक शुभ अवसर पर कम से कम एक वृक्ष अवश्य लगाएगी तो निश्चित ही हम प्रदूषण के दुष्परिणामों से बच सकेंगे और आने वाली पीढ़ी को भी इसकी काली छाया से बचाने में समर्थ हो सकेंगे।