पुस्तकालय की उपयोगिता अथवा पुस्तकालय ज्ञान का भण्डार अथवा पुस्तकालय अथवा पुस्तकालय का महत्त्व अथवा ज्ञान के भण्डार पुस्तकालय अथवा व्यक्तित्व के विकास में पुस्तकालय की भूमिका
रूपरेखा—1. प्रस्तावना 2. पुस्तकालय का महत्त्व 3. पुस्तकालय के विभिन्न प्रकार 5. पुस्तकालय के लाभ 5. उपसंहार।

पुस्तकालय पर निबंध 850 शब्दों में – Pustakalaya par nibandh
1. प्रस्तावना – पुस्तकालय दो शब्दों से मिलकर बना है— पुस्तक + आलय। जिसका अर्थ होता है पुस्तकों के संग्रह का स्थल। पुस्तकालय वह स्थान है जहाँ पुस्तकों को रखा जाता है। पुस्तकें ज्ञान का भण्डार होती हैं। इन्हें विषय विशेष की जानकारी देने वाला संकलन भी कहा गया है अर्थात् पुस्तकालय अर्थात् वह भवन जहाँ अध्ययन हेतु पुस्तकों का संग्रह किया गया हो।
पुस्तकों के रूप में ज्ञान का भण्डार संरक्षित करने के कारण इन्हें ‘ज्ञान का भण्डार गृह’ भी कहा जाता है। किसी भी व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं है कि वह सारी पुस्तकों की खरीदकर पढ़ सके। प्रायः बहुत सी प्राचीन पुस्तकें दुलर्भ होती हैं, इसीलिए पुस्तकालयों की आवश्यकता महसूस हुई और इनका विकास किया गया। इनके अभाव में ज्ञान का प्रचार-प्रसार तथा पुस्तकों का संरक्षण अत्यन्त कठिन हो जाता है।
2. पुस्तकालय का महत्त्व – जब तक लिपि और लेखन सामग्री का विकास नहीं हुआ था, तब तक स्मरण शक्ति एवं वाक्-शक्ति द्वारा ज्ञान पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक-दूसरे तक पहुँचता रहा, फिर संस्कृति और सभ्यता के विकास के साथ सभी साधन जुड़ते गए और आज तक कैसेट, कम्प्यूटर आदि अनेक आधुनिक आविष्कार जानकारी और इनके संग्रह के साधन उपलब्ध हैं इसके बाद भी पुस्तकालयों और वाचनालयों का अपना अलग ही महत्त्व है।
सम्पन्न पुस्तकालय में लगभग सभी विषयों की महत्त्वपूर्ण पुस्तकें, पत्रिकाएँ संग्रहीत होती रहती हैं और पढ़ने के लिए वितरित होती हैं। कुछ सन्दर्भ ग्रन्थ वहीं पढ़े जा सकते हैं। पुस्तकों की सुरक्षा, स्थान, निर्धारण, पुस्तकों की सूची लेखक अथवा शीर्षक के अनुसार रजिस्ट्ररों में लिखी जाती है जिसे अंग्रेजों में कैटेलोगिंग कहते हैं, जिसको विशेषतः पुस्तकालयाध्यक्ष करते रहते हैं।
पुस्तकों और पुस्तकालयों के महत्त्व को समझकर B. Lib., M. Lib. Sc. की टेक्नीकल उपाधियों के लिए विशेष ज्ञान प्रदान किया जाता है। यह पूर्णतः वैज्ञानिक विषय हो चुका है।
3. पुस्तकालयों के विभिन्न प्रकार – पुस्तकालय अनेक प्रकार के होते है – निजी पुस्तकालय, शिक्षण संस्थाओ के पुस्तकालय, सार्वजनिक पुस्तकालय तथा राष्ट्रीय पुस्तकालय, जिनमें रुचि तथा आवश्यकतानुसार विभिन्न विषयों की पुस्तकें पढ़ने को प्राप्त हो सकती हैं अधिकृत व्यक्तियों को राष्ट्रीय पुस्तकालय का स्तर ऊँचा होता है। ये प्रायः दर्शनीय होते हैं।
शुल्क देकर इनकी सदस्यता भी प्राप्त हो जाती है। इनमें अध्ययन कक्ष होते हैं तथा सभी प्रकार की सूचनाओं से सम्बन्धित पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ, गजेटियर आदि यहाँ उपलब्ध होते हैं। कुछ पुस्तकालयों में विविध विषयों की पुस्तकें, हस्तलिखित शोध-पत्र आदि होते हैं। शोध छात्रों को तो सभी प्रकार के पुस्तकालयों की आवश्यकता पड़ती है।
4. पुस्तकालय से लाभ–“भिन्न रुचिर्हि लोकः”। अर्थात् संसार के मनुष्यों की रुचि अपनी-अपनी होती है। कोई ज्योतिष, विज्ञान, धर्मशास्त्र, अभियान्त्रिकी, चिकित्सा-सम्बन्धी विषयों में रुचि रखता है तो कोई साहित्य, ललित-कलाओं, इतिहास-भूगोल, आदि के प्रेमी होते हैं। कोई भी व्यक्ति, प्रतिदिन करोड़ों पुस्तकें छपती हैं उन्हें क्रय करके नहीं पढ़ सकता है।
अत: ये पुस्तकालय उन लोगों की जिज्ञासाओं को शान्त करते हैं। पुस्तकालय में मनोरंजन, खेलकूद, आदि की अनेक पुस्तके पायी जाती हैं जिनसे स्वस्थ, ज्ञानवर्धक, मनोरंजन प्राप्त होता है। दुर्लभ पुस्तकें पुस्तकालयों में ही प्राप्त हो सकती हैं जिनकी सहायता से ज्ञानवर्धन, शोध-उपाधि प्राप्त होती है।
प्रत्येक दिन की नई-नई खोजों, आविष्कारों एवं तथ्यों की संकलित जानकारियाँ पुस्तकों द्वारा ही प्राप्त हो सकती हैं। छात्रों एवं अध्यापकों के लिए आधुनिकतम, नवीनतम जानकारी प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक होता है जो विभिन्न प्रकार के विषयों की पुस्तको, जर्नल्स, पत्रिकाओं द्वारा ही सम्भव है।
खाली समय में अच्छे विद्यार्थी, शिक्षक व अन्य व्यक्ति अपने समय का सदुपयोग पुस्तकालय, वाचनालय में व्यतीत करते हैं। इससे उनका ज्ञान भी बढ़ता है। कुछेक व्यक्ति पठन-पाठन के व्यसनी हो जाते हैं, उन्हें पुस्तकों के अलावा कुछ भी नहीं अच्छा लगता है। ऐसे व्यसनी लोग सांसारिकता में अपूर्ण और असफल भी हो जाते हैं, जैसा कहा भी गया है—
“अपि शास्त्रेषु कुशाला: लोकाचारः विवर्जिताः।
सर्वेते हास्यताः यान्ति, यथा ते मूर्ख पण्डितः।।
भारत में पुस्तकालयों की स्थिति चिन्ताजनक है। प्रथम कारण तो पुस्तकालयों के लिए सरकार की अनुग्रह राशि अत्यल्प, दान में प्रदान की गई पुस्तकें सत्तापक्ष की राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त प्रचारात्मक मात्र, भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों की धन व मन पुस्तकों की लूट,
अनुपयुक्त व्यर्थ की पुस्तकों की खरीद तथा उसमें भी कमीशन और अन्त में अनुभव और उपाधि रहित व्यक्तियों की पुस्तकों की देखरेख हेतु नियुक्ति जिससे पुस्तकों का रखरखाव और वितरण अवैज्ञानिक होता है। परिणामस्वरूप अनेक पुस्तकालयों में ताले लग गए।
5. उपसंहार – विद्यार्थी जीवन तथा राष्ट्रीय ऐतिहासिक जीवन में पुस्तकालयों का विशेष महत्व है। इसीलिए पुस्तकालय प्रत्येक देश की अमूल्य निधि होते हैं। पुस्तकालय ही सभ्य समाज के परिचालक होते हैं क्योंकि सभ्य छात्र अथवा नागरिकों को ज्ञान मिलता है तथा इतिहास के प्रति अभिरुचि भी जाग्रत होती है। अत: इनका पर्याप्त संख्या में होना अत्यन्त आवश्यक है।
हमारी परम्पराएँ क्या रही हैं तथा नित नए आविष्कार क्या हो रहे हैं, इन सबको जानने के लिए और समझने के लिए पुस्तकालय सहायता करते हैं। पुस्तकालयों को वर्तमान सन्दर्भ में और अधिक उपयोगी एवं आधुनिकबनाने पर भी जो दिया जाना चाहिए और उनके नियमों का पूरी ईमानदारी से पालना करना चाहिए। क्योंकि पुस्तकें मानव समाज की सच्ची मित्र होती हैं। मुझे तो नई पुस्तक में नया मित्र नजर आता है-
“मैं जो नया ग्रन्थ बिलोकता हूँ, भाता मुझे सो नव-मित्र सा है।
देखूँ उसे मैं नित बार-बार, मानों मिला मित्र मुझे पुराना ॥ “