परहित सरिस धर्म नहिं भाई अथवा परोपकार अथवा परोपकाराय सतां विभूतयः अथवा परोपकार ही जीवन है।
रूपरेखा—1. प्रस्तावना 2. मानव-मानव समान हैं 3. प्रकृति और परोपकार 4. परोपकार के अनेक उदाहरण 5. परोपकार से लाभ 6. परोपकार के विभिन्न रूप 7. उपसंहार ।

परोपकार पर निबंध 600 शब्दों में – Essay on Philanthropy in Hindi
1. प्रस्तावना – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः समाज में रहकर उसे अन्य प्राणियों के प्रति कुछ दायित्वों का भी निर्वाह करना पड़ता है। इनमें परहित अथवा परोपकार सर्वोपरि हैं। जिनके हृदय में परहित का भाव विद्यमान है वे संसार में सब कुछ कर सकते हैं। उनके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा है-
परहित बस जिन्ह के मन माहीं।
तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ॥
2. मानव-मानव समान हैं— भगवान द्वारा बनाए गए सारे मानव समान हैं। अतः इनमें परस्पर प्रेम-भाव होना चाहिए। एक व्यक्ति पर संकट आने पर दूसरों को उसकी सहायता अवश्य करनी चाहिए। अकेले भाँति-भाँति के भोजन करना और आनन्दमग्न रहना तो पशुओं की प्रवृत्ति है।
3. प्रकृति और परोपकार – प्राकृतिक क्षेत्र में हमें सर्वत्र परोपकार की भावना के दर्शन होते हैं। सूर्य सबको प्रकाश देता है, चन्द्रमा की शीतल किरणें सभी को शीतलता प्रदान करती हैं। मेघ सभी के लिए जल की वर्षा करते हैं वायु सभी के लिए जीवनदायिनी है, फूल सभी के लिए अपनी सुगन्ध लुटाते हैं, वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते और नदियाँ अपने जल को संचित करके नहीं रखती। इस सम्बन्ध में कविवर रहीम जी कहते हैं –
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सचहिं सुजान ॥
4. परोपकार के अनेक उदाहरण – इतिहास एवं पुराणों में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिनमें परोपकार के लिए महान व्यक्तियों ने अपने शरीर तक का त्याग कर दिया। संसार में अनेकानेक महान कार्य परोपकार की भावना से ही सम्पन्न हुए हैं।
महान देशभक्तों ने परोपकार की भावना से ही प्रेरित होकर अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। उनके हृदय में अपने देशवासियों की कल्याण-कामना थी। महान सन्तों ने लोक-कल्याण की भावना से प्रेरित होकर अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।
5. परोपकार से लाभ – परोपकार से मानव के व्यक्तित्व का विकास होता है। परोपकार की भावना का उदय होने पर मानव ‘स्व’ की सीमित परिधि से ऊपर उठकर ‘पर’ (अन्य) के विषयों में भी सोचता है। परोपकार भृातत्व भाव का भी परिचायक है। परोपकार की भावना ही आगे बढ़कर विश्वबन्धुत्व के रूप में परिणत होती है। परोपकार से मानव को अलौकिक आनन्द की प्राप्ति होती है। इसका अनुभव सहज में ही किया जा सकता है।
6. परोपकार के विभिन्न रूप – परोपकार की भावना अनेक रूपों में प्रकट होती है। धर्मशालाएँ, धर्मार्थ औषधालय, जलाशयों, आदि का दान परोपकार के ही रूप हैं। परोपकारी व्यक्तियों का जीवन आदर्श माना जाता है। उनकी कीर्ति चिरकाल तक बनी रहती है। मानव स्वभावतः यश की कामना करता है।
परोपकार के द्वारा ही उसे समाज में सम्मान तथा स्थायी यश की प्राप्ति हो सकती है। महर्षि दधीचि, महाराज शिवि, राजा रन्तिदेव, जैसे पौराणिक चरित्र आज भी अपने परोपकार के कारण ही याद किए जाते हैं। जिस समाज में जितने महान परोपकारी व्यक्ति होंगे, वह समाज उतना ही सुखी तथा सम्पन्न होगा।
7. उपसंहार — तुलसीदास जी की उक्ति ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई’ से यही निष्कर्ष निकलता है कि परोपकार ही वह मूलमन्त्र है, जो व्यक्ति को उन्नति के शिखर पर पहुँचा सकता है। समाज की स्थिति को बनाए रख सकता है तथा राष्ट्र का उत्थान कर सकता है। परोपकार का लोप होने से देश में अशान्ति और अव्यवस्था फैल जाएगी। अतः ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को लेकर ही हमें निस्वार्थ भाव से देश एवं समाज की सेवा करनी चाहिए। ठीक ही कहा है-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भाग् भवेत् ॥