नैतिक शिक्षा
रूपरेखा – 1. प्रस्तावना 2.विद्यार्थी और विद्या 3.अनुशासन का स्वरूप और महत्व 4.अनुशासनहीनता के कारण 5.निवारण के उपाय 6.उपसंहार

नैतिक शिक्षा पर निबंध 815 शब्दों में
1.प्रस्तावना – विद्यार्थी देश का भविष्य है। देश के प्रत्येक प्रकार का विकास विद्यार्थियों पर ही निर्भर है। विद्यार्थी जाति समाज और देश का निर्माता होता है; अतः विद्यार्थी का चरित्र उत्तम होना बहुत आवश्यक है। उत्तम चरित्र अनुशासन से ही बनता है। अनुशासन जीवन का प्रमुख अंग और विद्यार्थी जीवन की आधारशिला है।
व्यवस्थित जीवन व्यतीत करने के लिए मात्र विद्यार्थी ही नहीं अपितु प्रत्येक मनुष्य के लिए अनुशासन होना अति आवश्यक है आज विद्यार्थियों में अनुशासहीनता की शिकायत सामान्य सी बात हो गई है। इससे शिक्षा जगत ही नहीं अपितु सारा समाज प्रभावित हुआ है।
2.विद्यार्थी और विद्या – विद्यार्थी का अर्थ है – विद्या का अर्थी अर्थात विद्या प्राप्त करने की कामना करने वाला। विद्या लाइक या सांसारिक जीवन की सफलता का मूल आधार है, जो गुरु कृपा से प्राप्त होती है। संसार में विद्या सर्वाधिक मूल्यवान वस्तु है, जिस पर मनुष्य के भावी जीवन का संपूर्ण विकास तथा संपूर्ण उन्नति निर्भर करती है।
इसी कारण महाकवि भर्तृहरि विद्या की प्रशंसा करते हुए कहते हैं–
“विद्या ही मनुष्य का श्रेष्ठ स्वरूप है, विद्या भली-भांति छुपाया हुआ धन है (जिसे दूसरा चुरा नहीं सकता) विद्या ही सांसारिक भोगों को तथा यश और सुख को देने वाली है, विद्या गुरु की भी गुरु है। विद्या ही श्रेष्ठ देवता है। राज दरबार में विद्या की आदर दिलाती है, धन नहीं। अतः जिसमें विद्या नहीं, वह मेरा प्रश्न है।”
इस अमूल्य विद्या रूपी रतन को पाने के लिए इसका जो मूल्य चुकाना पड़ता है, वह है तपस्या।
3.अनुशासन का स्वरूप और महत्व – अनुशासन का अर्थ है – बड़ों की आज्ञा (शासन) के पीछे (अनु) चलना। ‘अनुशासन’का अर्थ व मर्यादा है जिसका पालन ही विद्या प्राप्त करने और उसका प्रयोग करने के लिए अनिवार्य होता है। अनुशासन का भाव सहज रूप से विकसित किया जाना चाहिए।
थोपे जाने पर अथवा बलपूर्वक पालन कराए जाने पर यह लगभग अपना उद्देश्य खो देता है। विद्यार्थियों के प्रति आया सभी को यह शिकायत रहती है कि वह अनुशासन हीन होते जा रहे हैं, किंतु शिक्षक वर्ग को भी इसका कारण ढूंढना चाहिए कि क्यों विद्यार्थियों की उम्र में श्रद्धा विलुप्त होती जा रही है। कही है इसका कारण स्वयं शिक्षा या उनके माता-पिता तो नहीं है।
4.अनुशासनहीनता के कारण – वस्तुत: विद्यार्थियों के अनुशासनहीनता 1 दिन में पैदा नहीं हुई है। इसके अनेक कारण हैं, जीने मुख्यता निम्नलिखित चार वर्गों में बांटा जा सकता है-
(के) पारिवारिक कारण-बालक की पहली पाठशाला उसका परिवार है। माता पिता के आचार्य का बालक पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आज बहुत से ऐसे परिवार हैं जिसमें माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं या अलग-अलग व्यस्त रहते हैं। जिससे बालक उपेक्षित होकर विद्रोही बन जाता है।
(ख) सामाजिक कारण-विद्यार्थी जब समाज में चतुर्दिक व्याप्त भ्रष्टाचार, घूसखोरी, सिफारिश बाजी, भाई भतीजावाद, फैशन परस्ती, विलासिता और भेदभाव अर्थात हर स्तर पर व्याप्त अनैतिकता को देखता है तो वह विद्रोह कर उठता है और अध्ययन की अपेक्षा करने लगता है।
(ग) राजनीति कारण – छात्र अनुशासन हीनता का एक बहुत बड़ा कारण दूषित राजनीति है आज राजनीतिक जीवन के हर क्षेत्र पर छा गई है सारे वातावरण को उनसे इतना विषाक्त कर दिया है कि स्वस्थ वातावरण में सांस लेना भी कठिन हो गया है।
(घ) शैक्षिक कारण-छात्र अनुशासनहीनता का कदाचित सबसे प्रमुख कारण यही है। अध्ययन के लिए आवश्यक अध्ययन-सामग्री, भवन एवं अन्यान्य सुविधाओं का अभाव, कर्तव्यपरायण एवं चरित्रवान् शिक्षकों के स्तर पर अयोग्य, अनैतिक और भ्रष्ट अध्यापकों की नियुक्ति, अध्यापकों द्वारा छात्रों की कठिनाइयों की अपेक्षा करके ट्यूशन आदि के चक्कर में लगे रहना या मनमाने ढंग से कक्षाएं लेने आदि छात्र अनुशासन हीनता के प्रमुख शैक्षिक कारण है।
5.निवारण के उपाय – यदि शिक्षकों के नियुक्त करते समय सत्यता, योग्यता और इमानदारी का आकलन अच्छे प्रकार कर लिया जाए तो प्रायः यह समस्या उत्पन्न ही ना हो। प्रभावशाली, गरिमामण्डित, विज्ञान और प्रसन्नचित्त शिक्षक के संभोग विद्यार्थी सदैव अनुशासनबध्द रहते हैं।
पाठ्यक्रम को अत्यंत सुव्यवस्थित सुनियोजित, रोचक, ज्ञानवर्धक एवं विद्यार्थियों के मानसिक स्तर के अनुरूप होना चाहिए। छात्र अनुशासनहीनता के उपयुक्त कारणों को दूर करके ही हम इस समस्या का समाधान कर सकते हैं सबसे पहले वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को इतना व्यवहारिक बनाया जाना चाहिए कि शिक्षा पूरी कर के विद्यार्थी अपनी आजीविका के विषय में पूर्णतः निश्चिंत हो सके।
माध्यम अंग्रेजी के स्थान पर मातृभाषा हो। शिक्षा सस्ती की जाए और निर्धन किंतु योग्य छात्रों को निशुल्क उपलब्ध करायी जाए। परीक्षा प्राणाली स्वच्छ हो, जिससे योग्यता का सही और निष्पक्ष मूल्यांकन हो सके।
6.उपसंहार – छात्रों के समस्त असंतोषो का जनक अन्याय है। इसलिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अन्याय को मिटाकर ही देश में सच्चे सुख शांति लाई जा सकती है। छात्र अनुशासनहीनता का मूल भ्रष्ट राजनीति, समाज, परिवार और दूषित शिक्षा प्रणाली में निहित है। इनसे सुधार लाकर ही हम विद्यार्थियों में व्याप्त अनुशासनहीनता की समस्या का स्थायी समाधान ढूंढ सकते