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नारी शिक्षा पर निबंध – Essay on Women Education in Hindi

नारी शिक्षा अथवा नारी शिक्षा : एक आवश्यकता अथवा भारत में नारी शिक्षा अथवा नारी शिक्षा की उपयोगिता अथवा समाज और शिक्षित नारी अथवा नारी शिक्षा का महत्त्व

रूपरेखा— 1. प्रस्तावना 2. शिक्षा का महत्त्व 3. भारत में स्त्री शिक्षा की स्थिति 4. स्त्री शिक्षा की आवश्यकता 5. उपसंहार।

नारी शिक्षा पर निबंध
नारी शिक्षा पर निबंध

1. प्रस्तावना—शिक्षा प्रत्येक के लिए आवश्यक है। शिक्षा ग्रहण किए बिना मनुष्य में उन गुणों का स्वाभाविक विकास नहीं हो पाता, जिनकी उससे अपेक्षा की जाती है। अशिक्षित व्यक्ति को धरती का बोझ समझा जाता है, परन्तु यह समझते हुए आज भी हमारे देश में नारी शिक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं है।

कहा जाता है कि “यदि एक पुरुष शिक्षित होता है, तो केवल एक वहीं शिक्षित होता है। किन्तु यदि एक स्त्री शिक्षित होती है, तो पूरा परिवार शिक्षित होता है।” इस कथन से स्त्री शिक्षा का अनुमान लगाया जाता है। कभी इस देश में नारी शिक्षा का भी इतना ही महत्त्व था, जितना पुरुष शिक्षा का था।

गार्गी, मैत्रेयी, अपाला और विदुला आदि ने परिषदों और परिवारों ने अपनी विद्वता और सुसंस्कारों का प्रमाण देकर नारी की प्रतिष्ठा बढ़ायी थी। विदेशी आक्रमण और पदें की अंध प्रथा ने इस देश की स्त्री को भी शताब्दियों के लिए अज्ञान के अन्धकार में धकेल दिया।

2. शिक्षा का महत्त्व – मानव जीवन में शिक्षा के महत्त्व से कौन परिचित नहीं है? नारी की महिमा का वर्णन करते हुए कवि शारदा प्रसाद शर्मा ‘शारदेन्दु’ ने कहा है-

नारी में है सभी शक्तियाँ,
उनसे सारी दुनियाँ हारी।
आँचल में इसके खेले हैं,
ब्रह्मा, विष्णु तथा त्रिपुरारी ।

विद्या की महिमा का वर्णन करते हुए कविगण और विद्वानों ने क्या कुछ नहीं कहा है। विद्या को मनुष्य का तीसरा ज्ञान रूपी नेत्र बताया गया है। विद्या विहीन मनुष्य को पशु तुल्य माना गया है। विद्या मनुष्य की उन्नति और विकास का मूलाधार होती है-

विद्या ददाति विनयं, विनयाद्याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमालोति धनात्, धर्मः तते सुखम् ॥

विद्या विनम्रता देती है, विनम्रता से मनुष्य सब प्रकार की पात्रता (योग्यता) प्राप्त करता है। सुपात्र ही धन अर्जित कर पाता है और धन से धर्म-कार्य करता हुआ मनुष्य सुख का भागी होता है। विद्या रूपी धन जिसके पास है उसे और किसी धन की क्या आवश्यकता है?

अतः जो समाज अपने स्त्री वर्ग को शिक्षित नहीं करता, उसकी आधी शक्ति अनुपयोगी पड़ी रहती है। उसकी भावी पीढ़ियाँ सुसंस्कार और सभ्यता से वंचित रहती हैं। पुत्री, पत्नी, माता तथा समाज के सदस्य के रूप में स्त्री का शिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है।

3. भारत में स्त्री शिक्षा की स्थिति — स्वतन्त्रता के बाद नारी शिक्षा पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया और शिक्षा सम्बन्धी नीतियाँ बनाते समय स्त्री वर्ग की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा गया है। बालक-बालिकाओं के लिए विद्यालय और महाविद्यालय स्थापित किये गए हैं, शुल्क इत्यादि में छूट दी गई है तथापि विद्या की ज्योति अभी नगरों या कस्बों में हो पाई है।

भारत के लाखों ग्रामों की निवासिनी स्त्री अभी भी विद्या के प्रकाश से वंचित हैं। गाँवों में लड़कियों को शिक्षा दिलाना आज भी आवश्यक नहीं समझा जाता । जहाँ शिक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध हैं, वहीं छात्राएँ, छात्रों से किसी भी प्रकार से पीछे नहीं हैं।

इनका उत्र्तीण प्रतिशत छात्रों से इक्कीस ही रहता है चाहे किसी प्रकार का क्षेत्र हो। आजकल स्त्रियाँ प्रत्येक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभा रही हैं। हम कह सकते हैं कि नारी-शिक्षा में उल्लेखनीय प्रगति हुई। भारत भी इससे अछूता नहीं।

4. स्त्री-शिक्षा की आवश्यकता — स्त्री शिक्षा पर विशेष जोर देते हुए कवि शारदेन्दु प्रसाद शर्मा ‘शारदेन्दु’ जी कहते हैं-

नारी समाज की स्रष्टा है,
भूले पथ की पथ-द्रष्टा है।
दुखियों के दुख की नाशक है,
युग द्रष्टा है, युग स्रष्टा है।

अधिकतर स्त्रियों को अक्षर ज्ञान एवं पत्र लिख लेने भर की शिक्षा दिलाना पर्याप्त बताया गया है। अधिक शिक्षा से लड़कियाँ बिगड़ जाती हैं, यह अंधविश्वास अभी भी हमारे देश के बड़े भाग में व्याप्त है। सभ्यतः ऐसे विचार और विश्वासों के पीछे पुरुष की श्रेष्ठता और शासन की भावना काम करती है।

संविधान ने भले ही इस देश में स्त्री को पुरुष के बराबर अधिकार दे दिए हो, लेकिन पुरुष, स्त्री की तुलना में अपनी श्रेष्ठता के आग्रह का त्याग नहीं कर पाया है। अशिक्षित स्त्री को पग-पग पर कठिनाइयाँ और परावलम्बिता भोगनी पड़ती है।

सुशिक्षित स्त्री अपना भला-बुरा अच्छी प्रकार सोच सकती है। वह संकटों से जूझने की अधिकाधिक रीतियों से परिचित हो जाती है। शिक्षा उसमें आत्मविश्वास और स्वावलम्बन की भावना जगाती है।

आज पंचायत स्तर पर भी स्त्रियों को तीस प्रतिशत भागीदारी दी गई तो क्या इस भूमिका को स्त्री घूँघट के भीतर से निभा पायेगी। शिक्षित हुए बिना वह कभी सही निर्णय नहीं ले सकती। गोद में बच्चा और मुख पर घूँघट डाले ‘ग्राम प्रधान’ बन गई स्त्रियों का उपहास बनते देखा जा चुका है।

5. उपसंहार – यद्यपि नारी, शिक्षा के क्षेत्र में निरन्तर आगे बढ़ रही है, परन्तु अभी इसकी गति बहुत धीमी है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में लिंग के आधार पर इनके साथ शैक्षणिक अवसरो में भेदभाव किया जाता है। उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाली अधिकांश शहरी युवतियाँ भी सफेदपोश परिवारों से आती हैं।

अतः नारी-शिक्षा पर अभी भी पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है। शिक्षा से उनका एवं देश का विकास सम्भव है। शिक्षा ही नारियों को उदार एवं व्यापक दृष्टिकोण से सम्पन्न व्यक्तित्व की स्वामिनी बनाएँगी तथा उनकी अभिरुचियों, मूल्यों एवं भूमिका-विषयक विचारों को बदलेंगी।

इससे राष्ट्र की उन्नति को भी एक नई दिशा मिलेगी। स्त्री आज शिक्षक, डॉक्टर, वकील, व्यवसायी, वैज्ञानिक, इंजीनियर, कलाविद और सैनिक सभी रूपों में सफलता प्रमाणित कर रही हैं। अतः पुरुषों को स्त्री-शिक्षा में बाधक न बनकर साधक बनना चाहिए। विशेष रूप से ग्रामीण अंचल में स्त्री-शिक्षा की सभी सुविधाएँ उपलब्ध

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