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स्वदेश-प्रेम/देश-प्रेम पर निबंध – Desh Prem par nibandh

देश-प्रेम पर निबंध

रूपरेखा  1. प्रस्तावना 2.देश-प्रेम की स्वाभाविकता 3.देश-प्रेम का अर्थ 4.देश-प्रेम का क्षेत्र 5.देश के प्रति कर्तव्य 6.भारतीयों का देश-प्रेम 7.उपसंहार

देश-प्रेम पर निबंध
देश-प्रेम पर निबंध

प्रस्तावना – ईश्वर द्वारा बनाई गई सर्वाधिक अद्भुत रचना है जननी, जो निस्वार्थ प्रेम की प्रतीक है प्रेम का ही पर्याय है, स्नेह की मधुर बयार है, सुरक्षा का अटूट कवच है, संस्कारों के पौधों को ममता के जल से सीखने वाली चतुर उघान रक्षिका है, जिसका नाम प्रत्येक शीश को नमन के लिए झुक जाने को प्रेरित कर देता है। उसे स्वर्ग का पूरा पूरा अनुभव धरा पर ही हो गया। इसलिए जननी और जन्मभूमि की महिमा को स्वर्ग से भी बढ़कर बताया गया है।

देश-प्रेम की स्वाभाविकता – प्रत्येक देशवासी को अपने देश से अनुपम प्रेम होता है। अपना देश चाहे बर्फ से ढका हुआ हो, चाहे गर्म रेत से भरा हुआ हो, चाहे ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घिरा हुआ हो, वह सबके लिए प्रिय होता है। इस संबंध में रामनरेश त्रिपाठी की निम्नलिखित पंक्तियां दृष्टिव्य है-।

विषुवत् रेखा का वासी जो, जीता है नित हाफ हाफ कर
रखता है अनुराग अलौकिक, वह भी अपनी मातृभूमि पर ।।
ध्रुववासी जो हिम मैं तम मैं, जी लेता है कॉप कॉप कर ।
वह भी अपनी मातृभूमि पर,कर देता है प्राण निछावर ।।

प्राप्त काल के समय पक्षी भोजन पानी के लिए कलरव करते हुए दूसरे स्थानों पर चले जाते हैं, परंतु सायंकाल होते ही एक विशेष उमंग और उत्साह के साथ अपने अपने घोसले की ओर लौटने लगते हैं। जब पशु पक्षी को अपने घर से अपनी मातृभूमि से इतना प्यार हो जाता है भला वह मानव को जन्म भूमि से, अपने देश से क्यों प्यार नहीं होता? कहा भी गया है कि माता और जन्म भूमि की तुलना मैं स्वर्ग का सुख भी तुच्छ है-
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।

देश-प्रेम का अर्थ – देश प्रेम का तात्पर्य है देश में रहने वाले जड़ चेतन सभी से प्रेम, देश की सभी झोपड़ियों, महिलाओं तथा संस्थाओं से प्रेम, देश के रहन सहन, रीति रिवाज, वेशभूषा से प्रेम, देश के सभी धर्मों, मतों, भूमि, पर्वत, नदी, वन, तृण, लता सभी से प्रेम और अपनत्व रखना, उन सब के प्रति गर्व की अनुभूति करना।

सच्चे देश प्रेमी के लिए देश का कण कण पावन और पूज्य होता है। सच्चा देश प्रेमी वही होता है, जो देश के लिए निस्वार्थ भावना से बड़े से बड़ा त्याग कर सकता है। स्वदेशी वस्तुओं का स्वयं उपयोग करता है और दूसरों को उनके उपयोग के लिए प्रेरित करता है। सच्चा देशभक्त उत्साही, सत्यवादी, महत्वाकांक्षी और कर्तव्य की भावना से प्रेरित होता है।

देश-प्रेम का क्षेत्र – देश प्रेम का छेद अत्यंत व्यापक है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति देशभक्ति की भावना प्रदर्शित कर सकता है।

सैनिक युद्ध भूमि में प्राणों की बाजी लगाकर राजनेता राष्ट्र के उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर समाज सुधारक समाज का नवनिर्माण करके धार्मिक नेता मानव धर्म का उच्च आदर्श प्रस्तुत करके साहित्यकार राष्ट्रीय चेतना और जन जागरण का स्वर फूंककर, कर्मचारी, श्रमिक एवं किसान निष्ठा पूर्वक अपने दायित्व का निर्वाह करके, व्यापारी मुनाफाखोरी वह तस्करी का त्याग कर अपनी देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित कर सकता है।

संक्षेप में सभी को अपना कार्य करते हुए देशहित को सर्वोपरि समझना चाहिए।

देश के प्रति कर्तव्य – जिस देश में हमने जन्म लिया है, जिसका अन्य खाकर और अमृत के समान जल पीकर, सुखद वायु का सेवन कर हम बलवान हुए हैं, जिसकी मिट्टी में खेल कूद कर हमने पुष्ट शरीर प्राप्त किया है, उस देश के प्रति हमारे अनन्य कर्तव्य है। हमें अपने प्रिय देश के लिए कर्तव्य पालन और दया की भावना से श्रद्धा सेवा एवं प्रेम रखना चाहिए।

हमें अपने देश की 1 इंच भूमि के लिए तथा उनके सम्मान और गौरव के लिए प्राणों की बाजी लगा देनी चाहिए यह सब करने पर भी जन्मभूमि यह अपने देश की ऋण में हम कभी भी उऋण और नहीं हो सकते।

भारतीयों का देश-प्रेम – भारत मां ने ऐसे असंख्य नर- रत्नों को जन्म दिया है, जिन्होंने असीम त्याग भावना से प्रेरित होकर हंसते-हंसते मृत्य भूमि पर अपने प्राण अर्पित कर दिए। कितने ही ऋषि मुनियों ने अपने तब और त्याग से देश की महिमा को मंडित किया है तथा अनेकानेक वीरों ने अपने अद्भुत शौर्य से शत्रुओं के दांत खट्टे किए हैं।

वन वन भटकने वाले महाराणा प्रताप ने घास की रोटियां खाना स्वीकार कर लिया परंतु मृत्य भूमि के शत्रुओं के सामने कभी मस्तक नहीं झुकाया। शिवाजी ने देश और मृत्य भूमि की सुरक्षा के लिए गुफाओं मैं छुपकर शत्रु से टक्कर ली और रानी लक्ष्मीबाई ने महलों में सुखों को त्याग कर शत्रुओं से लोहा लेते हुए वीरगति प्राप्त की।

भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, अशफाक उल्ला आदि ना जाने कितने देश भक्तों ने विदेशियों की अनेक यातनाएं सहते हुए मुख से वंदेमातरम कहते हुए हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया।

उपसंहार – खेद का विषय है कि आज हमारे नागरिकों में देश प्रेम की भावना अत्यंत दुर्लभ होती जा रही है। नई पीढ़ी का विदेशियों से आयातित वस्तुओं और संस्कृतियों के प्रत्येक अंधाधुन मोह स्वदेश के बजाय विदेश में जाकर सेवाएं अर्पित करने के सजीले अपने वास्तव में चिंताजनक है।

हमारी पुस्तके भले ही राष्ट्रप्रेम की गाथाएं पाठ्य सामग्री में सजोये रहे परंतु वास्तव में नागरिकों के हृदय में गहरा वह सच्चा राष्ट्रप्रेम ढूंढने पर भी उपलब्ध नहीं होता। हमारे शिक्षाविदों व बुद्धिजीवियो को इस प्रश्न का समाधान ढूंढना ही होगा। अब मात्र उपदेश या अतीत के गुणगान से वह प्रेम उत्पन्न नहीं हो सकता। हमें अपने राष्ट्र की दशा वो छवि अनिवार्य रूप से सुधारनी होगी।

प्रत्येक देशवासी को यह ध्यान रखना चाहिए कि उनके देश भारत की देश रूपी बगिया के राज्य रूपी अनेक क्यारियां है। किसी एक क्यारी की उन्नति एकांगी उन्नति है और सभी क्यारियों की उन्नति देश रूपी उपवन की सर्वांगीण विकास करना चाहिए। स्वदेश प्रेम मनुष्य का स्वाभाविक गुण है इसे संकुचित रूप में ग्रहण ना कर व्यापक रूप में ग्रहण करना चाहिए। हमें स्वदेश प्रेम की भावना के साथ साथ समग्र मानवता के कल्याण को भी ध्यान में रखना चाहिए।

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