दूरदर्शन के गुण-दोष अथवा शिक्षा और दूरदर्शन अथवा दूरदर्शन की उपयोगिता अथवा दूरदर्शन का सामाजिक जीवन पर प्रभाव अथवा दूरदर्शन : लाभ-हानि अथवा जन शिक्षा में दूरदर्शन की भूमिका. अथवा दूरदर्शन और आधुनिक जीवन अथवा टेलीविजन : एक वरदान अथवा अभिशाप
रूपरेखा – 1. प्रस्तावना 2. दूरदर्शन का इतिहास तथा सिद्धान्त 3. भारत में दूरदर्शन का श्रीगणेश 4. दूरदर्शन के लाभ-हानियाँ 5. दूरदर्शन का प्रभाव 6. उपसंहार।

दूरदर्शन पर निबन्ध 1000 शब्दों में – Doordarshan par nibandh
1. प्रस्तावना – कुछ समय पहले तक जब हम किसी जादूगर की कहानी में पढ़ते थे कि जादूगर ने जैसे ही ग्लोब पर हाथ घुमाया वैसे ही उसका शत्रु ग्लोब पर दिखाई देने लगा और जादूगर ने उसकी सारी क्रियाओं को अपनी गुफा में बैठकर देख लिया, तो हमें महान आश्चर्य होता था। आज इस प्रकार जादू हम प्रतिदिन घर पर करते हैं।
स्विच आन करते ही बोलती हुई रंग-बिरंगी तस्वीरें हमारे सामने आ जाती हैं। यह सब टेलीविजन का चमत्कार है, जिसके माध्यम से हम हजारों-लाखों मील दूर की क्रिया-कलापों को दूरदर्शन यंत्र पर देखा जा सकता है। आज इन दूरदर्शन पर फास्ट-लाइफ दिनभर का थका व्यक्ति कुछ मनोरंजन कार्यक्रम देखकर अपनी थकान समाप्त करता है।
यह सब विज्ञान के प्रताप से आज दूर-दूर का स्थान भी समीप से समीपतर हो गया है। विज्ञान के द्वारा हजारों मील दूर के दृश्यों और घटनाओं को टेलीविजन द्वारा हमारी आँखों के सामने प्रस्तुत कर देता है।
2. दूरदर्शन का इतिहास तथा सिद्धान्त – इंग्लैंड के एक इंजीनियर ‘जान बेयर्ड’ ने रायल इन्स्टीटयूट के सामने इसका आविष्कार 25 जनवरी 1926 को किया था। उसने कठपुतली के चेहरे का चित्र रेडियों-तरंगों की सहायता के द्वारा दूसरे कमरे में ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर दिया। इसके बाद सन् 1944 ई० अमेरिका के वैज्ञानिक ‘जान लागी वैयर्ड’ ने किया था।
इसके आविष्कार के थोड़े समय बाद ही संसार के विकसित देशों में प्रसार इतना अधिक हो गया कि भारत में दूरदर्शन केन्द्र का प्रथम केन्द्र 15 सितम्बर 1959 को नई दिल्ली में प्रारम्भ हुआ। आज संसार का ऐसा कोई भी देश नहीं, जहाँ टेलीविजन केन्द्र न हो।
दूरदर्शन काफी कुछ रेडियों सिद्धान्त पर आधारित है। अन्तर केवल इतना है कि रेडियों किसी ध्वनि को विद्युत तरंगों में परिवर्तित कर उन्हें दूर-दूर तक प्रसारित कर देता है और इस प्रकार प्रसारित की जा रही विद्युत-तरंगों को फिर से ध्वनि में परिवर्तित कर देता है।
दूरदर्शन प्रकाश को विद्युत तरंगों में परिवर्तित कर प्रसारित करता है जिससे ध्वनि के साथ-साथ इसके दृश्यों को हम लोग देख सकते हैं। दूरदर्शन प्रसारण स्तम्भ जितना ऊँचा होगा उतनी ही दूर तक उससे प्रसारित चित्र दूरदर्शन पर दिखाई पड़ सकेगा।
प्रारम्भ में दूरदर्शन के प्रसारण की अवधि मात्र साठ मिनट की थी तथा इसके प्रसारण को सप्ताह में दो बार ही देखा जा सकता था। 1982 ई० का वर्ष भारतीय दूरदर्शन के लिए स्वर्णिम वर्ष था। अभी तक दूरदर्शन के कार्यक्रम श्वेत-श्याम रंग के थे। 15 अगस्त 1982 से रंगीन टी०वी० आरम्भ हुआ तथा इससे राष्ट्रीय कार्यक्रमों की नींव डाली गई।
3. भारत में दूरदर्शन का श्रीगणेश – भारत में दूरदर्शन का श्रीगणेश 15 सितम्बर 1959 ई० में दिल्ली में दूरदर्शन केन्द्र की स्थापना के साथ हुआ। इसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने किया। इसके बाद बम्बई, श्रीनगर, अमृसर, कलकत्ता, मद्रास और लखनऊ में केन्द्रों की स्थाना की गई।
इसके अलावा दूरदर्शन केन्द्रों के कार्यक्रमों को प्रसारित (रिले) करने के लिए पूना, मंसूरी, लखनऊ, कानपुर तथा बंगलौर में अनुसारित उपकेन्द्रों की स्थापना हुई। इसके बाद तो भारत में विभिन्न नगरों व महानगरों में लघुशक्ति और उच्चशक्ति वाले अनेक दूरदर्शन केन्द्रों की स्थापना का लक्ष्य आगामी वर्षों में निर्धारित किया गया है।
इससे स्पष्ट होता है कि भारत में दूरदर्शन सेवाओं का विस्तार बहुत ही द्रुतगति से हुआ है। जनता के द्वारा भी इसका हार्दिक स्वागत किया गया है। इसी कारण आज भारत के अनेक छोटे नगरों में सभी परिवारों में टेलीविजन सेट देखने को मिलते हैं। सभी परिवारों के लिए यह आवश्यक अंग बन गया है।
4. दूरदर्शन के लाभ-हानियाँ – दूरदर्शन की उपयोगिता प्रायः सार्वभौमिक है। हमारे जीवन के निम्न विभिन्न पक्ष इसके द्वारा लाभान्वित होते हैं-
(1) विश्व समाचारों की जानकारी (2) सस्ता और सुलभ मनोरंजन (3) विश्व – संस्कृतियों के आचार-विचार की जानकारी (4) व्यावसायिक और शिक्षण सम्बन्धी सूचना की प्राप्ति (5) पर्यटन का आनन्द (6) सभी की ज्ञान वृद्धि का साधन (7) बच्चों के विकास में सहायक (8) खेल-कूद प्रतियोगिताओं का सजीव प्रसारण आदि ।
इसके अलावा विज्ञान के क्षेत्र में तथा कृषि के क्षेत्र में जहाँ प्रयोग दिखाने होते हैं वहाँ टेलीविजन बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है।
प्रत्येक वस्तु के दो पहलू होते हैं- लाभदायक व हानिकारक। टेलीविजन भी इससे अछूता नहीं रह सकता है।
इसका सबसे बड़ा दोष यह है कि उसका उपयोग जनसाधारण नहीं कर सकता, क्योंकि इसका मूल्य अधिक है कि कोई इसे खरीदने में समर्थ नहीं होता है। फिर भी इससे निम्न हानियाँ होती हैं—(1) समय की हानि (2) स्वास्थ्य की हानि (3) चरित्र की हानि (4) बच्चों के भविष्य पर कुप्रभाव आदि ।
5. उपसंहार – लाभ और हानि की विवेचना करने से विदित होता है कि दूरदर्शन आज के युग का एक महत्त्वपूर्ण मनोरंजन तथा ज्ञानार्जन का साधन है। इसका उचित उपयोग करके देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया जा सकता है।
हमें पूर्ण विश्वास है कि भारत में दूरदर्शन के द्वारा लोगों का ज्ञान बढ़ेगा, उनका चरित्र निर्माण होगा, राष्ट्रीय एकता को बल मिलेगा और भारत के सन्तुलित आर्थिक विकास में सहायता मिलेगी। अन्त में यह कहना उपयुक्त ही होगा कि निकट भविष्य में भारत के प्रत्येक क्षेत्र में दूरदर्शन पर ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाने लगेंगे, जिनसे सम्पूर्ण जनता लाभान्वित होगी।
दूसरे शब्दों में, दूरदर्शन का भविष्य उज्ज्वल है। केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों को चाहिए कि वे दूरदर्शन के प्रसारणों में किसी प्रकार का अश्लील प्रसारण न होने दें। अश्लील प्रसारण बच्चों के लिए हानिकारक हैं। भीड़ भरे स्थलों पर, विशिष्ट समारोहों में, क्रीड़ा प्रतियोगिताओं में तथा जहाँ हम सरलता से नहीं पहुँच सकते, टेलीविजन के माध्यम से वहाँ पर उपस्थित रहने जैसा सुख प्राप्त करते हैं।