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दिवाली/दीपावली पर निबंध – Diwali per nibandh

दिवाली/दीपावली

रूपरेखा— 1. प्रस्तावना 2. दीपावली क्यों मनायी जाती है? 3. दीपावली पर्व का आयोजन 4. उपसंहार

दीपावली पर निबंध
दीपावली पर निबंध

1.प्रस्तावना – मनुष्य सामाजिक प्राणी है और त्यौहारों का आयोजन उसकी इसी प्रवृत्ति का परिणाम है। प्रत्येक समाज में विभिन्न प्रकार के त्यौहारों का आयोजन किया जाता है। ये त्यौहार आनन्द की अभिव्यक्ति, जीवन में नवीनता एवं सरसता, सामाजिक एकता, समृद्धि एवं पारस्परिक स्नेह के प्रतीक होते हैं। हमारे देश भारतवर्ष में अनेक प्रकार के त्यौहार मनाये जाते हैं।

इनमें कुछ धार्मिक, कुछ सामाजिक, कुछ ऐतिहासिक तथा कुछ राष्ट्रीय त्यौहार होते हैं, परन्तु सर्वाधिक धूमधाम से सामाजिक, धार्मिक त्यौहार ही मनाए जाते हैं। इनमें चार प्रमुख त्यौहार हैं— होली, रक्षाबन्धन, दशहरा तथा दीपावली। इन चारों त्यौहारों में दीपावली का महत्त्व एवं लोकप्रियता सर्वाधिक है।

2.दीपावली क्यों मनायी जाती है – दीपावली मनाने से सम्बन्धित भिन्न-भिन्न मत प्रचलित हैं। हमारा देश त्यौहारों का देश है। त्यौहार मनाने की युग-युगान्तर से चली आ रही इस परम्परा के तौर-तरीके तथा रूप-रंग समय के साथ-साथ बदलते रहे हैं। पौराणिक कहानियों के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध कर लोगों को उसके भय से मुक्त किया।

तभी से उल्लास के रूप में यह पर्व मनाया जाने लगा। कहा यह भी जाता है कि भगवान द्वारा बलि को पाताल लोक का राजा बनाने पर देवराज इन्द्र ने स्वर्ग के बच जाने की खुशी में दीपकों का प्रकाश कर इस त्यौहार का प्रारम्भ किया। आज की पीढ़ी जो कथा जानती है वह श्री राम के १४ वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी के साथ जुड़ी है।

इस प्रकार आज दीपावली मनाने का सबसे मुख्य कारण राजा रामचन्द्र की रावण पर विजय तथा उसके उपरान्त अयोध्या आने की बात मानी जाती है। रामचन्द्र जी के सकुशल घर आने की खुशी में अयोध्यावासियों ने दीप-माला प्रज्वलित कर उनका स्वागत किया था। तब से उनकी याद में दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।

इससे भिन्न जैन धर्म के अनुयायी इस पर्व का सम्बन्ध तीर्थकर महावीर द्वारा इसी दिन मुक्ति प्राप्त करने से मानते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार इसी अवसर पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार का वेश धारण करके राजा बलि के आधिपत्य से लक्ष्मी को मुक्ति दिलायी थी। आर्यसमाजी इसे स्वामी दयानन्द सरस्वती के निर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं।

कहानी यह भी है कि सिखों के गोविन्द सिंह के कारागार से मुक्ति पाने की खुशी में दीप जलाकर दीपावली के रूप में मनाया जाने लगा। इनके अतिरिक्त दीपावली मनाने का एक सामाजिक कारण भी है। वास्तव में, वर्षा ऋतु में घरों में सीलन एवं गन्दगी आदि काफी एकत्र हो जाती है। इस सबसे मुक्ति पाने के लिए सफाई के पर्व के रूप में दीपावली का आयोजन किया जाता है।

इसी मौसम में खरीफ की फसल तैयार हो जाती है, अतः फसल के घर पहुँचने के हर्ष एवं उल्लास के उपलक्ष्य में भी दीपावली के त्यौहार का आयोजन किया जाता है।

3.दीपावली पर्व का आयोजन – दीपावली का आयोजन कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से लेकर शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि तक किया जाता है। त्रयोदशी को धनतेरस भी कहते हैं। इस दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। इसके बाद चतुर्दशी को छोटी दीपावली होती है जिसे नरक चतुर्थी कहा जाता है।

इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर को मारा था, मुख्य दीपावली अमावस्या को मनायी जाती है और उसके दूसरे दिन भैया दूज का त्यौहार आता है। दीपावली का पर्व कार्तिक महीने की अमावस्या की काली रात को मनाया जाता है, परन्तु घर-घर में जल उठने वाली दीपमालायें इस अमावस्या को भी पूर्णिमा में परिवर्तित कर देती हैं। रंग-बिरंगे कैण्डील तथा पुते हुए रंग-बिरंगे चौक, घरों की शोभा को निराला रूप प्रदान करते हैं। घरों के अतिरिक्त बाजारों एवं दुकानों में भी भरपूर सजावट की जाती है।

आजकल मेरठ नगर की दीपावली की सजावट की दूर-दूर तक प्रशंसा की जाती है। दीपावली के दिन लक्ष्मी का पूजन भी बड़ी श्रद्धा से किया जाता है। व्यापारी लोग अपने बहीखातों की भी पूजा करते हैं तथा ईश्वर से आगामी वर्ष में अधिक-से-अधिक लाभ के लिए प्रार्थना करते हैं। दीपावली महालक्ष्मी की पूजा का पर्व है।

ऐसी धारणा है कि दीपावली-पूजन का वर्ष पर्यन्त आर्थिक स्थिति पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इस कारण प्रत्येक परिवार श्रीगणेश-लक्ष्मी की स्थापना और पूजा सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त में करना चाहता है। गुरुदेव बृहस्पति के अनुसार, कार्तिक अमावस्या को सूर्यास्त के बाद सर्वप्रथम ‘लक्ष्मी योग‘ आता है। यह मुहूर्त सामान्य गृहस्थजनों के लिए सर्वाधिक शुभ कहा जाता है।

इसके बाद आने वाला ‘इन्द्रयोग‘ सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं के लिए विशेष अनुकूल रहता है। तत्पश्चात् ‘कुबेर-योग‘ व्यापारियों एवं उद्योगपतियों के लिए विशेष लाभदायक सिद्ध होता है। धनतेरस को सायंकाल घर के प्रवेश द्वार के बाहर, दक्षिण दिशा में, यमराज के निमित दीप-दान करने से अकालमृत्यु का भय दूर होता है।

धनतेरस से भैयादूज तक के पाँच दिनों में घर में अखण्ड दीपक प्रज्वलित रखने से पाँचों तत्व संतुलित हो जाने पर समस्त वास्तु दोष साल भर के लिए निष्प्रभावी हो जाते हैं और सात जन्मों से चली आ रही निर्धनता भी दूर हो जाती है। दीपावली के दिन पटाखे तथा तरह-तरह की आतिशबाजी चलाने का प्रचलन है। इस धूम-धड़ाके से सारा वातावरण ही गुंजायमान हो जाता है।

दीपावली के दिन सभी लोग अपने-अपने मित्रों एवं सम्बन्धियों के घर आते-जाते हैं तथा बधाई एवं मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं। कुल मिलाकर पूरा वातावरण उत्साह, उल्लास, भाई-चारे तथा स्नेह से भर उठता है। परन्तु इस महान पर्व के साथ एक बुरा एवं निन्दनीय प्रचलन भी जुड़ा हुआ है और वह है जुआ खेलना।

बहुत से व्यक्ति इस अवसर पर बहुत अधिक जुआ खेलते हैं जिससे कई घर बरबाद हो जाते हैं। जुआ खेलना एक कानूनी अपराध एवं सामाजिक बुराई है। इससे अनेक घर एवं परिवार नष्ट हो जाते हैं। दीपावली के महान पर्व के अवसर पर ऐसा घृणित कार्य करना शोभा नहीं देता।

इसके अतिरिक्त कभी-कभी पटाखे एवं आतिशबाजी भी विभिन्न दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है। कभी-कभी लोगों के पूरे घर दीपावली की आग में जलकर नष्ट हो जाते हैं। पटाखों के धुएँ से वातावरण में प्रदूषण भी फैलता है।

4.उपसंहार – निश्चित रूप से दीपावली का पर्व एक महान सामाजिक-सांस्कृतिक पर्व है जो लोगों को उत्साह,स्फूर्ति तथा सौहार्द्र प्रदान करता है। यह पर्व सामाजिक एकता का प्रकाश पर्व है, इसलिए हम लोगों का दायित्व है कि हम पर्व को तथाकथित दोषों से मुक्त करके इसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ा दें। त्यौहार हमारी सांस्कृतिक समृद्धि के प्रतीक हैं। इनको अधिक से अधिक परिष्कृत बनाना हमारा दायित्व है।

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