देश में गरीबी अथवा गरीबी : एक ज्वलन्त समस्या अथवा गरीबी : एक अभिशप अथवा गरीबी : एक दानव अथवा गरीबी : एक सामाजिक समस्या
रूपरेखा— 1. प्रस्तावना 2. गरीबी के कारण 3. गरीबी के दुष्परिणाम 4. गरीबी दूर करने के उपाय 5. उपसंहार।

गरीबी पर निबंध 850 शब्दों में – Poverty Essay in Hindi
1. प्रस्तावना – सामान्यतः गरीबी अथवा निर्धनता उस स्थिति को कहा जाता है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाने में असमर्थ रहता है। गरीबी किसी भी देश के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है।
निर्धनता की परिभाषा सभी देशों के लिए एक-सी नहीं हो सकती है, क्योंकि निर्धनता का आधार जीवन स्तर को माना जाता है। विकसित देशों में साधारण व्यक्ति भी कहीं अधिक ऊँचे जीवन स्तर पर जी रहा होता है। विकसित देशों में जिसके पास गाड़ी न हो, उसे निर्धनता माना जा सकता है, जबकि विकासशील देशों में निर्धनता मापने का यह पैमाना उपयुक्त नहीं का जा सकता।
2. गरीबी के कारण- हमारे देश में निर्धनता के कारण हैं जनसंख्या में तेजी से हो रही वृद्धि, इसका सबसे बड़ा कारण है। बढ़ती जनसंख्या के जीवन- निर्वहन हेतु अधिक रोजगार सृजन की आवश्यकता होती है। ऐसा न होने पर बेरोजगारी में वृद्धि के फलस्वरूप निर्धनता की स्थिति में भी वृद्धि होती है।
भारत में व्यावहारिक के बजाय सैद्धान्तिक शिक्षा पर जोर दिया जाता है फलस्वरूप व्यक्ति के पास उच्च शिक्षा की उपाधि तो होती है परन्तु न तो वह किसी कार्य में दक्ष हो पाता है और न ही अपना कोई निजी व्यवसाय शुरू करने में सक्षम होता है। इस तरह दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली के कारण भी लोग अपनी आजीविका नहीं कमा पाते और निर्धनता की स्थिति में जीने को विवश होते हैं।
पहले अधिकतर ग्रामीण कुटीर उद्योगों से अपनी आजीविका चलाते थे। ब्रिटिश सरकार की कुटीर उद्योग विरोधी नीतियों के कारण देश में इनका पतन होता चला गया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी इनके उत्थान के लिए कुछ विशिष्ट प्रयास नहीं किए गए, जिसके कुपरिणामस्वरूप गाँवों की अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई और ग्रामीण बेरोजगारी में वृद्धि के कारण निर्धनता की स्थिति में वृद्धि हुई।
हमारा देश प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न है, किन्तु पूँजी एवं तकनीक के अभाव में हम इनका समुचित उपयोग नहीं कर पाते। भारत की अधिकतर आबादी कृषि पर निर्भर है, किन्तु कृषि के पिछड़ेपन के कारण इस क्षेत्र के लोगों को पूरे साल रोजगार नहीं मिल पाता।
भारत में सर्वाधिक निर्धनता उड़ीसा में है, जहाँ लगभग पचास फीसदी से भी अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती है। इसके अलावा अन्य प्रान्तों में जहाँ अत्यधिक निर्धनता व्याप्त है। कहीं-कहीं तो निम्न रूप देखने को मिलता है। कवि दिनकर ने कहा है-
श्वानों को मिलता दूध-भात,
नन्हें मुन्ने चिल्लाते हैं।
माँ की गोदी में ठिठुर-ठिठुर कर,
जाड़े की रात बिताते हैं ।
-रामधारी सिंह ‘दिनकर’
इसके अलावा दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, केरल आदि प्रान्तों में निर्धनता अपेक्षाकृत कम है।
3. गरीबी के दुष्परिणाम — निर्धनता के कई दुष्परिणाम होते हैं। निर्धनता के कारण भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। निर्धनता के कारण मानसिक अशान्ति की स्थिति में लागों द्वारा चोरी, डकैती, हिंसा व अपराध की ओर प्रवत्त होने. की पूरी सम्भावना रहती है। अपराध एवं हिंसा में हो रही वृद्धि का सबसे बड़ा कारण निर्धनता एवं बेरोजगारी ही है।
गाँव में निर्धन लोगों का लाभ उठाकर एक ओर जहाँ स्वार्थी राजनेता उनका दुरुपयोग करते हैं, वहीं दूसरी ओर धनिक वर्ग के सदस्य भी उनका शोषण करने से नहीं चूकते। ऐसी स्थिति में देश का राजनीतिक एवं सामाजिक वातावरण अत्यन्त दूषित हो जाता है।
4. गरीबी दूर करने के उपाय – जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण कर, शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार करते हुए व्यावसायिक एवं व्यावहारिक शिक्षा पर जोर देकर, कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देकर एवं औद्योगिकीकरण द्वारा रोजगार के अधिक अवसर सृजित कर हम निर्धनता की स्थिति को कम कर सकते हैं।
कुछ लोग निर्धनों को आर्थिक सहायता देने की बात करते हैं, किन्तु निर्धनों को स्वालम्बी बनाकर ही इनकी निर्धनता की समस्या का स्थायी समाधान सम्भव है। उन्हें आर्थिक सहायता देकर निर्धनता को दूर नहीं किया जा सकता। केवल आर्थिक सहायता देने से निर्धन वर्ग आलसी व कामचोर हो जाता है और सदा दूसरे पर निर्भर रहने की उसकी प्रवृत्ति हो जाती है।
हमारे देश में निर्धनों की आर्थिक सहायता के नाम पर जितनी धनराशि व्यय की जाती है, उसका सदुपयोग यदि इन्हें स्वावलम्बी बनाकर स्वरोजगारोन्मुख करने में किया जाए, तो परिणाम निःसन्देह अधिक बेहतर एवं सार्थक होंगे। कई बार तो यह भी देखा जाता है कि बिचौलियों एवं दलालों के कारण आर्थिक सहायता के नाम पर सरकार या अन्य गैर-सरकारी संगठनों से निर्गत धनराशि गरीबों तक पहुँच ही नहीं पाती।
5. उपसंहार—गरीबी वस्तुत: चोरी, अपहरण, हत्या, डकैती, नशाखोरी, वेश्यावृत्ति जैसी बुराइयों की जड़ है। गरीब व्यक्ति किसी प्रकार का अपराध करने के लिए विवश हो सकता है। भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में घोर गरीबी शर्म की बात है।
आज भी भारत के करोड़ो लोग गरीबी की स्थिति में जीने को विवश हैं। गरीबी न केवल एक अभिशाप है, बल्कि राष्ट्र के विकास में भी बहुत बड़ी बाधा है। अतः गरीबी के उन्मूलन के लिए हर सम्भव प्रयास भारत सरकार को कड़े नियम बनाकर, विशेष ध्यान देकर क्रियान्वित करना चाहिए।